आयुर्वेदिक औषधियां – Courtesy
Healthworld.com आक : आक का पौधा पूरे भारत में पाया जाता है। गर्मी के
दिनों में यह पौधा हरा-भरा रहता है परन्तु वर्षा ॠतु में सुखने लगता है।
इसकी ऊंचाई 4 से 12 फुट होती है । पत्ते 4 से 6……………. आडू : यह उप-अम्लीय
(सब-,एसिड) और रसीला फल है, जिसमें 80 प्रतिशत नमी होती है। यह लौह तत्त्व
और पोटैशियम का एक अच्छा स्रोत है।……………… आलू : आलू सब्जियों का राजा
माना जाता है क्योकि दुनियां भर में सब्जियों के रूप में जितना आलू का
उपयोग होता है, उतना शायद ही किसी दूसरी सब्जी का उपयोग होता होगा। आलू में
कैल्शियम, लोहा, विटामिन ‘बी’ तथा………………. आलूबुखारा : आलूबुखारे का पेड़
लगभग 10 हाथ ऊंचा होता है। इसके फल को आलूबुखारा कहते हैं। यह पर्शिया,
ग्रीस और अरब की ओर बहुत होता है। हमारे देश में भी आलूबुखारा अब होने लगा
है। आलूबुखारे का रंग ऊपर से मुनक्का के………….. आम : आम के फल को
शास्त्रों में अमृत फल माना गया है इसे दो प्रकार से बोया (उगाया) जाता है
पहला गुठली को बो कर उगाया जाता है जिसे बीजू या देशी आम कहते है। दूसरा आम
का पेड़ जो कलम द्वारा उगाया जाता है। इसका पेड़ 30 से 120 फुट तक ऊचा होता
है…………………… आमलकी रसायन : आमलकी (बीज रहित फल) बारीक चूर्ण लेकर आमलकी रस
में सूखने तक मर्दन करें। इस विधि को 21 बार दोहरायें। मर्दन छाया में ही
करें।………………….. आंबा हल्दी : आंबा हल्दी के पेड़ भी हल्दी की तरह ही होते
हैं। दोनों में अन्तर यह है कि आंबा हल्दी के पत्ते लम्बे तथा नुकीले होते
हैं। आंबा हल्दी की गांठ बड़ी और भीतर से लाल होती है, किन्तु हल्दी की गांठ
की छोटी और पीली होती है। आंबा हल्दी में सिकुड़न तथा झुर्रियां नही होती
है…………….. अफीम : अफीम पोस्त के पोधे पोपी से प्राप्त की जाती है । अफीम
के पौधे की ऊंचाई एक मीटर, तना हरा, सरल और स्निग्ध (चिकना), पत्ते
आयताकार, पुष्प सफेद, बैंगनी या रक्तवर्ण, सुंदर कटोरीनुमा एंव चौथाई इंच
व्यास वाले……………………. आँवला : आंवले का पेड़ भारत के प्रायः सभी प्रांतों
में पैदा होता है। तुलसी की तरह आंवले का पेड़ धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र
माना जाता है। स्त्रियां इसकी पूजा भी करती है। आंवले के पेड़ की ऊचाई लगभग
20 से 25 फुट तक होती है।………………… अभ्रक : अभ्रक, कशैला, मधुर और शीतल है,
आयुदाता धातुवर्द्बक और त्रिदोष(वात, पित्त और कफ) नाशक है, फोड़ा, फुंसी
प्रमेह और कोढ़ को नाश करने वाला है, प्लीहा (तिल्ली), उदर रोग, ग्रन्थी और
विष दोषों का मिटाने वाला है, पेट………………. अदरक : भोजन को स्वादिष्ठ व
पाचन युक्क्त बनाने के लिए अदरक का उपयोग आमतौर पर हर घर में किया जाता है।
वैसे तो यह सभी प्रदेशों में पैदा होती है,लेकिन अधिकाशं उत्पादन केरल
राज्य में किया जाता है। भूमि के अन्दर…………….. अडूसा (वासा) : सारे भारत
में अडूसा के झाड़ीदार पौधे आसानी से मिल जाते हैं । ये 4 से 8 फुट ऊंचे
होते हैं । अडूसा के पत्ते 3 से 8 इंच तक लंबे और डेढ़ से साढ़े तीन इंच चौड़े
अमरुद के पत्तो जैसे होते हैं । नोकदार, तेज गंधयुक्त,……………………….. अकरकरा
(PELLITORY ROOT) : अकरकरा अल्जीरिया में सबसे अधिक मात्रा में पैदा होता
है। भारत में कश्मीर, आसाम, आबू और बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में और
गुजरात, महाराष्ट्र आदि की उपजाऊ भूमि में कही-कही उगता है। वर्षा के शुरु
में ही इसका झाड़ीदार पौधा उगना प्रारंभ हो जाता है। अकरकरा का तना रोएंदार
और ग्रंथियुक्त होता है। अकरकरा की छाल कड़वी और……………… अगर : अगर का पेड़,
आसाम, मलाबार, चीन की सरहद के निकटवर्ती ‘नवका’ शहर के ‘चतिया’ टापू में,
बंगाल में दक्षिण की ओर के उष्णकटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले
के आसपास ‘जातिया’ पर्वत पर…………………. अगस्ता : अगस्ता का वृक्ष (पेड़) बड़ा
होता है। यह बगीचो और खनी हुई जगहो में उगता है। अगस्ता की दो जातियां
होती है। पहले का फूल सफेद होता है तथा दूसरे का लाल होता है। अगस्ता के
पत्ते इमली के पत्तो के समान होते हैं। अगस्त…………….. आकड़ा : आकड़ा का पौधा
4 से 5 फुट लम्बा होता है। यह जंगल में बहुत मिलता है। कैलोट्रोपिस
जाइगैण्टिया नाम से यह होम्योपैथी में काम में ली जाती है………… ऐन : ऐन के
वृक्ष(पेड़)बहुत बड़े होते हैं। ऐन के पेड़ की लकड़ी मजबूत होती है। इसकी लकड़ी
का प्रयोग एमारतो और नाव एत्यादि बनाने में यह काम आती है। ऐन के पत्ते
लम्बे होते हैं। ऐन के पेड़ की दो जातियां होती है- सफेद………………… अजमोद :
अजमोद के गुण अजवायन की तरह होता है। परन्तु अजमोद का दाना अजवायन के दाने
से बड़ा होता है। अजमोद भारत वर्ष में लगभग सभी जगह पाई जाती है लेकिन विशेष
कर बंगाल में, यह शीत ॠतु के आरंभ में बोई जाती है। यह हिमालय के उत्तरी
और पश्चिमी प्रदेशो…………… अजवाइन : अजवायन का पौधा आम तौर पर सारे
भारतवर्ष मे लगाया जाता है, लेकिन बंगला दक्षिणी प्रदेश और पंजाब में पैदा
होता है। अजवायन के पौधे दो-तीन फुट ऊंचे और पत्ते छोटे आकार में कुछ
कंटीले होते हैं। डलियों पर सफेद फुल गुच्छे के रुप में लगते है, जो पक कर
एवं सुख……….. अखरोट : अखरोट पतझड़ करने वाले बहुत सुन्दर और सुगन्धित पेड़
होते है, इसकी दो जातियाँ पाई जाती है। जंगली अखरोट 100 से 200 फीट तक
ऊँचे, अपने आप उगने वाले तथा फल का छिलका मोटा होता है। कृषिजन्य 40 से 90
फुट तक ऊँचा होता……………… एकवीर : एकवीर जंगलों में होता है। एकवीर के बड़े
दो पेड़ होते हैं इसमें बड़े-बड़े और मोटे-मोटे, अलग-अलग, 1-1 कांटे होते हैं,
पत्ती पाखर की पत्ती समान फल छोटे-छोटे और झुमखों में लगते हैं।………………
एलबा : एलबा गर्म प्रकृति का है, कफ वात् नाशक है, पेट साफ करने वाला है।
ज्वर मूर्छा (बुखार में बहोशी आना) और जलन को दूर करता है रुचि को उत्पन्न
करता है, नेत्रों की दृष्टि शक्ति (आंखों से रोशनी) को बढ़ाता है। बहुत
पुराने घावो पर भर लाती है, नेत्रों के बहुत रोगो में लाभकारी है, अगर
सिरका के साथ रसवत और अफीम भी हल करें……………… अलसी (Linseed, Linum
Usitatissimum) : अलसी की खेती मुख्यत, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य
प्रदेश में होती है। अलसी का पौधा 2 से 4 फुट ऊंचा होता है। अलसी के पत्ते
रेखाकार एक से तीन इंच लंबे होते है। फूल मंजरियों में हल्के नीले रंग के
होते है। फल कलश के समान आकर के होते हैं, जिसमें सुबह 10 बीज……………… एरक :
  एरक और पटेर ये दोनों ही कषाय और मधुर रस युक्त शीतवीर्य,मूत्रल ,रोपक
और मूत्रकृच्छ और रक्त -पित्त नाशक है। इनमें से एक विशेषÂ शीतल है, वात
प्रकोपक.. …. ……. …. अंगूर शोफा : Â Â यह सांस और वातरोग, पेशाब को साफ
करने वाला, निद्राप्रद शांतिदायक, कनीनिक विस्तारक और खांसी तथा बुखार आदि
कोÂ नष्ट करता है। इसके जड़ और पत्तों को… ……. …. अंजनी Memecylon edule : Â
 अंजनी शीतल और संकोचक है। इसके पत्ते आंखों के दर्द में लाभकारी है। और
इसकी जड़ सूजाक और अधिक रक्तस्राव में लाभ पहुंचाती है।Â .. …. ……. ….
आफसन्तीन : Â अफसन्तीन दस्तवर, वात और कफ के विकार, बुखार कीडो, और पेट के
दर्द को दूर करता है ।यह कड़ुवा,तीखा और पाचक होता है. …. ……. …. आरारोट : Â
 अरारोट सही पोषणकर्ता, शान्तिदायक, शीघ्र पचने वाला, स्नेहजनक, सौम्य,
विबन्ध(कब्ज) नाशक,दस्तावर है।पित्तजन्य रोग, आंखों के रोग, जलन, सिरदर्द,
खूनी. …. ……. …. आरिमेद : Â Â अरिमेद का रस कसैला और कडुवा, वीर्य में
उष्ण, ग्राही, भूत-वाधा निवारक, होता है। मुखरोग, दांत के रोग रक्तÂ विकार,
बस्तिरोग,अतिसार, विषम ज्वर(टायफाइड),…. ……. …. अजवायन किरमाणी : Â यह
कड़वी, प्रकृति में गर्म, पाचक, हल्की, अग्निदीपक, भूख बढ़ाने वाली और बच्चों
के पेट के कीड़े, अजीर्ण आम और पेट दर्द को नष्ट करने वाला होता है इसके
सभी गुणों… …. ……. …. अकलबेर : Â अकलबेर को उचित मात्रा में देने से विषम
ज्वर,कंठमाला और बेहोशी की स्थिति में लाभ होता है इसके प्रयोग से गले और
वायु प्रणालियों की श्लैष्मिक कलाओं के जलन में लाभ होता…. ……. …. अमरकन्द
: Â अमरकन्द मीठी, स्निग्ध , तीखा,उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला, अत्यन्त
पौष्टिक होता है। गले के क्षय रोग जनित ग्रन्थियां या गण्डमाला, गुल्म,
सूजन, पेट के कीड़े, वात, कफजन्यदोष… …. ……. …. अनन्त-मूल’कृष्णा सारिवा’ :
 यह वात पित्त, रक्तविकार, प्यास अरूचि, उल्टी बुखारनाशक और शीतल
वीर्यवर्द्धक, कफनाशक, शीतल, मधुर,धातुवर्द्धक, भारी स्निग्ध कड़वी,
सुगन्धित, स्तनों के दूध को शुद्ध…. ……. …. अनन्त-मूल श्वेत सारिवा : Â यह
शीतल, मधुर, धातुवर्द्धक, भारी, चिकनी, कड़वी, सुगन्धित, कान्तिवर्द्धक,
स्वर शोधक, स्तनों के रक्त को शुद्ध करने वाला, जलननाशक, बच्चों के रोग,
सूजन,और त्रिदोषशामक…. ……. …. आसन(विजयसार) : Â यह रसायन गरम, तीखी ,सारक,
त्वचा और बालों के लिए लाभकारी है इससे वातपीडा,गले का
रोग,रक्तमण्डल,सफेद,विष,सफेद दाग,प्रमेह,कफ विकार,रक्तविकार… …. ……. ….
