पके पपीते के बीज लीवर के मरीजों के लिये किसी वरदान से कम नहीं हैं। प्रायशः समस्त घरों में पपीते के बीजों को फेंक ही दिया जाता है, क्योंकि इसके स्वास्थय लाभों से हम लोग लगभग अपरिचित ही हैं। ज्यादा चटपटा खाने से, ज्यादा चिकनायी खाने से, लम्बे समय तक औषधियों के प्रयोग से अथवा शराब ज्यादा पीने से लीवर की सेहत खराब होने लगती है। ऐसी अवस्था में पके पपीते के काले बीजों को सुखाकर रख लें और दोनों समय भोजन से पूर्व केवल 3 बीजों को चबाकर खालें और थोडा गुनगुना पानी पी लें। बीजों को केवल 3 कि संख्या में ही खायें और गर्भवती महीलायें ना सेवन करें।.
साधना की उच्च स्थिति में ध्यान जब सहस्रार चक्र पर या शरीर के बाहर स्थित चक्रों में लगता है तो इस संसार (दृश्य) व शरीर के अत्यंत अभाव का अनुभव होता है |. यानी एक शून्य का सा अनुभव होता है. उस समय हम संसार को पूरी तरह भूल जाते हैं |(ठीक वैसे ही जैसे सोते समय भूल जाते हैं).| सामान्यतया इस अनुभव के बाद जब साधक का चित्त वापस नीचे लौटता है तो वह पुनः संसार को देखकर घबरा जाता है,| क्योंकि उसे यह ज्ञान नहीं होता कि उसने यह क्या देखा है? वास्तव में इसे आत्मबोध कहते हैं.| यह समाधि की ही प्रारम्भिक अवस्था है| अतः साधक घबराएं नहीं, बल्कि धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें.| यहाँ अभी द्वैत भाव शेष रहता है व साधक के मन में एक द्वंद्व पैदा होता है.| वह दो नावों में पैर रखने जैसी स्थिति में होता है,| इस संसार को पूरी तरह अभी छोड़ा नहीं और परमात्मा की प्राप्ति अभी हुई नहीं जो कि उसे अभीष्ट है. |इस स्थिति में आकर सांसारिक कार्य करने से उसे बहुत क्लेश होता है क्योंकि वह परवैराग्य को प्राप्त हो चुका होता है और भोग उसे रोग के सामान लगते हैं, |परन्तु समाधी का अभी पूर्ण अभ्यास नहीं है.| इसलिए साधक को चाहिए कि...
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