मित्रों दाद से छुटकारा पाने के लिये यह घरेलू नुस्खा जरूर आजमायें, वास्तव में बहुत ही लाभकारी है। नीम की 50 ताजी पत्तियों को ताजे पानी में धोकर मिक्सी के छोटे वाले जार में पीस कर चटनी जैसा बना लीजिये और चटनी को 50 ml नारियल तैल के साथ मिलाकर बहुत ही हल्की आग पर रखकर गर्म कीजिये। थोडे झाग बनेंगे, इन झागों के शांत होने तक थोडा चलाते रहें। जब झाग शांत हो जायें तो आग पर से उतार कर गरम ही छान लेवें और ठंडा करके चोडे मुहॅ वाली डिब्बी में भर लें। दिन में 3-4 बार लगाने से पुरानें से पुरानें दाद में जादू की तरहा लाभ देता है।
साधना की उच्च स्थिति में ध्यान जब सहस्रार चक्र पर या शरीर के बाहर स्थित चक्रों में लगता है तो इस संसार (दृश्य) व शरीर के अत्यंत अभाव का अनुभव होता है |. यानी एक शून्य का सा अनुभव होता है. उस समय हम संसार को पूरी तरह भूल जाते हैं |(ठीक वैसे ही जैसे सोते समय भूल जाते हैं).| सामान्यतया इस अनुभव के बाद जब साधक का चित्त वापस नीचे लौटता है तो वह पुनः संसार को देखकर घबरा जाता है,| क्योंकि उसे यह ज्ञान नहीं होता कि उसने यह क्या देखा है? वास्तव में इसे आत्मबोध कहते हैं.| यह समाधि की ही प्रारम्भिक अवस्था है| अतः साधक घबराएं नहीं, बल्कि धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें.| यहाँ अभी द्वैत भाव शेष रहता है व साधक के मन में एक द्वंद्व पैदा होता है.| वह दो नावों में पैर रखने जैसी स्थिति में होता है,| इस संसार को पूरी तरह अभी छोड़ा नहीं और परमात्मा की प्राप्ति अभी हुई नहीं जो कि उसे अभीष्ट है. |इस स्थिति में आकर सांसारिक कार्य करने से उसे बहुत क्लेश होता है क्योंकि वह परवैराग्य को प्राप्त हो चुका होता है और भोग उसे रोग के सामान लगते हैं, |परन्तु समाधी का अभी पूर्ण अभ्यास नहीं है.| इसलिए साधक को चाहिए कि...
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