आसन(असन) : Â यह औषधि कसैला ,मूत्रसंग्राहक, कफ,पित्त,रक्तविकार तथा सफेद
दाग को नाशक है।विद्धान के अनुसार इसमें चूना जैसे पदार्थ की अधिकता होती
है। और इससे एक प्रकारÂ … …. ……. …. आशफल : Â यह अग्निवर्द्धक,पौष्टिक और
पेट के कीड़ो को नष्ट करने वाला होता है। इसमें सेपालिन नामक तत्व पाया जाता
है।… …. ……. …. अगिया(अगिन) : Â यह कड़वी ,तेज ,तीखी ,गर्म प्रकृति की
,हल्की ,दस्तवार,अग्निदीपक,रूखी,आंखों के लिए हानिकारक
,मुखशोधक,वातसन्तापनाशक,भूतग्रह आवेश निवारक ,विषनाशक… …. ……. …. जंगली
अजवायन : Â Â यह उत्तेजक, दर्द और अफारा ,पेट के गोल कीड़ों को नष्ट करने
वाला और आंतों को मजबूत बनाता है। यह अग्निवर्द्धक भी है। इसे 3 ग्राम की
मात्रा से अधिक सेवनÂ … …. ……. …. अजगंधा : Â अजगंधा सुगन्धित द्रव्य
आंत्र की श्लेषकला का उत्तेजक,उत्तेजक ,दर्द नाशक, पसीनावर्द्धक,पाचन शक्ति
को सही रखने वाला और खांसी को रोकने वाला होता है। औषधि के… …. ……. …. आल
: Â आल के पत्तो का क्वाथ(काढ़ा) पिलाने से बुखार और कमजोरी मे लाभ होता
है। इसके पत्तो का फांट बनाकर पीने और पत्तों का काढ़ा बनाकर त्वचा पर लेप
करने से… …. ……. …. अमलतास (Pudding Pipe Tree, Cassia Fistula) : अमलतास
का पेड़ काफी बड़ा होता है, जिसकी उंचाई 25-30 फुट तक होती है। पेड़ की छाल
मटमैली और कुछ लालिमा लिए होती है। अमलतास का पेड़ आमतौर पर सभी जगह पाया
जाता है। बाग-बगीचों, घरों में इसे चौकिया तौर पर सजावट के लिए भी लगाया
जाता है।……………… अमर बेल : अमर बेल एक पराश्रयी (दूसरों पर निरर्भर) लता
है, जो प्रकृति का चमत्कार ही कहा जा सकता है। बिना जड़ की यह बेल जिस वृक्ष
पर फैलती है, अपना आहार उस से रस चूसने वाले सूत्र के माध्यम से प्राप्त
कर लेती है।……………… अमड़ा : पित्त की बीमारियों पैत्तिक अतिसारों और पित्त
प्रकृति वाले मनुष्यों को लाभकारी है अमड़ा के पेड़ की हरी छाल बकरी के दूध
के साथ घोंटकर पीने से नाक की बीमारियों को हितकर है इसके गुठली की गीरी
मासिक श्राव को बन्द करती है।……………… अमरुद : अमरुद का पेड़ आमतौर पर भारत
के सभी राज्यों में उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश का इलाहाबादी अमरुद विश्व
विख्यात है। यह विशेष रुप से स्वादिष्ठ होता है। इसके पेड़ की उंचाई 10 से
20 फीट होती है। टहनियां पतली-……………… अम्लवेत : अम्लवेत का पेड़ फल के लिए
बागों में लगाये जाते है। अम्लवेत के फल को बंगाल में थंकल कहते है। पेड़
बड़े, पत्तियां बड़ी, चौड़ी व कर्कश होती है।……………… अनन्नास : भारत में
जुलाई से नंबर के मध्य अनन्नास काफी मात्रा में मिलता है। अनन्नसा मुलतः
ब्राजील का फल है, जो प्रसिद्ध नाविक कोलम्बस अपने साथ यूरोप से लेकर आया
था। भारत में इस फल को पुर्तगाली लोग लेकर आयें थे।……………… अनन्त : अनन्त
का पेड़ बहुत ऊँचा बढ़ता है। अनन्त पेड़ अधिकतर कोंकण प्रान्त में पाये जाते
है। अनन्त के पत्ते लम्बे और कुछ मोटे होते है। अनन्त का पेड़ अत्यन्त
सुन्दर दिखाई पड़ता है। अनन्त के पेड़ में अगस्त के……………… अनन्तमूल
(Hemidesmus, Indian sarsaparilla) : अनन्तमूल समुद्र के किनारे वाले
प्रदेशो से लेकर भारत के सभी पहाड़ी पदेशों में बेल (लता) के रूप में
प्रचुरता से मिलती है। यह सफेद और काली, दो प्रकार की होती है, जो गौरीसर
और कालीसर के नाम से आमतौर पर जानी……………… . अनार (Pomegranate, Punica
Granatum) : भारत देश में अनार का पेड़ सभी जगह पर पाया जाता है। कन्धार,
काबुल और भारत के उत्तरी भाग में पैदा होने वाले अनार बहुत रसीले और अच्छी
किस्म के होते है। अनार के पेड़ कई शाखाओं से युक्त लगभग 20 फुट ऊचा………………
अन्धाहुली (HOLESTEMA HEED) : अर्कपुष्पी जीवनी भेद ही है । अर्कपुष्पी की
बेल नागरबल की तरह और पत्ते गिलोय की तरह छोटे होते हैं, फूल सूर्यमुखी की
तरह गोल होता है, इसमें से दूध निकलता है।……………… अंगूर (Graps,
Grapesvine, Raisins) : अंगूर एक आयु बढ़ाने वाला प्रसिद्ध फल है। फलों में
यह सर्वोत्तम एवं निर्दोष फल है, क्योंकि यह सभी प्रकार की प्रकार की
प्रकृति के मनुष्य के लिए अनुकूल है। निरोग के लिए यह उत्त्म पौष्टिक खाद्य
है तो रोगी के लिए……………… अंजीर (FIG) : काबुल में अंजीर की अधिक पैदावार
होती हैं। हमारे देश में बंगलौर, सूरत, कश्मीर, उत्तर-प्रदेश, नासिक,
मैसूर क्षेत्रों में यह ज्यादा पैदा होता है। अंजीर पेड़ 14 से 18 फुट ऊंचा
होता है। पत्ते और शाखाओं पर रोंए होते है। फूल न……………… अंकोल (Tlebid Alu
Retis) : अंकोल के छोटे तथा बड़े दोनों प्रकार के वृक्ष पाये जाते है। जो
आमतौर पर जंगलों में शुष्क एंव उच्च भूमि में उत्पन्न होते है। यह हिमायलय
की तराई, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, राजस्थान, दक्षिण भारत एवं बर्मा में
पाया जाता है।……………… ओंगा : खुजली और जलन्धर को हितकर होती है। इसकी
दातून मुख को शुद्ध करती है दांतो को मजबूंत करती है अगर इसके पत्तों का रस
मीठे में मिलाकर……………… अपराजिता MEGRIN, (CLITOREA TERNATEA) :
अपराजिता, विष्णुकांता गोकर्णी आदि नामों से जानी-जाने वाली सफेद या नीले
रंग के फूलों वाली कोमल पेड़ है। इस पर विशेषकर……………… अपामार्ग (Prickly
Chalf flower) : आपामार्ग का पौधा भारत के समस्त शुष्क स्थानों पर उत्पन्न
होता है। यह गांवो में अधिक मिलता है। खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पर
पाया जाता है। अपामार्ग ऊंचाई आमतौर पर दो से चार फुट होती है। लाल और
सफेद दो प्रकार के अपामार्ग आमतौर पर देखने……………… एरण्ड (CASTOR PLANT,
RICINUS COMMUNITS) : एरण्ड का पौधा प्रायः सारे भारत में पाया जाता है।
इसकी खेती भी की जाती है और इसे खेतों के किनारे-किनारे लगाया जाता है।
ऊंचाई में यह 10 से 15 फुट होता है। इसका तना हरा और स्निग्ध तथा छोटी-छोटी
शाखाओं……………… अरबी (GREATLEAVED CALEDIUM) : अरबी अत्यन्त प्रसिद्ध और
सभी की परिचित वनस्पति है। अरबी प्रकृति ठण्डी और तर होती है। अरबी के
पत्तों से पत्तखेलिया नामक बानगी बनती है। अरबी कन्द (फल) कोमल पत्तों और
पत्तों की तरकारी बनती है। अरबी गर्मी……………… अरहर (PIGEON PEA) : अरहर दो
प्रकार की होती है पहली लाल और दूसरी सफेद। वासद अरहर की दाल बहुत मशहूर
है। सुस्ती अरहर की दाल व कनपुरिया दाल एवं देशी दाल भी उत्तम मानी जाती
है। दाल के रुप में उपयोग में लिए जाने वाले……………… अरीठा : अरीठे के
वृक्ष भारतवर्ष में अधिकतर सभी जगह होते है। यह वृक्ष बहुत बड़े होते है,
इसके पत्ते गूलर से भी बड़े होते है। अरीठे के वृक्ष को साधारण समझना केवल
भ्रम……………… अर्जुन (Arjuna, Tarminalia Arjuna) : अर्जुन का पेड़ आमतौर पर
सभी जगह पाया जाता है। परंतु अधिकांशतः यह मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब,
उत्तर प्रदेश और बिहार में मिलता है। अकसर नालों के किनारे लगने वाला
अर्जुन का पेड़ 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। इस पेड़ की छाल बाहर से सफेद,
अंदर से चिकनी, मोटी……………… अरलू : अग्निदीपक (भूख को बढ़ाने वाला), कषैला,
ठण्डी, वात कफ, पित्त तथा खांसी नाशक है। अरलू का कच्चा फल, मन को अच्छा
लगने वाला, वात तथा कफ नाशक है। पका फल गुल्म (वायु का गोला), बवासीर,
कीड़ों को नष्ट……………… अरनी : अरनी की दो जातियां होती है। छोटी और बड़ी।
बड़ी अरनी के पत्ते नोकदार और छोटी अरनी के पत्तों से छोटे होते है। छोटी
अरनी के पत्तों में सुगंध आती है। लोग इसकी चटनी और शाक भी बनाते है।
सांसरोग वाले को……………… अशोक (ASHOK TREE) : ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़
के नीचे बैठने से शोक नही होता, उसे अशोक कहते है, अर्थात जो स्त्रियों के
सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है। अशोक का पेड़ आम के
पेड़ की तरह सदा हरा-भरा रहता……………… अस्वकर्णिक (SALTREE) : अस्वकर्णी
(शाखू) का स्वाद खाने में कषैला होता हैं। घाव, पसीना, कफ, कीड़े को नष्ट
करने वाला, बीमारीयों (विद्रधि), बहिरापन, योनि रोग तथा कान के रोग
नष्ट……………… अश्वागंधा Winter Cherry : सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषतः
शुष्क प्रदेशों में असगंध के स्वयंजात वन्यज या कृशिजन्य पौधे 5,500 फुट
ऊंचाई तक पाये जाते है। वन्यज पादपों की अपेक्षा कृशिजन्य पौधे गुणवत्ता की
दृष्टि से उत्तम होते है, परन्तु तैलादि के……………… अतिबला (खरैटी)
(HORNDEAMEAVED SIDA) : चारों प्रकार की वला-शीतल,मधुर, बल तथा कांतिकर,
चिकनी, भारी (ग्राही), खून की खराबी तथा टी0 बी0 के रोगों में सहायक होता
है।……………… अतीस (ACONITUM HETEROPHYLLUM) : भारत में हिमालय प्रदेश के
पश्चिमोत्तर भाग में 15 हजार फुट की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसके पेड़ो की
जड़ अथवा कन्द को खोदकर निकाल लिया जाता है, उसी को अतीस कहते है। कन्द का
रंग भूरा और स्वाद कुछ……………… आयापान (AYAPAN) : आयापन वास्तव में अमेरिका
का आदिवासी पौधा है, परन्तु अब सम्पूर्ण भारतवर्ष के बगीचों में अन्दर
उगाया जाता है। बंगाल में विशेषतः यह रोपा हुआ और जंगली………………
आयुर्वेदिक औषधियां – भाग: 2 बाजरा :
बाजरा भारत में सभी जगह पायी जाती है। यह मेहनती लोगों का एक प्रमुख आहार
होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कुछ लोगों
का एक प्रमुख आहार होता है। बाजरे की रोटी पर घी या तेल……………… बारतग :
बारतग एक प्रकार की लता होती है, जिसके पत्ते दिखने में बकरे के जीभ के
समान लगता है। यह बूंटी बागों मे……………… बबूल : वास्तव में बबूल
रेगिस्तानी प्रदेशो का पेड़ है। बबूल के पेड़ की छाल एवं गोंद प्रसिद्ध
व्यावसायिक द्रव्य है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती है। यह कांटेदार पेड़
होते हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में बबूल के लगाये हुए तथा जंगली पेड़………………
बबूल का गोंद : बबूल की गोंद का प्रयोग करने से छाती मुलायम होती है। यह
मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है। यह आंतों को भी मजबूत बनाता है। यह
सीने के दर्द को समाप्त करता है तथा गले की आवाज को साफ करता है।
इसका……………… बबूना देशी या मारहट्ठी : बाबूना देशी(मारहट्ठी) पेट के अन्दर
की गांठों को खत्म करता है। इसके सेवन करने से कफ और वात को दस्त के रुप
में बाहर निकालता है।……………… बच : बच शरीर के खून को साफ करती है। इससे
धातु की पुष्टि होती है। बच कफ(बलगम) को हटाती है और गैस को समाप्त करती
है। दिल और दिमा को कफ के रोगों से दूर करती है। फलिज और लकवा से पीड़ित
रोगियों के लिए……………… वेदमुश्क : वेदमुश्क गांठों को तोड़ता है, दिमागी और
गर्मी के दर्द को राहत देता है, दिल और पेट के कल पुरजों का बल बढ़ाता है।
वेदमुश्क का रस काफी अच्छा होता है तथा यह मन……………… बादाम : बादाम के पेड़
पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसके तने मोटे होते
हैं। इसके पत्ते लम्बे, चौड़े और मुलायम होते हैं। इसके फल के अन्दर की
मिंगी को बादाम कहते हैं। बादाम के पेड़ एशिया में ईरान, ईराक……………… बड़हर
: आयुर्वेद के अनुसार कच्चा बड़हर शरीर के लिए गर्म होता है। यह शरीर में
देर से पचाता है। यह शरीर के वात, कफ और पित्त के विकारों को दूर करता है।
यह खून में उत्पन्न विकारों (खून की खराबी) को दूर करता है। बड़हर………………
बड़ी इलायची : इलायची अत्यंत सुगन्धित होने के कारण मुंह की बदबू को दूर
करने के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। इसको पान में रखकर भी खाते हैं। सुग्न्ध
के लिए इसे शर्बत और मिठाइयों में मिलाते हैं। मासालों तथा औषधियों में
भी……………... बहेड़ (Beleric Myrobolam) (Terminalia Belerica) : बहेड़ा के
पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लम्बे होते हैं। इसके पेड़ 60 से 100 फूट तक
ऊंचे होते हैं और इसके छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। बहेड़ा के पेड़
पहाड़ों और ऊंचे भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ
के लिए लाभदायक होता है। इसके……………… बहमन लाल : इन्द्र जव और मछली से
बहमन लाल की तुलना की जा सकती है। यह धातु को पुष्ट करता है तथा शरीर को
मोटा ताजा और बलवान बनाता है। यह खून को साफ करता है और उसकी बीमारी को दूर
करता है। यह मानसिक……………… बहमन सफेद : बहमन सफेद धातु को पुष्ट करता है।
यह शरीर को मोटा, ताजा और बलवान बनाता है। यह गर्मी अधिक पैदा करता है और
दिल-दिमाग(मन और मस्तिष्क) को बलवान बनाता है। यह गैस को दूर करता है तथा
