घरेलू चिकित्सा : लौकी
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लौकी शीतल (ठंडा), पौष्टिक और मीठी होती है। यह बलवर्द्धक है और पित्त व कफ को दूर करती है। इसका उपयोग सब्जी के रूप में ही होता है। लेकिन लौकी को रस के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है। लौकी की सब्जी खाने से सिर का दर्द दूर होता है और गर्मी दूर होती है। लौकी छिलके सहित ही खाना अधिक लाभकारी होता है।
लौकी में कार्बोहाइड्रेट होता है, जिसके कारण यह आसानी से पच जाता है। इसमें वसा की मात्रा कम होती है। बीमार व्यक्ति को तथा मधुमेह के रोगियों को लौकी देना फायदेमंद होता है।
लौकी में पाये जाने वाले तत्त्व :
प्रोटीन - 0.2 प्रतिशत
वसा - 0.1 प्रतिशत
कार्बोहाइड्रेट - 2.9 प्रतिशत
पानी - 96.3 प्रतिशत
विटामिन-बी - थोड़ी मात्रा में
लौह - 0.7 मिग्रा./100 ग्राम
फॉस्फोरस - 0.01 प्रतिशत
कैल्शियम - 0.02 प्रतिशत
रोंगों का लौकी से उपचार :
बिच्छू के डंक:
• बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लौकी पीसकर लेप करें और इसका रस निकालकर पिलाएं। इससे बिच्छू का जहर उतर जाता है।
दस्त लगना:
• लौकी का रायता बनाकर दस्त में देने से दस्त का बार-बार आना बंद हो जाता है।
• लौकी का रायता बनाकर सेवन करने से दस्तों में आराम मिलता है।
गुर्दे का दर्द:
• लौकी के टुकड़े-टुकड़े करके गर्म करें और दर्द वाले जगह पर इसके रस से मालिश करें तथा इसे पीसकर लेप करने से गुर्दे के दर्द में जल्द आराम मिलता है।
पैरों के तलुवों की जलन:
• लौकी को काटकर पैर के तलुवों पर मलने से पैर की गर्मी (जलन) निकल जाती है।
दांत दर्द:
• लौकी 75 ग्राम और लहसुन 20 ग्राम दोनों को पीसकर एक किलो पानी में उबालें जब आधा पानी रह जाये तो छानकर कुल्ला करने से दांत दर्द दूर होता है।
पीलिया:
• लौकी को धीमी आग में दबाकर भुर्ता-सा बना लें फिर इसका रस निचोड़कर थोड़ा सा मिश्री मिलाकर पीयें यह लीवर की बीमारी और पेट के अन्य रोगों के लिए लाभदायक है।
आन्त्रिक ज्वर (टायफायड):
• घीये (लौकी) के टुकड़ों को तलुओं पर मालिश करने से टायफाइड बुखार की जलन दूर होती है।
दमा या श्वास का रोग:
• ताजी लौकी पर गीला आटा लेप लें, फिर उसे साफ कपडे़ में लपेटकर, भूभल (गर्म राख या रेत) में दबायें। आधे घंटे बाद कपड़ा और आटा उतारकर उस भुरते का रस निकालकर सेवन करें। लगभग 40 दिनों में इस रोग से छुटकारा मिल जाएगा।
खांसी:
• लौकी की गिरी खाने से कफज-खांसी दूर हो जाती है।
बवासीर (अर्श):
• लौकी या तुलसी के पत्तों को पानी के साथ पीसकर अर्श (बवासीर) के मस्से पर दिन में दो से तीन बार लगायें। इससे दर्द व जलन कम होती है तथा मस्से भी नष्ट होते हैं।
• लौकी या तुरई के पत्तों को पीसकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से खत्म हो जाते हैं।
• लौकी के छिलके को छाया में सुखाकर पीसकर रख लें और 1 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम ठण्डे पानी के साथ फंकी लें। इसकी फंकी 7-8 दिन तक लेने से बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।
प्रसव पीड़ा:
• लौंकी को बिना पानी के उबालकर उसका रस 30 ग्राम की मात्रा में निकालकर प्रसूता को पिलाने से प्रसव के समय होने वाला नहीं होता है।
लू का लगना:
• घीया के टुकड़ों से पैरों के तलुवों पर मालिश करने से लू के कारण होने वाली जलन खत्म हो जाती है।
नकसीर:
• लौकी को उबालकर खाने से नकसीर (नाक से खून बहना) में आराम आता है।
मूत्ररोग:
• लौकी का रस 10 मिलीलीटर, कलमी शोरा 2 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम सबको 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर दिन में दो बार सुबह-शाम लें।
गठिया रोग:
• कच्चे लौकी को काटकर उसकी लुगदी बनाकर घुटनों पर रखकर कपड़े से बांध लेना चाहिए। इससे घुटने का दर्द दूर हो जायेगा।
चेहरे की झांई:
• लौकी के ताजे छिलके को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरा सुन्दर हो जाता है।
हृदय रोग:
• लौकी के रस में, पांच पुदीने की पत्तियां और तुलसी की 10 पत्तियों का रस निकाल लें और इस रस को दिन में तीन बार यानी सुबह, दोपहर और रात को भोजन के आधा घंटा बाद लेना चाहिए। पहले तीन-चार दिन रस की मात्रा कुछ कम ली जा सकती है। बाद में ठीक से हजम होने पर रोजाना तीन बार 250 मिलीलीटर रस लें। रस हर बार ताजा लेना चाहिए।
• घीये का रस पेट में जो भी पाचन विकार होते हैं, उन्हें दूर करके मल के द्वारा बाहर निकाल देता है, जिसके कारण शुरुआत में पेट में कुछ खलबली, गड़गड़ाहट आदि महसूस होती है, जोकि एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। इससे घबराना नहीं चाहिए। तीन-चार दिन में पेट के विकार दूर होकर सामान्य स्थिति हो जाती है। इसे नियमित दो-तीन मास आवश्यकतानुसार लेने से हृदय रोगी ठीक होने लगता है और बाईपास सर्जरी कराने की जरूरत नहीं पड़ती है।
होठों के लिए:
• लौकी के बीजों को पीसकर होठों पर लगाने से जीभ और होठों के छाले ठीक हो जाते हैं।
कंठमाला:
• लौकी के तूंबे में सात दिन तक पानी भरकर रख दें। सात दिन बाद इस पानी को पीने से कंठमाला (गले की गांठे) बैठ जाती हैं।
शरीर को शक्तिशाली बनाना:
• घिया या लौकी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से शरीर की शक्ति बढ़ती है।
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लौकी शीतल (ठंडा), पौष्टिक और मीठी होती है। यह बलवर्द्धक है और पित्त व कफ को दूर करती है। इसका उपयोग सब्जी के रूप में ही होता है। लेकिन लौकी को रस के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है। लौकी की सब्जी खाने से सिर का दर्द दूर होता है और गर्मी दूर होती है। लौकी छिलके सहित ही खाना अधिक लाभकारी होता है।
लौकी में कार्बोहाइड्रेट होता है, जिसके कारण यह आसानी से पच जाता है। इसमें वसा की मात्रा कम होती है। बीमार व्यक्ति को तथा मधुमेह के रोगियों को लौकी देना फायदेमंद होता है।
लौकी में पाये जाने वाले तत्त्व :
प्रोटीन - 0.2 प्रतिशत
वसा - 0.1 प्रतिशत
कार्बोहाइड्रेट - 2.9 प्रतिशत
पानी - 96.3 प्रतिशत
विटामिन-बी - थोड़ी मात्रा में
लौह - 0.7 मिग्रा./100 ग्राम
फॉस्फोरस - 0.01 प्रतिशत
कैल्शियम - 0.02 प्रतिशत
रोंगों का लौकी से उपचार :
बिच्छू के डंक:
• बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लौकी पीसकर लेप करें और इसका रस निकालकर पिलाएं। इससे बिच्छू का जहर उतर जाता है।
दस्त लगना:
• लौकी का रायता बनाकर दस्त में देने से दस्त का बार-बार आना बंद हो जाता है।
• लौकी का रायता बनाकर सेवन करने से दस्तों में आराम मिलता है।
गुर्दे का दर्द:
• लौकी के टुकड़े-टुकड़े करके गर्म करें और दर्द वाले जगह पर इसके रस से मालिश करें तथा इसे पीसकर लेप करने से गुर्दे के दर्द में जल्द आराम मिलता है।
पैरों के तलुवों की जलन:
• लौकी को काटकर पैर के तलुवों पर मलने से पैर की गर्मी (जलन) निकल जाती है।
दांत दर्द:
• लौकी 75 ग्राम और लहसुन 20 ग्राम दोनों को पीसकर एक किलो पानी में उबालें जब आधा पानी रह जाये तो छानकर कुल्ला करने से दांत दर्द दूर होता है।
