तो एक बार इसे अवश्य आजमायें :
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आयुर्वेद के पंचकर्म में एक क्रिया होती है जिसे वस्ति कहते हैं | वस्ति हड्डियों के जोड़ों की सूजन एवं दर्द के लिए अत्यंत लाभदायक है | अंगों के अनुसार इसका नाम परिवर्तित हो जाता है जैसे – यदि कमर दर्द जैसे रोग में इस क्रिया को करते हैं तो इसे कटिवस्ति, सर्वाइकल पेन में इस क्रिया के प्रयोग को ग्रीवावस्ति, घुटनों के दर्द में जब इसे घुटने में करते हैं तो जानुवस्ति एवं ह्रदय रोगों में ह्रदय पर यह क्रिया करने पर ह्रदयवस्ति कहलाती है |
मेरा स्वयं का अनुभव है कि उक्त रोगों में प्राकृतिक चिकित्सा के अन्य उपचारों के साथ यदि इस क्रिया को किया जाये तो परिणाम 95 प्रतिशत तक पहुँच जाता है | ऐसे रोगी जो सर्वाइकल पेन (रीढ़ की हड्डी में गर्दन की कशेरुकाओं का दर्द), कमर दर्द या घुटनों के दर्द से पीड़ित हों उन्हें इस क्रिया को अवश्य करना चाहिए |
वस्ति क्रिया के लिए आवश्यक सामग्री :
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1. बिना छिलके वाली उड़द की दाल का महीन पिसा हुआ आटा – 250 ग्राम |
2. महानारायण या महाविषगर्भ तेल – 100 मिली.
3. दो कटोरी (जिसमे इस तेल को गर्म किया जा सके)
4. एक छोटा चम्मच
5. गैस स्टोव या हीटर
6. रुई या फोम का टुकड़ा
7. रेक्सीन का टुकड़ा
8. एक छोटा तौलिया
9. रोगी को लिटाने के लिए एक टेवल
विधि :
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• सर्वप्रथम उड़द की दाल के आटे में पानी मिलाकर गूथ लें तत्पश्चात उसे चित्र के अनुसार रिंग का आकार देकर रोग्रस्त अंग पर इस प्रकार लगायें कि वह त्वचा से भलीभांति चिपक जाये | यह रिंग रोगग्रस्त अंग की त्वचा से इस प्रकार चिपकानी चाहिए कि इसके अन्दर तेल भरने पर तेल बाहर न निकले | इसके लिए रिंग के अन्दर एवं बाहर के किनारे-किनारे अंगुली से दबाकर आटे को अच्छी तरह से चिपका देना चाहिए |
• रिंग बन जाने के बाद दोनों कटोरियों में आधा-आधा तेल डाल दें एवं एक कटोरी के तेल को हल्का सा गर्म करे |
• गर्म तेल में दूसरी कटोरी से (जो गर्म नही किया गया था) से चम्मच से तेल मिलाकर तेल के तापमान को ऐसा बना लें कि रोगी उस तापमान को सह ले | इसके लिए अपने हाथ की ऊँगली तेल में डुबोकर तेल के तापमान को जांच लें |
• अब इस तेल को चिपकाई गयी रिंग में भर दें |
• रिंग वाला तेल ठंडा हो जाने पर इस तेल को चम्मच से निकाल ले एवं इसमें 2-3 चम्मच अन्य गर्म तेल मिलाकर पहले जितना तापमान हो जाने पर पुनः रिंग में भर दें | प्रत्येक 3-4 मिनट में इस प्रकार तेल के तापमान को व्यवस्थित करते रहें |
• 30 मिनट तक इस प्रकार गर्म तेल से यह क्रिया करने के बाद सारा तेल चम्मच से बाहर निकाले एवं आटे की रिंग को हटा लें |
• जिस अंग पर वस्ति क्रिया की गयी थी उसे 15-20 मिनट तक कपडे से ढक दें |
प्रयोग किये गये आंटे को यदि इसी रोगी कई बार प्रयोग कर सकते हैं इसके लिए इस आंटे से तेल को टिशु पेपर से सुखाकर आंटे को फ्रिज में रख दें | पुनः प्रयोग करने के 30 मिनट पहले आंटे को फ्रिज से बाहर निकाल लेना चाहिए |
सावधानियां :
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1. तेल के तापमान का विशेष ध्यान रखें | उँगलियों की अपेक्षा गर्दन,कमर या घुटने की त्वचा अधिक संवेदनशील होती है अतः ऊँगली में तेल का जो तापमान सुहाता - सा महसूस हो वह तापमान इन अंगो के लिए पर्याप्त होगा |
2. तेल के तापमान को व्यवस्थित करने के लिए सीधे रिंग के अंदर गर्म तेल न डालें बल्कि रिंग वाला तेल बाहर निकाल कर उसमे गर्म तेल मिलाकर पुनः उसे रिंग में भरें |
3. रिंग वाले अंग के नीचे रेक्सीन का टुकड़ा बिछा दें ताकि कभी यदि तेल रिंग से बाहर निकलने लगे तो नीचे बिछे वस्त्र ख़राब न हों और आप उसे रुई या फोम से सोखाकर पुनः उपयोग में ले सकें |
4. जहाँ पर वस्ति दी जा रही हो वहां पर हवा के झोंके ना आ रहे हों | पंखा आदि भी बंद करके रखें |
5. वस्ति करने के बाद 15-20 मिनट तक वस्ति वाला अंग किसी तौलिया से ढक दें एवं रोगी को उसी स्थान पर लिटाकर रखें |
विशेष :
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यद्दपि यह क्रिया पूर्णतया हानिरहित है फिर भी इसे किसी आयुवेद चिकित्सक की देखरेख में कराना अधिक उचित होगा | क्रिया करने के पूर्व आपने चिकित्सक की सलाह अवश्य ले लें |
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