कफ……………… वज्रदन्ती : वज्रदन्ती के प्रयोग से दांत के रोग ठीक हो जाते
हैं। इसके पत्तों और पानी को कत्था डालकर उबालने पर गुनगुने पानी से कुल्ली
करने से दांतों से खून का गिरना……………… बकाइन/ बकायन का फल : बकायन का
पेड़ बहुत बड़ा होता है। नीम की तरह बकायन के पत्ते भी गांवों में पाये जाते
हैं। इसके पत्ते कड़वे नीम के समान तथा आकार में कुछ बड़े होते हैं। बकायन की
लकड़ी का प्रयोग इमारती कामों के लिए……………… बकरी का दूध : बकरी का दूध मन
को प्रसन्न रखता है। मुँह में खांसी के साथ आने वाले खून के लिए बहुत ही
लाभकारी होता है। बकरी का दूध फेफड़ों के घाव और गले की पीड़ा को दूर करता
है। यह पेट को शीतलता प्रदान करता है। बकरी……………… बकुची(बावची) (Esculeut
Fiacourtia) (Fabaceae)(Psoralia Corylifolia) : बकुची के पौधे पूरे भारत
में कंकरीली भूमि और झाड़ियों के आसपास उग आते हैं। कहीं-कहीं पर इसकी खेती
भी की जाती है। औषधि के रुप में इसके बीज और बीजों से प्राप्त तेल का
व्यवहार किया जाता है। बकुची पर शीतकाल……………… बाल : आग से जले हुए घाव पर
बाल लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। बालों को पीसकर सिरका में मिलाकर
फोड़े-फुंसियों में लगाने से आराम मिलता है। यह बरबट की सूजन को मिटाता है।
इसकी बारीक पिसी हुई चुटकी……………… बालछड़ : यह दिल और दिमाग को मजबूत और
शक्तिशाली बनाता है। बालछड़ के सेवन से आमाशय पुष्ट होता है और पथरी को
गलाता है। यह मुँह की दुर्गन्ध को दूर करता है। इसका सुरमा बनकर लगाने से
आँखों की देखने की……………… बालगों : यह दिल और दिमाग को मजबूत और शक्तिशाली
बनाता है। यह पागलपन और दिल की घबराहट को दूर करता है। यह दस्त के लिए
गुलाब के रस के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए। यह पेचिश और पेट के मरोड़ को
खत्म……………… बालू : बालू ठंडा होता है। यह गर्मी को समाप्त करता है तथा
फोड़ों को ठीक करता है। यह घावों मुख्य रुप से सीने के घावों को भरता है।
इससे सिकाई करने से वात रोग समाप्त हो जाता है। आमवात(गठीया) और जलोदर(पेट
में……………… बालूत : बालूत से कब्ज पैदा होती है तथ यह दस्तों को रोकता है।
यह शरीर के किसी भी भाग से खून का निकलना बन्द करता है और यह मुख्यतः मुँह
से निकलने वाले खून को बन्द करता है। यह आंतों के घावों और उससे पैदा
हुए……………… बन चटकी : बन चटकी के फूल और पत्तों को पीसकर किसी भी प्रकार
के सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है। इससे पेशाब खुलकर आता है। प्रसव के
दौरान गर्भवती महिला को इसे……………… बनकेला : बनकेला के विभिन्न गुण होते
हैं। यह ठंडक प्रदान करती है। बनकेला खाने में मीठा और स्वादिष्ट होता है
तथा इसके फल रस से भरा होता है। यह शरीर को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है।
यह मनुष्य की धातु शक्ति को……………… बांदा : बांदा, बलगम, वात, खूनी विकार
फोड़े और जहर के दोषों को समाप्त करता है। बांदा भूत से संबंधित परेशानियों
को दूर करता है। वंशीकरण आदि कार्यो में इसका प्रयोग किया जाता है। यह
वीर्य को मजबूत करता है और बढ़ाता……………… बंडा आलू : बंडा आलू स्त्री
प्रसंग की इच्छा को बढ़ाता है। यह नपुंसकता को दूर करता है। बंडा आलू खून की
बीमारी यानी खून के फसाद को मिटाता है तथा यह पेशाब का रुक-रुक कर आनी
(मूत्रकृछ)की बीमारी को खत्म करता……………… बन्दाल Bristilufiya,
Lyufayekineta : बन्दाल कड़वी, वमनकारक, बलगम, बवासीर, टी.बी. हिचकी, पेट
के कीड़ों तथा बुखार को समाप्त करता है। इसका फल गुल्म, दर्द तथा बवासीर को
दूर करता है।……………… बंगलौरी बैंगन : बंगलौरी बैंगन का कर्नाटक में दाल,
चटनी व सब्जियों को बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसमें पानी का तत्व
लगभग 93 प्रतिशत होता है और इसमें कैल्शियम भी पाये जाते हैं। कम कैलोरी
वाली सब्जी होने के कारण यह……………… बनियाला : यह पित्त को नष्ट करता है।
यह पित्त से पीड़ित रोगियों के लिए यह बहुत ही लाभकारी होता है।……………… बांझ
खखसा : बांझ खखसा बलगम और स्थावर विषों (जहरों) को समाप्त करती है। पारे
को बांधता, घावों को शुद्ध(साफ) करत है, सांप के जहर पर इसको लगाने से जहर
का असर उतर जाता है। यह आँखों की बीमारी, सिर के रोग, कोढ़, खून………………
बनककड़ी : यह गर्म तथा कड़वी होती है। यह भेदक, बलगम को खत्म करने वाले, पेट
के कीड़े और खुजली को दूर करता है तथा बुखार को खत्म करता है।………………
बनपोस्ता : बनपोस्ता आँखों के घावों को ठीक करता है और मुँह में लार की
मात्रा को बढ़ाता है। बनपोस्ता एक प्रकार की घास होती है, जो बिल्कुल
पोस्तादाना के समान होती है।……………… बांस (Bambu), (Bambu savlgerees) :
बांस का पेड़ भारत में सभी जगहों पर पाया जाता है। यह कोंकण(महाराष्ट्र) में
अधिक मात्रा में पाया जाता है। यह 25-30 मीटर तक ऊंचा होता है। इसके पत्ते
लम्बे होते हैं। बांस का पेड़ बहुत मजबूत होता है। इसका अन्दाज इस………………
बंशलोचन : बंशलोचन शरीर की धातुओं को बढ़ाता है। यह वीर्य की मात्रा में
वृद्धि करता है और धातु को पुष्ट करता है। बंशलोचन स्वादिष्ट और ठंडा होता
है तथा प्यास को रोकती है। बंशलोचन खाँसी, बलगम, बुखार, पित्त खून
की……………… बरक : बरक प्यास को बढ़ाता है। दाँतों के दर्द को रोकता है,
हाजमा ठीक करता है, मेदा(आमाशय) को बलवान बनाता है। गर्मी के बुखार और सूखी
तथा गीली खांसी में यह फायदा करती है। अगर गले में जोक फस जायें तो
यह……………… बर्फ : प्रसव के समय शिशु का सांस न लेना बच्चे के जन्म के बाद
बच्चा न रोता हो और सांस भी न ले रहा हो और वह जिंदा हो तो, उसके गुदा
द्वार पर बर्फ का टुकड़ा रख दें। इससे बच्चे की सांस चलने लगेगी और रोने
लगेगा।……………… बायबिडंग (गैया, बेवरंग) (EMBELIA ROBUSTA) : Â बायबिडंग
(गैया, बेवरंग), वातानुमोलक, कोष्ठवात, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला,
बवासीर तथा सूजन में विशेष रुप से……. …. बैद लैला (Salix Tetrasperma) : Â
बेद लैला के लगभग सभी गुण बेद-मुश्क के जैसे ही होते है। बेद लैला छाल का
काढ़ा कड़वा तथा बुखारनाशक होता है। इसके फूलों का रस बेद-मुश्क के रस के
समान ही जलननाशक……. …. बेद-मुश्क (Salix Caprea) : Â बेदमुश्क चिकना,
कड़वा, तीखा, ठंडा, वीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, पाचन शक्ति
बढ़ाने वाला, जलन को समाप्त करने वाला, लीवर को बढ़ाने वाला, खून को जमाने
वाला, मूत्रवर्द्धक, कामवासना को……. …. बेद-सादा (SALIX ALBA) : Â बेद
सादा ठंडा, रुखा, कड़वा, तीखा, सुगंधित, जलन को शांत करने वाला, दिल और
दिमाग के लिए ताकत, सौमनस्यजनक, मूत्रवर्द्धक, दर्द को दूर करने वाला और
पैत्तिक बुखार……. …. बेकल (विंककत) (GYMNNOSPORIA MONTANA) : Â बेकल के
पत्तों में भी कई गुण मौजुद होते है। खून की खराबी, बवासीर, पेचिश, पीलिया,
सूजन और पित्तविकार पर इसके पत्तों के काढ़े में शक्कर मिलाकर पिलाते है।
इससे पाचन शक्ति……. …. बेलन्तर (DICHROSTACGYS CINEREA) : Â बेलन्तर का फल
तीखा, गर्म, खाने में कड़वा, भोजन की पाचन शक्तिवर्द्धक, मलरोधक है।
स्त्रियों के योनिरोग, वातविकार, जोड़ो का दर्द और पेशाब के रोगों में भी…….
…. भगलिंगी (BHANGLINGES) : Â भगलिंगी उपलेपक, सूजन को दूर करने वाला और
चिरगुणकारी पौष्टिक है। भूख ना लगना और भोजन करने का मन ना करना के रोग में
भगलिंगी की जड़ को काली मिर्च……. …. भटवांस (Dolichos Lablab) : Â भटवांस
भारी, रुखा, मीठा, तीखा, चरपरा, उष्णवीर्य, कड़वा, खाने में खट्टा, दस्त
लाने वाला, स्तनों में दूध की वृद्धि, पित्त और खून बढ़ाने वाला,
टट्टी-पेशाब को रोकने वाला, कफ विकार, सूजन, जहर को……. …. भूतकेशी
(CORYDALIS GOYANIANA) : Â भूतकेशी की जड़ पौष्टिक, मूत्रवर्द्धक, धातु
परिवर्तक और बुखार को दूर करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसे उपदंश की
विकृति, कंठमाला और चर्म रोगों को समाप्त करने के लिए……. …. भोरंग इलायची
(AMOMUM AROMATICUM) : Â भोरंग इलायची के बीज संकोचक और बलकारक होते है।
इसके चूर्ण का मंजन करने से दांत दृढ़ और चमकीले रहते है। इसके रासायनिक
तत्त्व बड़ी इलायची के रासायनिक तत्त्वों से मिलते हुए होते हैं। चीनी
नागरिक इसके बीजों का……. …. भुंई आंवला लाल (PHYLLANTHUS URINARIA) : Â
भुंई आंवला का रस मीठा, अनुरस, कड़वा, रुचिकर, छोटा, शीतवीर्य,
पित्त-कफनाशक, रक्तसंचार और जलन को नष्ट करता है। यह आंखों के रोग, घाव,
दर्द, प्रमेह, मूत्ररोग, प्यास, खांसी तथा विष……. …. भुंई कंद (पहाड़ी कंद)
(SCILLA INDICA) : Â भुंई कंद (पहाड़ी कंद) में प्रायः सभी प्रकार के वे
तत्व उपस्थित होते हैं जो केली कंद के अन्दर पाये जाते हैं। अंतर केवल इतना
होता है कि केलीकंद के ऊपर झिल्ली रहती है और भूमि कंद में……. …. भुंई
आंवला बड़ा (PHYLLANTHUS SIMPLESE) : Â भुंई आंवला बड़ा का पंचांग जीरा और
मिश्री तीनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते है। इसे एक चाय के चम्मच
के बराबर मात्रा में पीने से सूजाक रोग……. …. बिधारा (समुद्रशोष)
(ARGYREIA SPECIOSA) : Â बिधारा (समुद्रशोष) की जड़ और लकड़ी स्निग्ध, कडुवा,
तीखा, कषैला, मधुर, उष्णवीर्य, कफ-नाशक, उत्तेजक, पाचन शक्तिवर्द्धक,
अनुलोमक, दस्तावर, मेध्य, नाड़ी-बल्य, धातुवर्द्धक, गर्भाशय की सूजन तथा…….
…. भुंई चम्पा (KAEMPFERIA ROTUNdA) : Â आयुर्वेदिक मतानुसार यह वनस्पति
सूजन को नष्ट करने वाली और घाव को भरने वाली होती है। इसके फल की पुल्टिस
बनाकर फोड़ों पर रखने से फोड़ें फूट जाते है। इसके एक पूरे पौधे को पीसकर…….
…. बिच्छू बूटी (GIRARDIUIA HETEROPHYLLA) : Â बिच्छू बूटी उष्ण वीर्य,
वातकफनाशक और पित्त को बढ़ाने वाला होता है। इसके सूखे पत्तों की चाय पीने
से कफजन्य बुखार दूर हो जाता है। वातरोग, श्वांस रोग तथा खांसी में……. ….
बिदारीकंद (भुई कुम्हड़ा) (IPOMOEA PANICULATA) : Â बिदारीकंद स्वाद में
कडुवा और तीखा होता है तथा यह कषैला, मधुर, शीतवीर्य, स्निग्ध, अनुकुल,
पित्तशारक (पित्त से उत्पन्न कब्ज को नष्ट करने वाला), वीर्यवर्द्धक,
कामोत्तेजक, रसायन (वृद्धावस्था नाशक औषधि), बलवर्द्धक, मूत्रवर्द्धक…….
…. बिही (cydionia vulgaris) : Â बिही अग्निमांद्य, अरुचि, उल्टी, प्यास,
पेट दर्द, मस्तिष्क विकार, बेहोशी, सिरदर्द, हृदय दुर्बलता, रक्तविकार,
यकृतविकार, खून की कमी, रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ, पैत्तिक विकार, सामान्य
दुर्बलता……. …. बिखमा (ACONITUM PALMATUM) : Â बिखमा तीखा, कटु विपाक,
उष्णवीर्य, कफवातहर, पाचन, संकोचक, कटु, पौष्टिक, दर्दनाशक, पेट के कीड़े,
बुखार, अग्निमांद्य, अजीर्ण, अफारा, अतिसार (दस्त) ग्रहणी, उल्टी, हैजा,
आमाशय तथा आंतों से……. …. बिल्ली लोटन (CYDONIA VULGARIS) : Â बिल्ली लोटन
प्रकृति में गर्म, रुखा, उत्तेजक, हृदय के लिये लाभकारी, रक्तशोधक, मुंह
की दुर्गन्ध को दूर करने वाला, श्वांसरोग नाशक, स्मरणशक्तिवर्द्धक, आमाशय
और कामशक्ति को……. …. बिना (AVICENNIA OFFICINALIS) : Â चेचक से पीड़ित
रोगी को इसकी छाल का सेवन करने से लाभ मिलता है। शरीर के घावों और फोड़ों को
पकाने के लिए “बिना” के कच्चे फलों या बीज को पीसकर……. …. बिरंजासिफ
(पहला घास) (ACHILLEA MILLEFOLIUM) : Â बिरंजासिफ के फूल गर्म प्रकृति के
रुखे और स्वाद में कड़वे होते है। यह पेट को साफ करता है तथा मासिक धर्म की
अनयिमितता, मासिक स्राव के समय होने वाला दर्द, घाव को भरना, मूत्र लाना,
उत्तेजक, पेट के कीड़ों को……. …. बिषफेज (POLYPODIUM) : Â बिषफेज प्रकृति
में गर्म, रुखा, स्वाद में तीखा, हल्का कषैला होता है। यह गले में जमे हुए
कफ गलाकर बाहर निकाल देता है। यह दर्द को दूर करने, वायुरोग को नष्ट करने,
सूजन को दूर……. …. ब्रह्मदंडी (TRICHOLEPSIS GLABERRIMA) : Â ब्रह्मदंडी
तीखा, उष्णवीर्य, कामवासना को बढ़ाने वाला, याददाश्त का बढ़ाने वाला, शरीर को
मज्जातंतुओं को मजबूत बनाने वाला, रक्त को शुद्धि करने वाला, घावों को
भरने वाला, कफ, वात, सूजन……. …. ब्रह्मकमल (SAUSSUREA OBVALLATA) : Â
ब्रह्मकमल के फूलों के तेल से सिर की मालिश करने से मिर्गी के दौरे तथा
मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। ब्रह्मकमल के फूलों की राख को लीवर की
वृद्धि में शहद के साथ……. …. बुई (OTOSTEGIA LIMBATA “BENTH) : Â यह जड़ी
बूटी हृदय के लिए बहुत ही लाभकारी होती है। यदि किसी रोगी का हृदय अधिक
दुर्बल और अव्यवस्थित हो तथा बुखार भी आता हो तो उसके लिए इसका……. ….