पीलिया:
• लौकी को धीमी आग में दबाकर भुर्ता-सा बना लें फिर इसका रस निचोड़कर थोड़ा सा मिश्री मिलाकर पीयें यह लीवर की बीमारी और पेट के अन्य रोगों के लिए लाभदायक है।
आन्त्रिक ज्वर (टायफायड):
• घीये (लौकी) के टुकड़ों को तलुओं पर मालिश करने से टायफाइड बुखार की जलन दूर होती है।
दमा या श्वास का रोग:
• ताजी लौकी पर गीला आटा लेप लें, फिर उसे साफ कपडे़ में लपेटकर, भूभल (गर्म राख या रेत) में दबायें। आधे घंटे बाद कपड़ा और आटा उतारकर उस भुरते का रस निकालकर सेवन करें। लगभग 40 दिनों में इस रोग से छुटकारा मिल जाएगा।
खांसी:
• लौकी की गिरी खाने से कफज-खांसी दूर हो जाती है।
बवासीर (अर्श):
• लौकी या तुलसी के पत्तों को पानी के साथ पीसकर अर्श (बवासीर) के मस्से पर दिन में दो से तीन बार लगायें। इससे दर्द व जलन कम होती है तथा मस्से भी नष्ट होते हैं।
• लौकी या तुरई के पत्तों को पीसकर बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से खत्म हो जाते हैं।
• लौकी के छिलके को छाया में सुखाकर पीसकर रख लें और 1 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम ठण्डे पानी के साथ फंकी लें। इसकी फंकी 7-8 दिन तक लेने से बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।
प्रसव पीड़ा:
• लौंकी को बिना पानी के उबालकर उसका रस 30 ग्राम की मात्रा में निकालकर प्रसूता को पिलाने से प्रसव के समय होने वाला नहीं होता है।
लू का लगना:
• घीया के टुकड़ों से पैरों के तलुवों पर मालिश करने से लू के कारण होने वाली जलन खत्म हो जाती है।
नकसीर:
• लौकी को उबालकर खाने से नकसीर (नाक से खून बहना) में आराम आता है।
मूत्ररोग:
• लौकी का रस 10 मिलीलीटर, कलमी शोरा 2 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम सबको 250 मिलीलीटर पानी में मिलाकर दिन में दो बार सुबह-शाम लें।
गठिया रोग:
• कच्चे लौकी को काटकर उसकी लुगदी बनाकर घुटनों पर रखकर कपड़े से बांध लेना चाहिए। इससे घुटने का दर्द दूर हो जायेगा।
चेहरे की झांई:
• लौकी के ताजे छिलके को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरा सुन्दर हो जाता है।
हृदय रोग:
• लौकी के रस में, पांच पुदीने की पत्तियां और तुलसी की 10 पत्तियों का रस निकाल लें और इस रस को दिन में तीन बार यानी सुबह, दोपहर और रात को भोजन के आधा घंटा बाद लेना चाहिए। पहले तीन-चार दिन रस की मात्रा कुछ कम ली जा सकती है। बाद में ठीक से हजम होने पर रोजाना तीन बार 250 मिलीलीटर रस लें। रस हर बार ताजा लेना चाहिए।
• घीये का रस पेट में जो भी पाचन विकार होते हैं, उन्हें दूर करके मल के द्वारा बाहर निकाल देता है, जिसके कारण शुरुआत में पेट में कुछ खलबली, गड़गड़ाहट आदि महसूस होती है, जोकि एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। इससे घबराना नहीं चाहिए। तीन-चार दिन में पेट के विकार दूर होकर सामान्य स्थिति हो जाती है। इसे नियमित दो-तीन मास आवश्यकतानुसार लेने से हृदय रोगी ठीक होने लगता है और बाईपास सर्जरी कराने की जरूरत नहीं पड़ती है।
होठों के लिए:
• लौकी के बीजों को पीसकर होठों पर लगाने से जीभ और होठों के छाले ठीक हो जाते हैं।
कंठमाला:
• लौकी के तूंबे में सात दिन तक पानी भरकर रख दें। सात दिन बाद इस पानी को पीने से कंठमाला (गले की गांठे) बैठ जाती हैं।
शरीर को शक्तिशाली बनाना:
• घिया या लौकी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से शरीर की शक्ति बढ़ती है।
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