बरागद(वट) Benyan tree, Ficus Indicus : भारत में बरगद के पेड़ को पवित्र
माना गया है, इसे पर्व व त्यौहारों पर पूजा जाता है। इसके पेड़ बहुत ही बड़ा व
विशाल होता है। बरगद की शाखाओं से जटाएं लेटकर जमीन तक पहुँचती है और तने
का रुप ले लेती……………… ब्रह्मदण्डी : ब्रह्मदण्डी खून को साफ करता है,
घावों को भरता है, वीर्य की कमजोरी को दूर करता है। यह दिमाग और याददाश्त
की शक्ति को बढ़ाता है। त्वचा के सफेद दाग और बीमारियों को दूर करता है। यह
गले और चेहरे को साफ……………… बरही : बरही को खाने से दिल खुश होता है। यह
मेदा(आमाशय) और जिगर को ताकत देता है। इससे शरीर के मुख्य स्थान को बल
प्रदान करता है, गले की आवाज को साफ करता है, खाँसी, दमा और कफ (बलगम) को
दूर करत……………… बरियारी : खिरैटीपानी बरियारी स्निग्ध है। यह रुची को
बढ़ाती है और शरीर को मजबूत बनाती है। यह वीर्य को बनाती है। यह ग्राही,
वात, पित्त् को खत्म करता है और पित्तासार को खत्म करता है। यह कफ(बलगम) को
दूर करत……………… बरसंग यानी मीठा नीम : मीठा नीम सन्ताप, कोढ़(कुष्ठ) और
रक्तविकार(खून के रोग) को खत्म करता है। यह पेट के कीड़े, भूत बाधा और कीड़ो
के काटने से उत्पन्न जहर को खत्म करता……………… बथुआ (White Goose Foot) :
बथुआ दो प्रकार का होता है जिसके पत्ते बड़े व लाल रंग के होते हैं। उसे गोड
वास्तुक और जो बथुआ जौ के खेत में पैदा होता है। उसे शाक कहते हैं। इस
प्रकार बथुआ छोटा, बड़ा, लाल व हरे होने के भेद से दो प्रकार के होते………………
बथुवे के बीज : बथुए के बीज गांठों को दूर करता है। यह दस्तों को लाने
वाला, जलोदर और कांबर के लिए बहिता ही लाभकारी होता है। यह पेशाब करने में
परेशानी को दूर करता है। बथुआ का बीज गुर्दे और आंतों की कमजोरी को
दूर……………… बवई : यह चरपरी, गर्म, कड़वी होती है और भूख को बढ़ाती है। बवई
दिल के लिए फायदेमंद है। यह जलन पैदा करती है, खूजली, वमन(उल्टी) और विष को
दूर करती है। यह……………… बावची : दस्तावर(पेट को साफ करने वाला) और दिल के
लिए अच्छा होता है, सूखे, कफ(बलगम), रक्तपित(खून पित्त), साँस(दमा),
कुष्ठ(कोढ़), प्रमेह(वीर्य विकार), ज्वर(बुखार)……………… बायबिडंग Baybidang,
Embeliaribes : भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में बायबिडंग की मोटी वा बड़ी-बड़ी
लतायें, अपने आप उगकर पास के पेड़ के सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाती है। इसकी
शाखाएं खुरदरी, गठों वाली, बेलनाकार, लचीली और पतली होती है। इसके पत्ते 2
से……………… बीजबन्द : यह वीर्य को बढ़ाता है। इससे वीर्य खूब पैदा होता है
और गाढ़ा होता भै। यह पीठ की हड्डियों और कमर को बलवान बनाता है……………… बेल
Aegle marmelos (1) correa, Rutaceae, Bael fruit, bael : बेल का पेड़ बहुत
प्राचीन काल से है। इस पेड़ में लगे हुए पुराने पीले फल दुबारा हरे हो जाते
हैं तथा इसको तोड़कर सुरक्षित रखे हुए पत्ते 6 महीने तक ज्यों का त्यों बने
रहते हैं और यह गुणहीन नहीं होता है। इस पेड़ की……………... वेलिया पीपल :
वेलिय पीपल हल्का, स्वादिष्ट कड़वा और गर्म होता है। यह मल को रोकता है।
वेलिया पित्त जहर और खून की खराबी से होने वाले रोगों को दूर करता
है……………… बैंगन Eggplant : बैंगन का लैटिन नाम- सोलेनम मेलोजिना है और
अग्रेजी भाषा में इगपलेंट नाम से जाना जाता है। भारत में प्राचीनकाल से ही
बैंगन सर्वत्र होते हैं। बैंगान की लोकप्रियता स्वाद और गुण के नजर से ठंडी
के मौसम……………… बेंत : दोनों तरह के बेंत शीतल, कड़वे, चरपरे, कफ(बलगम),
वात, पित्त, जलन, सूजन, बवासीर, पथरी, पेशाब करने में परेशानी, दस्त, रक्त
विकार, योनि रोग, कोढ़ और जहर……………… बेर : बेर का पेड़ हर जगह आसानी से
पाया जाता है। बेर के पेड़ में काँटे होते हैं। बेर का आकार सुपारी के बराबर
होता है। इसके अनेक जातियां है। जैसे- जंगली बेर, झरबेरी, पेवंदी, बेर
आदि। इसके पेड़ पर बहुत अच्छी……………… बैरोजा : बैरोजा मधुर, कड़वा, स्निग्ध,
दस्तावर, गर्म, कषैला, पित्त और वातकारक, सिर रोग, आँखों का रोग, गले की
आवाज, कफ(बलगम), जू(लीख) खुजली और घाव को दूर……………… बर बेल : यह भूख को
बढ़ाता है। बरबेल का रस पीने और खाने में कड़वा होता है। यह मल को रोकता है।
वात से होने वाले रोगों को रोकता है। मूत्राशय, पथरी और पेशाब के
रोगों……………… भांरगी Turk� turban moon, clerodenrum serratu moon :
भांरगी रुचिकारी. अग्निदीपक(भूख को बढ़ाने वाली), गुल्म(न पकने वाला फोड़ा),
खून की बीमारी, श्वास(दमा), खाँसी, कफ, पीनस(जुकाम), ज्वर,कृमि,
व्रण(जख्म), दाह……………… भद्रदन्ती : भद्रदन्ती चरपरी, गर्म, दस्तावर,
कीड़ों को मारने वाले, दर्द को दूर करने वाला, कोढ़, आमावात(गठिया) और उदर
रोग(पेट के रोग) दूर करने वाल होता……………… भद्रमोथा : भद्रमोथा चरपरा,
दीपन, पाचक, कषैला, रक्तपित्त, प्यास, बुखार, आरुचि(भोजन करने का मन न
करना) और कीड़ों को दूर करता……………… भाही जोहरा : भाही जोहरा सभी प्रकार के
कफ और गाढ़े खून को दस्त के रास्तें बाहर निकालता है। यह गैस को मिटाता है
और गठिया और कमर दर्द को दूर करता है।……………… भांग Indian hemp, knavish
indika : भांग के स्वयंजात पौधे भारत में सभी जगह पाये जाते हैं। विशेषकर
भांग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल एवं बिहार में अधिक मात्रा में पाये जाते
हैं। भांग के नर पैधे के पत्तों को सुखाकर भांग तथा मादा पौधे की रालीय
पुष्प……………… भांग के बीज : भांग के बीजों का अधिक मात्रा में उपयोग करने
से पेशाब अधिक मात्रा में आता है। यह स्त्री प्रसंग में वीर्य को निकलने
नहीं देता है। यह वीर्य को सूखा देता है और धातुओं को फाड़ता है। यह आँखों
की रोशनी को कम……………… भांगरा Treling eklipta, Eklipta postrata : घने
मुलायम काले कुन्तल केशों के लिए प्रसिद्ध भांगरा के स्वयंजात क्षुप 6,000
फुट की ऊंचाई तक आद्रभूमि में जलाशयों के समीप 12 महीने उगते हैं। इसकी एक
और प्रजती पीत भृंगराज पाई जाती है जिसके पौधे बंगाल……………… बाबूना गाव
(COTULA ANTHMOIDES) : Â बाबूना गाव प्रकृति में गर्म और रुखा होता है।
इसके गुण बाबूना के ही समान होते हैं। यह कफ और वात के विकार को मल के
साथ……………… बच सुगंधा (KAEMPFERIA) : Â श्वांस और खांसी से पीड़ित रोगी को
बच सुगंधा के जड़ के टुकड़े को पान के बीड़े के साथ रखकर चबाकर खाने से लाभ
होता है। इससे मुंह से सुगंध……. …. बच्छनाग (श्वेत या दूधिया) : Â बच्छनाग
(श्वेत या दूधिया) के गुण काले बच्छनाग के गुणों के समान परन्तु विशेष
होते हैं। इसे थोड़ी सी मात्रा में इसे बार-बार देने से दर्द तथा रक्त के…….
…. काला बच्छनाग (ACONITUM FEROX) : Â काला बच्छनाग लघु, रुखा, गर्म,
विपाक, तीखा, कषैला, मादक, होता है। यह अपने रुक्ष गुण से वात को, उष्ण गुण
से पित्त तथा रक्त को कुपित करता है। तीक्ष्ण गुण से यह बुद्धि को……. ….
बड़ा बथुआ (CHENOPUDIUM) : Â बथुआ, लघु, स्निग्ध, मधुर, कटु, विपाक,
शीतवीर्य, वात-पित्त-कफ नाशक, पेट को साफ करने वाला, दीपन, पाचक, अनुलोमक,
यकृत उत्तेजक, पित्त सारक, मल-मूत्र को शुद्धि करने वाला, आंखों के लिए
लाभकारी……. …. बलसां (BALSEMODENDRON OPOBALSAMUM) : Â बलसा का तेल, गर्म,
स्निग्ध, कफनिवारक, बाजीकारक, मस्तिष्क बलदायक, सूजाक, सूजन, मिर्गी, तथा
घाव आदि के लिए विशेष उपयोगी होता है। यह श्वांस-खांसी, जूकाम, बूढ़ों की…….
…. बादाम देशी (TERMINALIA CATAPPA) : Â देशी बादाम की छाल-ग्राही,
संकोचक तथा मूत्रवर्द्धक होता है। इसकी छाल का काढ़ा सूजाक और प्रदर में
लाभकारी होता है। इसके बने हुए छालों से घावों को धोने से घाव जल्दी भर
जाते हैं। काढ़े का कुल्ला करने से……. …. बन उड़द (JASSIEUA SUFFRUTICOSA) :
 बन उड़द लघु, स्निग्ध, तिक्त, मधुर, विपाक, शीतवीर्य, वात-पित्तशामक,
कफवर्द्धक, उत्तेजक, स्नेहन, अनुलोमन, ग्राही, रक्तवर्द्धक व शोधक,
रक्तपित्त नाशक, सूजन को दूर करने वाला, कामवासना को……. …. बनफ्शा (VIOLA
ODORATA) : Â बनफ्सा कफ और शीत रोगों के लिए लाभकारी होता है। यह वातपित्त
को नष्ट करने वाला, कफ को दूर करने वाला, पित्तनाशक, अनुलोमन, रेचन, रक्त
के विकारनाशक, जलन को……. …. बंदाल (LUFFA ECHINATA) : Â बंदाल आकार में
छोटा, स्वाद में रुखा, तीखा, कडुवा, तीखा, उष्णवीर्य, वात, पित्त, कफ को
नष्ट करने वाल, उल्टी, रक्त को शुद्ध करने वाला, आंतों के कीड़ों को नष्ट
करना, सूजन को दूर करना, कफ को गलाकर बाहर निकालना, बंद माहवारी……. ….
बनमेथी (MELILOTUS INDICOM) : Â बनमेथी के सेवन करने से स्तनों में दूध की
वृद्धि होती है। यह घावों को शीघ्र भरने वाला होता है। इसकी जड़ का उपयोग
मेद को नष्ठ करने में किया जाता है तथा यह मूत्रवर्द्धक……. …. बादाम मीठा
(PRUNUS AMYGDALUS) : Â मीठा बादाम भारी, स्निग्ध, मीठा, गर्म, वायु
रोगनाशक, कफपित्त वर्द्धक, उत्तेजक, स्नेहन, लेखन, अनुलोमक, मल को आसानी से
निकालना, कफ को गला कर बाहर निकालना, मूत्रवर्द्धक, धातुकारक, बलवर्द्धक,
बाजीकारक, स्त्रियों के स्तनों में दूध की……. …. बादावर्द (VOLUTARELLA
DIVARICATTA) : Â बादावर्द पौष्टिक, पेट को साफ करने वाला, रक्तस्तम्भक,
दर्द को नष्ट करने वाला, गर्भधारण में सहायक तथा पुराने से पुराने अतिसार
को……. …. बधारा (ERIOLAENA QUNI) : Â बधारा कडुवा, तीखा, सुगंधित, संकोची,
पिच्छिल, शांतिवर्द्धक, धातुपरिवर्तक, मूत्रवर्द्धक, कामशक्तिवर्द्धक,
कफनाशक, कमर का दर्द, जोड़ों का दर्द, उपदंश, प्रमेह, सूजाक आदि……. ….
बादियान खताई (ILLICIUM VERUM) : Â बादियान खताई के फल मीठे, दीपन, पाचक,
उत्तेजक, दर्द को दूर करने वाला, उदर-वातहर, कफघ्न, मूत्रवर्द्धक, सारक है।
यह अपच, अग्निमांद्य, बुखार, अतिसार (दस्त), प्रवाहिका, आध्यान, जुकाम,
खांसी, आदि विकारों में……. …. बहमन सफेद (CENTAUREA) : Â बहमन सफेद लघु,
कसैला, मीठा, उष्णवीर्य, मधुऱ विपाक, वात, कफ, पित्तनाशक, दीपन (उत्तेजक),
अनुमोलन, रक्तस्तम्भक, वेदना स्थापक, धातुवर्द्धक, बालों की वृद्धि,
श्वासनलिका तथा अन्य अंगों की सूजन……. …. बैबीना (MUSSSAENDRA FRONDOS) : Â
बैबीना गर्म, कडुवा, कषैला, तीव्र गंध, कफ-वातनाशक, दीपन (उत्तेजक), सफेद
दाग, कफ, भूत-प्रेत, ग्रह-पीड़ा निवारक, धातु परिवर्तक, तथा मूत्रवर्द्धक
होता है। इसकी जड़……. …. बाकला (PHASSSEOLUS VOLGARIS) : Â बाकला की ताजी
फली अकेले या मांस के साथ पकाकर खाने से पुष्टि प्राप्त होती है। सूखे और
ताजे बीजों की सब्जी भी बनाते हैं। बाकला के सूखे बीजो के छिलके को
निकालकर……. …. बाकेरी मूल (CAESALPINIA DIGYNA) : Â बाकेरीमूल, उष्णवीर्य,
सांभक, वातनाशक, शोधक, त्वचा के विकार, कीटाणुनाशक और घाव को भरने वाला
होता है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से यह मदकारक (नशीला) प्रभाव
डालता है। इसका उपयोग करने से……. …. बनलौंग (JESSIEUA SUFFRUTICOSA) : Â
बनलौंग के पंचांग को पीसकर मट्ठे के साथ देने से रक्तातिसार, रक्तामातिसार,
कफ के साथ जाना आदि किसी भी अंग से होने वाले रक्तस्राव में लाभ होता है।
इसकी जड़ या छाल का काढ़ा……. …. बनमूंग (PHASEOLLOUS TRILOBUS AIT) : Â
बनमूंग आकार में छोटा, रुखा, तीखा, मधुर, शीतवीर्य, त्रिदोषनाशक
(वात-पित्त-कफ), दीपन (उत्तेजक), अनुलोमन, ग्राही, रक्त के विकार, जलन,
जीवनीय, रक्तपित्तनाशक, सूजन……. …. बराहंता (TRAGIA INVOLUCRATA) : Â शरीर
की त्वचा पर होने वाली खाज-खुजली, छाजन (त्वचा का रोग) तथा त्वचा के अन्य
विकारों को नष्ट करने के लिए इसकी जड़ को तुलसी के रस……. …. बाराही कन्द
(रतालू) (DIOSCOREA BULBIFERA) : Â बाराही कंद आकार में छोटा, स्निग्ध,
कडुवा, तीखा, मधुर, उष्णवीर्य, वात, पित्त, कफ को नष्ट करने वाला, दीपन
(उत्तेजक), ग्राही, रक्त संग्राहक, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, तथा…….
…. बराही कन्द (रतालू, भेवर कन्द) (TACCA ASPERA) : Â यह कडुवा, तीखा,
उष्णवीर्य, पित्तकारक, रसायन (वृद्धावस्थानाशक औषधि), कामोद्दीपक, वीर्य,
भूख और चेहरे की चमक बढ़ाने वाला होता है। यह सफेद दाग, प्रमेह, पेट के
कीड़े, बवासीर……. …. बारतंग (PLAANTAGO MAJUR) : Â बारतंग शीत, रुखा,
संग्राहक तथा दर्दनाशक होता है। गर्मी के कारण उत्पन्न अतिसार (दस्त) या
आमातिसार में तो ईसबगोल ही विशेष लाभदायक होता है किन्तु ठंड से उत्पन्न
दस्त में……. …. बरमूला (बरमाला) (CALLICARPA ARBOREA) : Â बरमूला की छाल
विशेषरुप से सुगंधित, कड़वी, पौष्टिक तथा त्वचा के विकारों को नष्ट करने
वाला……. …. बारतंग (PLAANTAGO LANCEOLATA) : Â बारतंग के पत्तों का ताजा
रस या सूखे पत्तों का लेप घावों पर करने से घावों की जलन, सूजनयुक्त चट्टे
या फोड़ों का दर्द नष्ट होता है। इसके रस घावों को धोने के लिए प्रयोग किया
जाता है जिससे घाव……. …. बसंत (HYPSRICOM PERFORATUM) : Â बसंत पौधे के
पत्तों का स्वाद तीखा होता है तथा ये पाचनशक्तिवर्द्धक, पेट के कीड़े,
बवासीर, कानों का दर्द, अतिसार (दस्त), बच्चों का कांच निकलना, योनि के घाव
तथा बिच्छु के विष……. …. बसट्रा (CALLICARPA LANATA) : Â बसट्रा की जड़
तथा छाल का काढ़ा बुखार, पित्त प्रकोप, यकृतावरोध, शीतपित्त और त्वचा के
रोगों में दिया जाता है। इसकी जड़ या छाल के चूर्ण के एक भाग मात्रा को लगभग
बीस भाग जल में……. …. बथुवा विदेशी (CHENOPODIUM AMBROSIOIDES) : Â बथुवा
(विदेशी) क्षारयुक्त, मधुर, बलवर्द्धक तथा त्रिदोष (वातपित्तकफ) नाशक होता
है। इसके पत्ते और कोमल डंठलों का साग भी बनाया जाता है। प्राचीनकाल में
आदिवासी लोग घरेलू इलाज……. …. बायविडंग (EMBELIA RIBES) : Â बायविडंग आकार
में छोटा, रुखा, तीखा, कडुवा, गर्म, कफनाशक, पाचक, दस्तावर, रक्तशोधक,
आंतों के कीड़ों को नष्ट करने वाला, मूत्रल (मूत्रवर्द्धक) होता है। इसके
अतिरिक्त यह……. …. भांट (CLERODENDRON INFORTUNATUM) : Â बच्चों के लंबे
पेट के कीड़ों वाले रोग में भांट के पत्तों के रस को पीसकर मिलाते है। पेट
के दर्द और दस्त में भांत की जड़ को तक्र में पीसकर मिलाते है। त्वचा के
रोगों में भांट का लेप त्वचा के……. …. बांझ ककोड़ा(बंध्या कर्कोटकी) :
बांझ ककोड़ा बलगम को दूर करने वाला, जख्मों को साफ करने वाला, सांपों के जहर
को समाप्त करने वाला होता है……………… भसींड़ : भसींड़ कषैला होता है, यह
मीठा, भारी तथा मल को रोकने वाला होता है। यह आँखों के लिए लाभकारी,
वीर्यवार्द्धक, रक्त पित्त, जलन, प्यास, बलगम और वातपित्त को दूर करती है।
यह गुल्म, पित्त, खाँसी, पेट के कीड़े,……………… भटकटैया : भटकटैया, कटैया,
वेगुना भटकटैय के ही नाम है। इसे भी कटेरी(चोक) का ही भेद है। यह जमीन से
2-3 फुट ऊंचा होता है। इसमें छोटे बैंगन जैसा फल लगता है और बैंगन जैसे ही
कटीले पत्ते होते हैं। इसमें पीले, चित्तीदार फल……………… भटकटैया बड़ी :
भटकटैया बड़ी के फल, कटु, तिक्त, छोटे, खुजली को नष्ट करने वाले,
कोढ़(कुष्ठ), कीड़े, बलगम तथा गैस को खत्म करने वाले होते हैं। इसके बाकी गुण
छोटी भटकटैया के,……………… भटकटैया छोटी : यह मल को रोकती है, दिल के लिये
फायदेमंद होती है, पाचक होता है। यह कफ(बलगम) और गैस को खत्म करती है।
भटकटैया कड़वी होती है। यह मुँह की नीरसता को दूर करती है, अरुची(भोजन करने
का मन न करना)……………… भटकटैया सफेद : भटकटैया सफेद चरपरी, गर्म,आँखों के
लिए फायदेमंद होती है। यह भूख को बढ़ाती है। यह गर्भ को स्थापन करने वाली
तथा पारे को बांधने वाली, रुचिकारक, कफ(बलगम) और वात को खत्म करने वाली है।
इसके गुण……………… भटवांस : यह मधुर, रूखा, खाने में खट्टी होती है। यह
बादी को दूर करता है और स्तनों में दूध भी बढ़ाती है। यह जलन, कफ(बलगम),सूजन
और वीर्य को खत्म करता है। भटवांस खून की खराबी को रोकता है, जहर और
आँखों……………… भिंडी : मधुमेह का रोग भिंडी के डांड काट लें। इन डांडो को
छाया में सुखाकर व पीसकर छान लें। इसमें बरबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर
आधा-आधा चम्मच सुबह खाली पेट ठंडे पानी से रोजाना फांकी लेने से मधुमेह का
रोग मिट जाता है।……………… भ्रमर बल्ली : भ्रमर बल्ली तीखी, गर्म, कड़वी और
रुचि को बढ़ाने वाली होती है। यह अग्नि को शांत करती है और गले के रोग को
दूर करती है। यह गले के सभी रोगों को नष्ट करती……………… भुंई खखसा : भुंई
खखसा सफेद दाग को खत्म करता है। यह शरीर के सभी अंगों को शुद्ध करती है। यह
जहर, दुर्गन्ध, खांसी, गुल्म और पेट के रोगों को ठीक करता है।……………… भूमि
कदम्ब : भूमि कदम्ब कड़वी, जख्म को सूखा देने वाला, शरीर को ठंडकता प्रदान
करने वाला, तीखा तथा वीर्य को बढ़ाने वाला होता है। यह जहर और सूजन को खत्म
करती है……………… भूरी छरीला : भूरी छरीला तीखा, शीतल और सुगन्ध देने वाला
होता है। यह हल्का और दिल के लिए हितकारी है। यह रुचि को बढ़ाता है और वात,
पित्त, गर्मी, प्यास, उल्टी आदि को दूर करता है। इसका प्रयोग सांस(दमा),
घाव, खुजली आदि के……………… भूसी(गेहूँ का चोकर) : यह सूजन और बलगम को
पचाती है और शरीर को शुद्ध और साफ करती है। यह छाती की खर-खराहट और पुरानी
खाँसी व धांस को बंद करती है। इसके साथ काला नमक मिलाकर पोटली बनाकर सेंकने
से रोंवों के मुँह……………… भूत्रण : भूत्रण तीखा, कड़वा, गर्म, दस्त को
लाने वाला और गर्मी उप्तन्न करने वाला है। यह अग्नि को प्रदीप्त करता है।
यह रूखा, मुखशोधक और अवृष्य है। यह मल को बढ़ाता है और रक्त पित्त को दूषित
करता है। यह गैस के रोगों को……………… बिछुआ घास : बिछुआ घास पिच्छिल खट्टी,
अन्त्रवृद्धि रोग को नष्ट करने वाली, शरीर को शक्तिशाली बनाले वाली,
बिविन्ध को नष्ट करने वाली, दिल के लिए लाभकारी तथा वस्तिशोधक है। यह पित्त
को ठीक रखता है तथा दिल को प्रसन्न रखता ……………… बिहारी नींबू : बिहारी
नींबू गैस, पित्त और बलगम तीनों ही रोगों को नष्ट करता है। इसका सेवन
क्षय(टी.बी) और हैजा से पीड़ित रोगी ले लिए बहुत ही लाभकारी होता है। विष से
पीड़ीत तथा मन्दाग्नि(भूख कम लगना) से ग्रसित रोगियों को……………… बिहीदाना
: इसका लुबाव गले की खरखराहट और गर्मी से होने वाली खाँसी के लिए अत्यंत
ही लाभकारी होता है। यह आमाशय में गर्मी उत्पन्न नहीं होने देता है। यह ठंड
लगकर बुखार आने, जलन, मुँह का सूखना और प्यास को रोकता……………… बिजौर मरियम
: बिहौर मरियम गांठों को गलाती है। गैस के रोगों को नष्ट करता है। यह
पसीना अधिक लाता है। दूध बढ़ाता है। बिजौर मरियम कांवर के लिए लाभदायक होता
है। इसकी घुट्टी पिलाने से बच्चों के दाँत आसानी से व शीघ्र ही………………
बिजौरे का छिलका : यह दिल को प्रसन्न रखता है। कब्ज उत्पन्न करता है। खून
को पित्त से साफ करता है। गर्मी से होने वाली वमन(उल्टी) को बंद करता है।
यह दिल और आमाशय को शक्तिशाली बनाता है। आंतों की गर्मी को शान्त करता
……………… बिलाई लोटन : बिलाई लोटन दिल और दिमाग को स्वस्थ्य व शक्तिशाली
बनाता है। यह आमाशय को मजबूत करता है और याददाश्त और बुद्धि में वृद्धि
करती है। बिलाई लोटन मन को प्रसन्न रखती है। यह कफ के सभी रोगों को
नष्ट……………… बिल्लौर : बिल्लौर सुरमा आँखों के अनेक रोगों को दूर करता है।
बिल्लौर गले में लटकाने से छोटे बच्चों के रोग, आँखें निकल आना, शरीर में
ऐंठन होना तथा सोते समय……………… बिनौला : बिनौला धातु को पुष्ट करता है और
संभोग में होने वाली सभी परेशानियों को दूर करता है। यह पेट और छाती को नरम
रखता है। गर्मी की खाँसी को दूर करता है और स्त्रियों की बेहोशी के लिए यह
बहुत ही लाभदायक है। यह ……………… बीरण गांडर : बीरण गांडर ठंडी होती है
तथा ठंडे बुखार को दूर करती है। इसकी गुण भी खश के गुणों के समान होते
हैं।……………… वृत्तगंड : वृत्तगंड मीठा और शीतल होता है। यह बलगम, पित्त और
दस्तों को खत्म करता है। यह खून को साफ करता है। यह खून सम्बन्धी समस्त
बीमारियों के लिए लाभदायक होता है। वृत्तगंड दो प्राकार का होता है, इन
दोनों में……………… बोल : बोल गैस से होने वाले रोगों को खत्म करता है। यह
सर्दी से होने वाली सूजन को भी समाप्त करता है और दिमाग को स्वस्थ करता है।
बोल का नशा करने से पेशाब और दस्त आता है। यह आंतों के दर्द और कीड़ों को
नष्ट करता……………… बूट : बूट का उपयोग करने से शरीर में खून, बलगम और पित्त
की मात्रा बढ़ती है। यह शरीर को शक्तिशाली बनाता है। यह धातु को पुष्ट करता
है और स्तम्भन शक्ति को बढ़ाता है। यह मुँह से निकलने वाली बदबू को खत्म
करता……………… ब्रह्मी : ब्राह्मी का पैधा हिमालय की तराई में हरिद्वार से
लेकर बद्रीबारायन के मार्ग में अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो बहुत
उत्तम किस्म का होता है। ब्राह्मी पौधे का तना जमीन पर फैलता है जिसकी
गांठों से जड़, पत्तियां, फूल……………… बूदर चमड़ा : बूदार चमड़े को जलाकर
घावों पर लगाने से घाव ठीक हो जाते हैं। इसके बर्तन में पानी पीने से
पागलपन खत्म हो जाता है……….. बुन : यह गले की आवाज को साफ करता है,
गांठों को तोड़ता है और दर्द को दूर करता है। बुन दिल को बलवान बनाता है और
मन को प्रसन्न रखता है। यह धातु को पुष्ट करता है, खून को साफ करता है और
पेशाब लाता है। यह ……………… बूरा : बूरा का उपयोग बलगम को नष्ट करने, सीने
की जकड़न को दूर करने और स्वभाव को कोमल(नर्म) बनाने में किया
जाता……आयुर्वेदिक औषधियां – भाग: 3 चम्पा : चम्पा के पेड़ बगीचों में
लगाये जाते है। इसके पत्ते लम्बे-लम्बे महुआ के पत्तों की भाति पीले रंग के
तथा कोमल होते हैं। इसके फूल पीले 4-5 पंखुडियों सहित 5-7 केसरों से युक्त
होते है। मालवा देश में इसकी उत्पत्ति अधिक ……………… चीड़ : चीड़ का बाहरी
उपयोग कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के काम में आता है जैसे
–पूतिकर(Antiseptic) (नाक से बदबूदार गंध आना) ,प्रदाह(जलन),
रक्त-वाहिनियों का. …. ……. …. चिलबिल : इसमें निम्न प्रकार के गुण पाये
जाते है जैसे –रूक्ष (रूखापन) (खुश्क),अनुकूल, छोटा,तेज (तीखा या तिक्त),
कटु-विपाक(खटा), उष्णवीय(गर्म प्रकृति वाला), कफ –पित्ताशामक… ……. ….
चिल्ला : चिल्ला गर्म प्रकृति वाला, मूत्रल (पेशाब की मात्रा बढ़ाने वाला),
रक्तशोधक (खून को सोखने वाला), कफवातनाशक(कफ को नष्ट करने वाला),
धातुपुष्टिकर (वीर्य को.. …. ……. …. चिरायता छोटा : चिरायता छोटा,तेज
(तिक्त या तीखा), शीतवीर्य(ठंडी प्रकृति वाला), दीपन( उत्तेजक),
पाचक,रूचिकर(हाजमे को ठीक करने वाला), पित्तशामक (पित्त को नष्ट करने
वाला…. ……. …. चिरयारी : यह स्वाद में तीखा (तिक्त, तेज), कड़वा(कसैली),
शीतल(ठंढा) होता है। तथा यह बल्यवर्धक (शरीर को शक्ति देने
वाला),वीर्यप्रद(वीर्य बनाने वाला), स्निग्ध(चिकना. …. ……. …. चियन :
इसका बीज दाहकारक(जलन को करने वाला), वामक (उल्टी को बन्द करने वाला )तथा
मछलियों को मारने वाला होता है। इसका बीज कटि कमर दर्द, संधिशूल.. …. …….
…. चोबहयात : खुश्क, दीपन्(उत्तेजक), पाचक, मूत्रल(अधिक मात्रा में पेशाब
आना), पसीना अधिक लने वाला, धातुपरिवर्तक(पेशाब में धातु बन्द करना),
हृद्य (लाभकारी), उष्ण(गर्म),…. ……. …. छोंकर : छोंकर छोटा, रूक्ष(रूखा),
इसका पका फल खट्टा, मीठा (मधुर), कषाय(कषैला) तथा शीतवीर्य (ठंडी प्रकृति
वाला), कफपित्त-शामक (कफ-पित्त-वात को नष्ट करने वाला…. ……. …. छिरबेल : Â
 छिरबेल में कई प्रकार के रोगों को ठीक करने के गुण पाए जाते है।
जैसे-शीतवीर्य आंत्र संकोचक ,धातुपरिवर्त्तक ,मधुमेह (खून में शर्करा का बढ़
जाना) ,मूत्रल (पेशाब को बढ़ाने वाला.. …. ……. …. चाय : चाय एक प्रकार के
पेड़ की पत्ती होती है। यह बहुत प्रसिद्ब है, जो बहुत मशहुर है। चाय नियमित
पीने के लिए नहीं है। यह आवश्कतानुसर पीने पर लाभदायक होता है। चाय वायु
और ठण्डी प्रकृति वालो के लिए हितकारी होती है……………… चकबड़ : चकबड़
स्वादिष्ट, रुखा, हल्का होता है। यह वातपित्त, दाद, कुष्ठ, कृमि(पेट के
कीड़े), सांसो की परेशनि, बवासीर, घाव, मेद आदि रोगो को समाप्त करता है।
चकबड़े के पत्तों की सब्जी पित्त को बढ़ाने वाला व गर्म कफ, वात, दाद………..
चकोतरा : सभी रसदार फलों में चकोतरा सबसे बड़े आकार का फल होता है। चकोतरा
संतरे की प्रजाति का फल है। परन्तु संतरे की अपेक्षा चकोतरे में सिट्रिक
अम्ल अधिक और शर्करा कम होता है। इसके अन्दर का गुदा पीले और……………… चाकसू
: चाकसू काबिज होता है यह सूजन को पचाता है आंखों की रोशनी को बढ़ाता है।
आंख से पानी निकलने में यग लाभकारी होता है। घावों के लिए यह लाभदायक होती
है। खासतौर पर इन्द्री के घावों के लिए यह विशेष रूप से……….. चालमोंगरा
Hydnocarpus oil : चालमोंगरा के पेड़ दक्षिण भारत, में पश्चिम घाट के
पर्वतों पर दक्षिण घाट के पर्वतों पर, दक्षिण भारत, ट्रावनकोर में तथा
श्रींलका में अधिक मात्रा में पाये जाते है। इसके बीजो से प्राप्तो होने
वाले तेल का तथा बीजों का औषधी में……………… चमेली : चमेली की बेल आमतौर पर
घरों, बगीचों में आमतौर पर सारे भारत में लगाई जाती है जिसके फूलों की
खुशबू बड़ी मादक और मन को प्रसन्न करती है। उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद,
जौनपुर, और गाजीपुर जिले में इसे विशेष……….. चना (GRAM) : चना शरीर में
ताकत लाने वाले और भोजन में रूचि पैदा करने वाले होते है। सूखे भुने हुए
चने बहुत रूक्ष और वात तथा कुष्ठ को कुपित करने वाले होते है। उबले हुए चने
कोमल, रूचिकारक, पित्त, शुक्रनाशक, शीतल, कषैले……….. चनार : चनार की जली
हुई छाल का लेप बदन को साफ करता है। सफेद कुष्ठ(कोढ़) के लिए यह बहुत ही
लाभकारी होता है। इसके ताजा फलों का काढ़ा सांप इत्यादि जहरीले……….. चंदन
: चंदन की पैदावार तमिलनाडु, मालाबार और कर्नाटक में अधिक होती है। इसका
पेड़ सदाबहार, 30 से 40 फुट ऊंचा और अर्द्धपराश्रयी होता है। बाहर से छाल का
रंग मटमैला और काला और अंदर से लालिमायुक्त लम्बे……………… लाल चंदन : लाल
चंदन का उपयोग करने से खूनी दस्त और बुखार बंद हो जाते है। यह मानसिक
उन्माद(पागलपन) को समाप्त कर देता है। लाल चंदन गुणों में सफेद चंदन से
अधिक लाभकारी होता है। यह सूजन, दाह और जलन को……….. चंदन सफेद : सफेद
चंदन मन को प्रसन्न करता है। यह दिल और अमाशय को बलवान बनाता है। यह सूजन
को पचाता है। रक्त को बढ़ाता है। यह उन्माद और आन्तरिक गर्मी को दूर करता
है। इसे घिसकर लेप करने से मस्तिष्क की……………... चांदी (SILVER) : चांदी
दिल और दिमाग को शक्तिशाली व बलवान बनाता है। यह मांस, हड्डी, शरीर के अंदर
की चर्बी तथा शरीर के सभी अवयवों को पुष्ट करती है। यह वीर्य को गाढ़ा करती
है। बलगम को दूर करती है तथा मेद रोग यानी…………. चांदनी के फूल : चांदनी
का फूल दिल को मजबूत और शक्तिशाली बनाता है, यह मन को प्रसन्न करता है।
मानसिक उन्माद(दिमागी परेशानी) को बढ़ाता है। यह दिल की धड़कन जो………………
चन्द्रसूर : चन्द्रसूर वात, बलगम और दस्त को ठीक करता है। यह बलवर्द्धक और
पुष्टिकारी होता है। चन्द्रसूर गुल्म को खत्म करता है, स्त्री के स्तनों
में दूध को बढ़ाता है। इसको पानी में पीसकर पीने तथा इसका लेप करने से खून
के रोग…………. चरस : चरस के सेवन से शरीर में नशा आता है और मैथुन के समय
वीर्य को अधिक देर तक रोकता है। यह सूजनों को पचाती है। होशोहवाश को खो
देती है और बेहोशी उत्पन्न……………… चरबी : चरबी सूजन को पचाती है। दर्द को
शान्त करती है। यह बदन के अवयवों में तरावट लाती है, खासकर पुट्ठों को। इसे
खाने से शरीर शक्तिशाली, मोटा और स्फूर्तिवान हो जाता है। सभी जनवरों की
चरबी उस जानवर के मांस के…………. चौलाई : चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी
है। इसका प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में
उपयोगी है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में
इसकी सब्जी बनाकर……………… चावल : चौलाई पूरे साल मिलने वाली सब्जी है। इसका
प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। यह पित्त-कफनाशक एवं खांसी में उपयोगी
है। बुखार में भी इसका रस पीना अच्छा रहता है। ज्यादातर घरों में इसकी
सब्जी बनाकर……………… चावल मोंगरा : चावल मोगरा का अधिक मोंगरा गोटियों को
तोड़ता है। यह शरीर को शुद्ब करता है। इसका उपयोग करने से कुष्ठ(कोढ़), खुजली
और सफेद दाग तथा चमड़ी के रोग दूर…………. चंवरा : चंवरा तृप्तिकारक,
वातकारक, रूचि पैदा करने वाली, स्त्री के स्तनों में दूध बढ़ाने वाली तथा
शरीर को शक्तिशाली बनाती है। यह मल को रोकती है। यह गन्ने के समान
ही……………… छाछ : छाछ या मट्ठा शरीर में उपस्थित विजातीय तत्वों को बाहर
निकालकर नया जीवन प्रदान करता है। यह शरीर में प्रतिरोधात्मक(रोगों से लड़ने
की शक्ति) शक्ति पैदा करता है। छाछ में घी नहीं होना चाहिए। गाय के दूध
से…………. छाल : बूटी अथवा पेड़ों की छाल और बक्कल को युवावस्था में ही
उतारना चाहिए। मुर्झाये एंव सूखे पेड़ की छाल में गुण कम हो जाते है। पेड़ की
हरी भरी अवस्था में छाल आसानी से उतर जाती है। अतः बसंत ऋतु से पहले
या……………… छरीला : छरीला काबिज होती है। यह सूजन और अफारा(पेट की गैस) को
मिटाती है। यह प्रकृति के समान आचरण करती है। छरीला का काढ़ा दिल के लिए
अच्छा होता है। छरीला उन्माद, पागलपन, उल्टी, मिर्गी और जी मचलाने
में…………. छतिवन : छतिवन कषैला, गर्म, कड़वा, अग्नि को दीपन करने वाला,
सारक, स्निग्ध तथा दिल के लिए लाभकारी, मदगंध से युक्त तथा पेट के कीड़ों,
दमा, कोढ़(कुष्ठ), गांठे, घाव, रुधिर विकार, त्रिदोष (वात, पित्त, कप) नाशक,
दर्द……………... छोंकर :( “समी”) छोंकर को “समी” भी कहते है। इसके पेड़ होते
है। इसके पत्तों की आकृति इमली के पत्तों के आकार की होती है। इसका उपयोग
हवन के काम में भी किया जाता है। बहुत से स्थानों पर विजयदशमी (दशहरा) के
दिन इसका पूजन…………. छुई-मुई : छुई-मुई शीतल, तीखा, रक्तपित्त,
अतिसार(दस्त) तथा योनिरोग नाशक है।……… छुहारा : छुहारा का लैटिन नाम
फीनिक्स डेक्टाइलीफेरा है। यह प्रसिद्ध मेवाओं में से एक है। छुहारे एक बार
में चार से अधिक नही खाने चाहिए,वरना इससे गर्मी होती है। दूध में भिगोकर
छुहारा खाने से इसके पौष्टिक गुण बढ़ जाते…………. चिचींड़ा (SNAKE GOURD) :
चिचींड़ा शरीर के रूखेपन और कमजोरी को खत्म करता है। यह पाचक है। हल्का होता
है। गर्म स्वभाव वालों के लिए यह लाभकारी होता है। यह भूख को बढ़ाता है।
इसकी जड़ दस्तावर है। यह गर्मी और सुर्ख मादा के लिए……………… चीड़ : चीड़
गर्म, तीखी और खांसी को ठीक करने वाली होती है। यह अग्नि को प्रदीप्त करती
है। इसके ज्वादा सेवन करने से पित्त और श्रम दूर होता है।……………. चिकनी
सुपारी : चिकनी सुपारी काबिज होती है। यह दस्तों को बंद करती है तथा दिल
और आमाशय को बलवान बनाती है।……………… चीकू : चीकू का पेड़ मूल रूप से दक्षिण
अफ्रीका के उष्ण कटिबंध का वेस्टंइडीज द्वीप समूह का है। वहां यह’चीकोज
पेटी’ के नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु चीकू वर्तमान समय में सभी…………….
चिलगोजा : चिलगोजा धातुवर्द्बक होता है। यह भूख को बढ़ाता है। यह गुर्दे
मसाने और लिंगेद्री को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। चिलगोजे अत्यधिक
मर्दाना शक्तिवर्द्धक होते है। इसलिए 15 चिलगोजे रोजाना खाएं।……………… चीनी
और शक्कर : चीनी और गुड़ का छोटी आंत में पाचन होने के बाद खून में शोषण
होता है। खून में घुल जाने के बाद चीनी का ग्लाइकोजन में रूपान्तर होकर
भविष्य के उपयोग के लिए यकृत (जिगर) में संग्रह होता है। इस अभिशोषण
की……………… चिरौजी : चिरौंजी मलस्तम्भक, स्निगध, धातुवर्द्धक कफकारक
बलवर्द्धक और वात विनाशकारी होता है। यह शरीर को मोटा और शक्तिशाली बनाता
है। चिरौंजी कफ को दस्तों के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देती है। यह चेहरे
के रंग को……………. चिरायता : चिरायता आमतौर पर आसाने से उपलब्ध होने वाला
पौधा नही है। चिरायता का मूल उत्पादक देश होने के कारण नेपाल में यह अधिक
माता में पाया जाता है। भारत में यह हिमाचल प्रदेश में कश्मीर से लेकर
अरूणाचल तक……………… चिरचिटा : गुर्दे के रोग- 5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा
की जड़ का काढ़ा 1 से 50 ग्राम बह शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से
गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है। इसकी क्षार अगर भेड़ के पेशाब के साथ खाये
तो गुर्दे की पथरी में ज्यादा लाभ होता है।……………. चोबचीनी : चोबचीनी ताकत
को बढ़ाती है। खून को साफ करती है। यह शरीर की गर्मी को स्थाई बनाती है। यह
फालिज लकवा और दिमागी बीमारी के लिए बहुत हानिकारक होता है। यह गर्भाशय और
गुदा बीमारियों में लाभदायक……….. चोब हयात : चोब हयात सूजन को पचाता है।
यह दर्द को रोकता है। जहर को पचाता है। यह काबिज है। यह हैजा दस्तों और जी
मिचलाने को रोकती है, इसका मरहम घाव को भर……………. छोंगर : छोंगर फोड़ो को
पकाकर फोड़्ती है। इसका फल कर्ण मूल और भगंदर को दूर करता है।……….. चोक :
चोक रेचक, दस्तावर, कड़वी, भेदक, ग्लानिकारक, पेट के कीड़े, खुजली, जहर,
अफारा(गैस), बलगम, पित्त, रूधिर, कोढ़ को नष्ट करती है। इसके प्रयोग से बांझ
स्त्रियों को……………. चुकन्दर के बीज : चुकन्दर के बीजों के प्रयोग से
पेशाब और मासिक धर्म खुलकर आता है तथा यह कफ को छांटता है।……….. चुकन्दर
: चुकन्दर एक कन्दमूल है। चुकन्दर में ‘प्रोटीन’ भी मिलती है। यह जठर और
आंतो को साफ रखने में उपयोगी है। चुकन्दर अतिशय गुणकारी और निर्दोष है। यह
रक्तवर्द्धक(खून को साफ करने वाला), शक्तिदायक( शरीर में ताकत…………….
चूहाकानी : चूहाकनी के उपयोग से पेशाब खुलकर आता है। यह सूजनों को खत्म
करती है। यह लकवा, फालिज और मिर्गी के लिए लाभदायक होती है।……………..
चोपचीनी गुग्गुल : द्वीपान्तर वचा(मघुस्नुही, चोपचीनी) की जड़ तथा गुग्गुल
एक भाग लें। गुग्गुल को अच्छी प्रकार घोटकर इसमें द्वीपान्तर वचा का चूर्ण
मिलाते है। मिश्रण को अच्छी प्रकार मर्दन करें तथा 0.5 से 1.0 ग्राम की वटी
बना लेते……………. छोटी इलायची : छोटी इलायची तीखा, शीतल, हल्की, वात,
बलगम, दमा, खांसी, बवासीर, मूत्रकृच्छ(पेशाब में जलन) को नष्ट करती
है।……………. चुम्बक : चुम्बक गर्भाशय के दर्द को दूर करता है। और बच्चा होने
में आसानी करता है। इसकी पिसी हुई चुटकी घाव पर छिड़कने से घाव का बहता हुआ
खून बंद हो जाता है और……………. चूना : लगभग 50 ग्राम चूने की डली को 500
ग्राम पानी में रात को भिगोकर रख दें। सुबह इस पानी को कपड़े से छान लेते
है। बच्चे की उम्र के अनुसार 1 चम्मच या आधी चम्मच कप में इस पानी को 4
गुना ताजा पानी मिलाकर पीने से उल्टी, दस्त खट्टी डकारे, दूध उलटना, उबकाई
आदि ठीक हो जाती है।……………. कॉफी : कॉफी, चाय जैसा ही दूसरा पेय है। परन्तु
कॉफी में गुण की अपेक्षा अवगुण अधिक होते है। कुछ लोग तो कॉफी को जहर के
समान मानते है। दिमाग की थकान मिटाने हेतु कॉफी का सेवन किया जाता है। कॉफी
मूत्रवर्द्धक…………….
आयुर्वेदिक औषधियां – भाग: 4 दाद मर्दन
: दादमर्दन के पत्ते कीड़ों को नष्ट करने वाला, कण्डु(खुजली) दाद,
चर्मरोग-नाशक और दस्तावर होते है। बीज, कसैले, रेचक, वातकफ को नष्ट व कुछ
मूत्रल होता है। दाद… ……. …. दादमारी : दादमारी के पत्तों को पीसकर दाद
या खाज पर लगाने से दाद-खाज-खुजली में आराम मिलता है।.. …. ……. …. दादमारी
: दादमारी तीखा, कडुवा,कब्ज को नष्ट करने वाला, और उष्णवीर्य है। इसके
पत्ते अधिक ज्वलनशील होते है। उन्हे पीसकर त्वचा पर लगाने से जल्द ही जलन
होकर आधे.. …. ……. …. दुधेरी : दुधेरी लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण, तीखा, कडुवा,
मधुर, उष्णवीर्य, खाने में कडुवा, कफ, पित्त को दूर करने वाला,
उत्तेजक,यकृत को उत्तेजित करने वाला, पित्तसारक,दस्तावर. …. ……. …. दुधिया
हेमकन्द : दुधिया हेमकन्द स्वाद में तीखा, मधुर, उष्णवीर्य (कुछ लोग शीत
वीर्य मानते है), दर्द और वेगशामक, रक्तशोधक ,सूजनाशक, कफ,विष त्वचा संबंधी
विभिन्न प्रकार के…. ……. …. दूधिया लता : दूधिया लता तीखा, भारी, कडुवा,
रूखा, उष्णवीर्य, कब्जकारक, मूत्रवर्द्धक, कामोत्तेजना को बढ़ाने वाला, पेट
के कीड़ों को नष्ट करने वाला, सफेद दाग, वातनलिक.. …. ……. …. दुद्धी
बड़ी(लाल) नागार्जुनी : दुद्धी बड़ी के गुण धर्म छोटी दुद्धी के ही समान
होते है। यह श्वासनलिका के आक्षेप में लाभकारी है। पुरानी खांसी,फेफड़ों का
फूलना. वर्षा ॠतु की सांस का दौरा आदि.. …. ……. …. डिजिटेलिस (DIGITALIS
PURPUREA) : Â डिजिटेलस आकार में छोटा, तीखा, कड़वा, गर्म प्रकृति का तथा
हृदय के रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह कफनाशक, पित्तवर्द्धक, पेशाब
अधिक लाना, कफ को दूर करने वाला, बाजीकरण, गर्भाशय……. …. डिकामाली
(GARDENIA GUMMIFERA) : Â डिकामाली छोटा, रुखा, तीखा, कडुवा, गर्म प्रकृति
का, कफवात को नष्ट करने वाला, उत्तेजक, पाचक, अनुकुल, संकोचक, घाव को भरने
वाला, दर्द को दूर करने वाला, आमनाशक, हृदय को……. …. डबलरोटी : कैंसर 10
जनवरी 1979 (वफ़ी) नई दिल्ली, लीडन विश्वविद्यालय के (पश्चिमी जर्मनी) के
प्रोफ़ेसर ग्रोएन ने एक नई खोज की, की अगर पेट के कैंसर से बचना हो तो भोजन
में डबलरोटी की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए………….... डाभ : डाभ त्रिदोष नाशक
होता है। यह मूत्रकृच्छ पथरी (पेशाब करने की जगह मे पथरी), प्यास,
वस्तीरोग, प्रदररोग और रक्तविकार (खून की खराबी)को दूर करता है, गर्भ की
स्थापना करता है तथा यह श्रम और रजोदोष का निवारन……………. दही : दही में
प्रोटीन की क्वालिटी सबसे अच्छी होती है। दही जमाने की प्रक्रिया में बी
विटामिनों विशेषकर थायमिन, रिबोफ़्लेवीन और निकोटेमाइड की मात्रा दुगनी हो
जाती है। दूध की अपेक्षा दही आसानी से पच जाता है।……………. दालचीनी :
दालचीनी मन को प्रसन्न करती है। सभी प्रकार के दोषों को दूर करती है। यह
पेशाब और मैज यानि की मासिक धर्म को जारी करती है। यह धातु को पुष्ट करती
है। यह उन्माद यानी की पागलपन को दूर करती है। इसका तेल……………. डंडोत्पल :
डंडोत्पल सभी प्रकार की खांसी को दूर करता है। डंडोत्पल की टोपी बनाकर सिर
में पहनने से बुखार उतर जाता है।……………. हाथी का दांत : हाथी दांत के
बुरादे को शहद के साथ सेवन करने से दिमागी शक्ति और बुद्धि बढती है। यह
दस्तों और खून के बहने को बंद करता है। इससे बनाया तेल संभोग शक्ति को
बढाता है। हाथी दांत की ताबीज गले मे लटकाने से……………. दन्ती : दन्ती बहुत
अधिक गर्म होती है। यह जलोदर (पेट मे पानी भरना), सूजन और पेट के कीड़ों को
नष्ट करती है तथा गैस को समाप्त करती है।……………. दारूहल्दी : दारूहल्दी के
पेड़ हिमालय क्षेत्र में अपने आप झाड़ियों के रूप मे उग आते है। यह बिहार,
पारसनाथ और नीलगिरी की पहाड़ियों वाले क्षेत्र में भी पाई जाते है। इसका पेड़
150 से लेकर 480 सेमीमीटर ऊंचा, कांटेदार, झाड़ीनुमा……………. दशमूल : दशमूल
त्रिदोषनाशक,श्वास (दमा), खांसी, सिर दर्द, सूजन, बुखार, पसली का दर्द,
अरुचि (भोजन का मन ना करना) और अफारा (पेट मे गैस) को दूर करता है।
स्त्रियों के……………. दशमूलारिष्ट : दशमूल 600 ग्राम, चित्रक मूल, 300
ग्राम, गुडूची, कांड एवं पटिटका लोध्र 240 ग्राम, आमलकी 192 ग्राम, यवांसा
पंचांग 144 ग्राम, खादिर त्वक, असन त्वक और हरीतकी प्रत्येक 96 ग्राम,
विडंग, कुष्ठ, मंजिष्ठा, देवदारू, यष्टि मधु……………. दौना (मरुवा) : यह मन
को प्रसन्न करता है। सूजनो को पचाता है और शरीर को शुद्ध करता है। यह मसाना
और गुर्दे की पथरी को तोड़ता है। यह समलवाई की मस्तक पीड़ा के लिए लाभकारी
होती है। यह सीने का दर्द, दमा, जिगर तथा……………. देवदार : देवदार दोषों को
नष्ट करता है। सूजनों को पचाता है। सर्दी से उत्पन्न होने वाली पीड़ा को
शांत करता है, पथरी को तोड़ता है। इसकी लकड़ी के गुनगुने काढ़े में बैठने से
गुदा……………. देवदारु : देवदारु के पेड़ हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र, वर्मा,
बंगाल में अधिक होते है। इस पेड़ को जितनी अधिक जगह मिल जाए तो यह उतना ही
बढ़ता है। 30-40 साल का होने पर इसमे फ़ल आने लगते है। देवदारु का पेड़
100-200……………. ढाक DAWNY BRANCH BUTEA : ढाक का पेड़ पूरे भारत में पैदा
होता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 40 से 50 फ़ुट तथा टहनियों की चौड़ाई 5 से 6 फ़ुट
होती है। इसकी टहनिया टेढ़ी-मेढ़ी और छाल हल्के भूरे रंग की होती है इसके
पत्ते 5 से 8 इंच चौड़े होते है।……………. धान : उरक्षत (सीने मे घाव)- 6
ग्राम धान की खील को 100 ग्राम कच्चे दूध और शहद में मिलकर पियें। 2 घंटे
बाद गाये के 200 ग्राम दूध में मिश्री मिलाकर पियें। इससे उरक्षत(सीने मे
घाव)मिट जाता है।……………. धनिया CORIANDER : धनिये के हरे पत्ते और उनके
बीजों को सुखाकर 2 रूपों में इस्तेमाल किया जाता है। हरे धनिये को जीरा,
पुदीना, नींबू का रस आदि मिलाकर स्वादिष्ट बनाकर सेवन करने से अरुचि बंद हो
जाती है, इससे भूख खुलकर लगती……………. धतूरा Thorn Apple : धतूरे का पौधा
सारे भारत में सर्वत्र सुगमता के साथ मिलता है। आमतौर पर यह खेतों के
किनारों, जंगलों में, गांवों में और शहरों में यहां-वहां उगा हुआ दिख जाता
है। भगवान शिव की पूजा के लिए लोग इसके फल और……………. धवई के फूल : धवई के
फूलों का अधिक उपयोग नशा लाता है। इसके उपयोग से गर्भ ठहरता है और प्यास,
अतिसार (दस्त)तथा रुधिर के विकार नष्ट हो जाते है। इसके फूलों का काढ़ा दिन
में बराबर मात्रा में लेने से प्रदर रोग नष्ट हो……………. धाय : धाय के पेड़
देहरादून के जंगलों में अधिक मात्रा में पाये जाते है। इसके अतिरिक्त यह
अन्य प्रदेशों मे भी पाये जाते है। इसका पेड़ 6 से 12 फुट ऊंचा. घना, फैली
हुई लम्बी टहनियों से युक्त होता है। इसकी टहनियों और……………. ढेढस : ढेढस
देर में पचता है, इसका उपयोग गोश्त के साथ बुखार को दूर करता है बाकी इसके
सभी गुण लौकी के गुणों के समान ही होते है……………. धूप सरल : धूप सरल शरीर
की सूजनों को खत्म करती है, यह जख्मों की मवाद (पस) को साफ करके जख्मों को
भरती है। यह मिर्गी, सूखी खांसी और दमे के लिए लाभकारी होता है, इसका लेप
जख्म और घाव के दागों को मिटाता …………… दियासलाई : यदि बर्र, मधुमक्खी ने
काटा हो तो दियासलाई (माचिस) का मसाला पानी में घिसकर शरीर के काटे हुए
स्थान पर लगाने से लाभ मिलता……………. द्राक्ष : द्राक्षा एक श्रेष्ठ
प्राकृतिक मेंवा है, इसका स्वाद मीठा होता है। इसकी गिनती उत्तम फलों की
कोटि में की जाती है। इसकी बेल होती है। बेल का रंग लालिमा लिये हुआ होता
है। द्राक्ष की बेल 2-3 वर्ष की होने लगती है। खासकर…………… द्रोणपुष्पी :
द्रोणपुष्पी का पौधा बारिश के मौसम में लगभग हर जगह पैदा होता है, गर्मी के
मौसम में इसका पौधा सूख जाता है। इसकी ऊंचाई 1-3 फुट और टहनी रोमयुक्त
होता है। इसके पत्ते तुलसी के पत्ते से समान 1-2 इंच लंबे 1 इंच……………. हरी
दूब CREEPING CYNODAN : हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार दूब (घास) को
परम पवित्र माना जाता है, प्रत्येक शुभ कामों पर पूजन सामग्री के रूप मे
इसका उपयोग किया जाता है। देवता, मनुष्य, और पशु सभी को प्रिय दूब (घास),
खेल के मैदान, मंदिर…………… दूध (MILK) : दूध पुराने समय से ही मनुष्य को
बहुत पसन्द है। दूध को धरती का अमृत कहा गया है। दूध में विटामिन ‘सी’को
छोड़कर शरीर के लिए पोषक तत्त्व यानि विटामिन है। इसलिए दूध को पूर्ण भोजन
माना गया है। सभी दूधों………….… औरत का दूध : जिन लोगों को नींद नही आती है
उन लोगों को नाक मे औरत का दूध डालने से नींद आ जाती है। औरत का दूध पीने
से दिमाग की बहुत सारी बीमारियों मे लाभ होता है…………… गधी का दूध : गधी
का दूध ठंडक प्रदान करता है, मन को खुश करता है, गर्म प्रकृति वालों के दिल
और दिमाग को ताकतवर बनाता है। यक्ष्मा (टी.बी), जीर्ण बुखार और फ़ेफ़ड़े के
जख्म के लिए यह् दूध बहुत ही गुणकारी है, जिन लोगों……………. गाय का दूध :
गाय का दूध जल्दी हजम होता है। खून और वीर्य को बढ़ाता है। वीर्य को मजबूत
भी करता है। यह शरीर, दिल और दिमाग को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। यह
मैथुन शक्ति (संभोग शक्ति) को बढ़ाता है। जीर्णस्वर, यक्ष्मा…………… हिरनी का
दूध : हिरनी के दूध का सारा गुण नील गाय के दूध के गुणों के बराबर होता
है।……………. नील गाय का दूध : नील गाय का दूध मन को खुश करता है इससे पेशाब
ज्यादा आता है, यह शरीर को शुद्ध करता है और धातु को ताकतवर बनाता
है।…………… शेरनी यानी बाघिन का दूध : ज्यादातर लोग अपने बच्चो को निडर
बनाने के लिए शेरनी का दूध पिलाते है, यह सर्दी की बीमारियों में राहत देता
है, गुस्से को बढ़ाता है और हौसलो को मजबूत करता……………. दूधी छोटी और दूधी
बड़ी : यह कफ़ (बलगम) के रोग को शांत करती है, यह कोढ़ और बवाई जैसी
बीमारियों के लिये लाभदायक है, पेट के कीड़ो को नष्ट करती है और खांसी के
लिये लाभकारी है……………. सूअर का दूध : सूअर का दूध शरीर को मोटा ताजा करता
है। यह पुराने बुखार और टी.बी को शांत करता है। अंग्रेज लोग इसको अधिक
पसंद करते हैं और वे अपने बच्चों को इसका दूध……………
आयुर्वेदिक औषधियां – भाग: 5 इमली :
इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह अमेरिका,
अफ्रीका और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते
है। 8 वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। फरवरी और मार्च……………
इन्द्रायन छोटी : इन्द्रायन छोटी कडुवा,तीखा, उष्णवीर्य, लघु,
अग्निवर्द्धक, दस्तावर, बांझपन को दूर करने वाला, विषनाशक, तथा पेट के
कीड़े, कफ, घाव, पेट के रोग, गांठे, पित्त, सफेद घाग…. ……. …. इन्द्रायन
कांटेदार : कांटेदार इन्द्रायण ईरान आदि देशों में पाया जाता है। यह औषधि
आमाशय के लिए पौष्टिक और रसायन गुणों से युक्त होती है। इस औषधि का उपयोग
उल्टी, दस्त …. ……. …. इन्द्रायन छोटी : लाल इन्द्रायन वामक (उल्टी लाने
वाला), दस्तावर, सूजननाशक, गले के रोग, सांसरोग, अपचे, खांसी, प्लीहा, कफ
पेट के रोग, सफेद दाग, बड़े घाव, और बांझपन को नष्ट…. ……. …. ईसरमूल :
ईश्वरमूल कडुवा, रसयुक्त होता है। औषधि के रूप मे इसे सांस रोग, खांसी, भूत
–प्रेत बाधा उत्तेजक, दस्तावर, उल्टी लाने वाला, रक्तशोधक, सफेद दाग,
पीलिया, बवासीर,…. ……. …. इपिकाक : इपिकाक बलगम, उल्टी, पाचक, उत्तेजक,
पसीना लने वाला, गर्भाशय को संकुचित करने वाला,पित्त तथा दस्तावर होता है।
यह मल के साथ बाहर निकलने वाले कीड़…. ……. …. ईसबगोल (SPOGEL SEEDS) :
ईसबगोल की व्यवसायिक रूप से खेती हमारे देश के उतरी गुजरात के मेहसाना और
बनासकाठा जिलों में होती है। वैसे ईसबगोल की खेती उ.प्र पंजाब,हरियाणा
प्रदेश मे भी की जाती है। ईसबगोल का पौधा तनारहीत……………. गन्ना(ईख) : आहार
के 6 रसों मे मधुर रस का विशेष महत्व है। गुड़,चीनी, शर्कर आदि मधुर
(मीठी)पदार्थ गन्ने के रस से बनते है। गन्ने का मूल जन्म स्थान भारत है।
हमारे देश में यह पंजाब,हरियाणा, उत्तर प्रदेश,बिहार,बंगाल, दक्षिण……………
इलायची : इलायची हमारे भारत देश तथा इसके आसपास के गर्म देशों में ज्यादा
मात्रा में पायी जाती है। इलायची ठंडे देशों में नहीं पायी जाती है। इलायची
मालाबार,कोचीन, मंगलौर तथा कर्नाटका में बहुत पैदा होती है। इलायची के पेड़
……………. इन्द्रायण : इन्द्रायण एक लता होती है जो पूरे भारत के बलुई
क्षेत्रों में पायी जाती है यह खेतों में उगाई जाती है। इन्द्रायण 3 प्रकार
की होती है। पहली छोटी इन्द्रायण, दूसरी बड़ी इन्द्रायण और तीसरी लाल
इन्द्रायण होती है। तीनों प्रकार……….. ईसबगोल(SPOGEL SEEDS) : ईसबगोल की
व्यवसायिक रूप से खेती हमारे देश के उत्तरी गुजरात के मेहसाना और बनासकाठा
जिलों में होती है। वैसे ईसबगोल की खेती उ.प्र, पंजाब, हरियाणा प्रदेशों
में भी की जाती है। ईसबगोल का पौधा तनारहित, मौसमी, झाड़ीनुमा होता फिटकरी
: यह लाल व सफेद दो प्रकार की होती है । दोनों के गुण लगभग समान ही होते
है। सफेद फिटकरी का ही अधिक्तर प्रयोग किया जाता है। शरीर की त्वचा, नाक,
आंखे, मूत्रांग और मलदार पर इसका स्थानिक……. …. फल कटेरी : इसमें डालियां
होती हैं जो जमीन पर फैली रहती हैं। इसके फूल नीले तथा बैंगनीं रंग के
होते हैं । इसके फल छोटे आंवले जैसे होते हैं जो पकने पर पीले हो जाते है।
कटेरी के फल को कटेरी,……. …. फालसा : फालसे का विशाल पेड़ होता है। यह
बगीचों मे पाया जाता है। इसका फल पीपल के फल के बराबर होता है। यह मीठा
होता है। गर्मी के दिनों में इसका शर्बत भी बनाकर……. …. फनसी (फेंच बीन्स)
: फनसी का रस इंसुलिन नामक हार्मोन का स्राव बढाता है। इसलिए यह मधुमेह
(शूगर) में उपयोगी होता है। इसकी फसल शीत ॠतु (सर्दी का मौसम) में होती है
और फलियां लम्बी……. …. फ़िनाइल : एक बाल्टी पानी में 1 चम्मच फ़िनाइल डालकर
स्नान करने से खुजली, सूखी फुंसियां ठीक हो जाती है। सावधानी रखें कि यह
पानी सिर पर न डालें। नाक, आंख, कान व मुंह……. फराशबीन : फराशबीन एक
सब्जी को कहा जाता है यह उन सब्जियों में से एक होती है जिनमें बहुत अधिक
कैलोरी पाई जाती है इसके अंदर प्रोटीन कम मात्रा में पाया जाता है। इसके
अंदर प्रोटीन कम मात्रा……. …. फांगला : Â फांगला छोटा, रूक्ष (रूख), गर्म,
दीपक (उत्तेजक), रोचक,तीक्ष्ण (तीखा), रक्त संचारक (रक्त संग्राहक), वातकर
(वायु को नष्ट करने वाला),………Â फरहद : Â यह तीखा (तिक्त), कटु (खट्टा),
उष्णवीर्य (गर्म प्रकृति वाला), रोचक, दीपन (उतेजक), पाचक होता है। मूत्रल
(पेशाब की मात्रा अधिक आना), आर्तवजनन (बन्द माहावारी चालू करना),
बाजीकरण……. .… फालसा : फालसे का विशाल पेड़ होता है। यह बगीचों में पाया
जाता है। उत्तर भारत में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है……………
आयुर्वेदिक औषधियां – भाग: 6 गुलाची
: गुलाची का रंग सफेद होता है। गुलाची का फल पेड़ और पुष्प वाटिकाओं में
होता है। गुलाची का पेड़ बड़ा होता है। गुलाची का फूल होता है। इसके पत्ते
गंदे होते है। गुलाची की जड़ की छाल… …. ……. …. गाजर : गाजर प्रकृति की
बहुत ही कीमति देन है जो शक्ति का भण्डार है। गाजर फल भी है और सब्जी भी
तथा इसकी पैदावार पूरे भारतवर्ष में की जाती है। मूली की तरह गाजर भी जमीन
के अंदर पैदा होती है। … …. ……. …. जंगली गाजर : जंगली गाजर सामान्य गाजर
की तरह ही यह एक जड़ होती है जंगली गाजर धातु को पुष्ट (गाढ़ा) करती है।
आमाशय में गर्मी पैदा करती है। हृदय को मुलायम करती है। शरीर में अघिक
मात्रा में वीर्य उत्पन्न करता है। … …. ……. …. गाजर के बीज : गाजर के
बीज लाल और भूरे रंग के होते है। गर्भाशय को शुद्ध करते हैं। सीने के दर्द
में यह लाभकारी होता है। इसके बीजों की राख जलोदर (पेट में पानी की
अधिकता), पेशाब की बंदी और… …. ……. …. जंगली गाजर के बीज : जंगली गाजर के
बीज कालापन लिए हुए लाल रंग का होते है।जंगली गाजर के बीज खाने से पेशाब
ज्यादा मात्रा में आता है। यह रुके हुए मासिक धर्म को दुबारा चालू करता है।
पाचन शक्ति .. …. ……. …. घुघंची : दोनों प्रकार की घुघंची बलकारक (ताकत
देने वाला), रुचिकारक (इच्छा बढ़ाने वाला) और गृहपीड़ा निवारक होती है। अगर
सफेद घुघंची के छिलके उतार कर उसका चुरन बनायें और दूध में डालकर रबड़ी बना
लें तो यह रबड़ी धातु को अधिक मात्रा में… … गुलाब जामुन : गुलाब जामुन
सफेद, हरे, पीले और लाल रंग के होते है। इसके फल अमरुद की तरह होते हैं।
गुलाब जामुन मन को प्रसन्न करता है। खून को गाढ़ा करता है और गुणों में यह
सेब के जैसा……. ……. …. गुल मेंहदी : गुलमेंहदी फुलवाड़ियों में लगाया जाता
है। गुलमेंहदी का पेड़ 2 फीट तक ऊंचा होता है। गुलमेंहदी के फूल गोल-गोल
लाल तथा काले रंगों के होते हैं। गुलमेंहदी के बीजों को गोश्त के साथ खाने
से शरीर बलवान व शक्तिशाली…………….. घीकुंवार : घीकुंवार रेतीली खारी जमीन
पर होती है। घीकुवार के पत्ते लम्बे और मोटे होते हैं। घीकुंवार के किनारों
पर दो छोटे-छोटे कांटे होते है। घीकुंवार ऊपर से हरे रंग का तथा अन्दर
सफेद से लुबावदार होता है।… …. ……. …. गंधप्रियंगु, : प्रियंगुद नाम की
एक लता होती है। इसके फूलों को फूल प्रियंगु तथा फूलो के अंदर के भाग को
गंधप्रियंगु कहते हैं यह शीतल (ठंड़ी), कड़वी, विषैली, वात, पित्त, रक्तविकार
(खूनी की खराबी), पसीना, दाह, तृषा (प्यास), वमन (उल्टी), बुखार, गुल्म
(फोड़ा) को दूर करने वाली और … …. ……. …. गंधक : गंधक पीले रंग का होता
है। गंधक एक खनिज पदार्थ हैं, इसें आग बहुत जल्दी पकड़ लेती है। गंधक खून को
साफ करती है। गंधक शरीर में गर्मी लाती है। गंधक खुजली… …. ……. ….
गन्धपलासी : गंधपलासी कषैली, ग्राही (भारी), हल्की, कडुवी, तीखी, शोथ,
खांसी, श्वास, शूल, हिचकी … …. ……. …. गेहूं : गेहूं लोगों का मुख्य आहार
है तथा सारे खाने वाले पदार्थो में गेहूं का महत्वपूर्ण स्थान है। समस्त
अनाजों की अपेक्षा गेहूं में पौष्टिक तत्व अधिक होते हैं। इसकी उपयोगिता के
कारण ही गेहूं अनाजो का राजा कहलाता है। अपने देश भारतवर्ष में गेहूं का
उत्पादन सबसे ज्यादा… …. ……. …. गांजा (भांग) : गांजा का रंग हरा और भूरा
होता है। गांजा नशा चढ़ाता है। शरीर के अंग-प्रत्यंग को सुस्त और ढीला कर
देता है। यह गर्मी पैदा करता है। और बेहोशी लाने में अफीम से बढ़कर होता
है।… …. ……. …. गन्ने का रस : गन्ने का रस सफेद रंग का होता है। गन्ने का
रस बहुत ही मीठा होता है। इसके साथ पके चावल का सेवन करने से शरीर मोटा और
बलवान होता है। यह मन को प्रसन्न… …. ……. …. जंगली गेहूं : जंगली गेहूं
का दाना स्याह (नीला) रंग का होता है। जगंली गेहूं एक घास होती है जो
बिल्कुल गेहूं के समान होती है। यह सूजन और वायु को दूर करता हैं तथा मेदे
के कीड़े को मारता है। चाकसू और मिश्री के साथ बनाया हुआ सुरमा……. ……. ….
गेंदा : गेंदें के फूलों की मालाओं का सर्वाधिक प्रयोग आम जीवन में किया
जाता है। गेंदें की खूबसूरती और सुंगध सभी को आकर्षित करती है। उसका पौधा
बरसात के मौसम में लगता है और पूरे भारत वर्ष में पाया जाता है। गेंदें के
पौधे की उचाई 90 से 120 सेमी तक होती … …. ……. …. गेरु : गेरु लाल रंग की
एक मिट्टी होती है जो जमीन के अंदर खानों से निकाली जाती है। गेरु का रंग
पीला और लाल होता है। गेरु का बीज होता है। यह रक्त विकार (खून से संबंधी
रोग), कफ, हिचकी और विष को दूर करता है। यह बच्चों के लिए… …. ……. …. घी
(ब्यूटीरम डेप्यूरम) : घी तबियत को नर्म करता है। शरीर को स्वस्थ्य बनाता
है। तैयारी लाता है। घी आवाज को साफ करता है। कलेजे की खरखराहट को मिटाता
है। घी गले की खुश्की को मिटाता है। सूखी खांसी में यह लाभकारी होता … ….
……. .… गिलोय(Tinspora Kordifoliya) : नीम पर चढ़ी गिलोय को सबसे उत्तम
माना जाता है। गिलोय के पत्ते दिल के आकार के, पान के पत्तों के समान
व्यवस्थित तरीके से 2 से 4 इंच व्यास के चिकने होते हैं। गिलोय के फूल
छोटे-छोटे गुच्छों में लगते हैं जो गर्मी के मौसम में आते हैं।… …. ……. ….
गिलोय का रस : गिलोय का रस स्वादिष्ट, हल्का, दीपन और आंखों के लिए
लाभकारी होता है। यह वातरक्त (खूनी दोष), त्रिदोष (वात, कफ, और पित्त),
पांडुरोग (पीलिया), तीव्र ज्वर, उल्टी, पुराना बुखार, पित्त, कामला,
प्रमेह, अरुचि, श्वांस, खांसी, हिचकी, बवासीर, क्षय (टी.बी), दाह,… …. …….
…. गोभी : गोभी शरीर को बलवान बनाती है तथा यह पित्त, कफ और रक्तविकारों
(खून की खराबी) को दूर करती है। यह प्रमेह (वीर्य विकार) तथा सूजाक के रोग
में बहुत लाभकारी होता है। खांसी, फोड़े-फुंसी वालों के लिए लाभकारी होता
है।…………. …. जंगली गोभी : जंगली गोभी का पेड़ छत्तेदार होता है इसके पत्ते
लम्बे-लम्बे होते हैं। फूल सूनहरे रंग के पीले होते है। जंगली गोभी के
पत्तों के बीच में एक बाल निकलती है।… …. ……. …. गोखरु(LAND
CALTROPS),(Tribulus Terrestris) : गोखरु एक सरलता से उपलब्ध होने वाला और
जमीन पर फैलने वाला पौधा है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरंभ में
ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास आम जगहों पर उग आता है। गोखरु की शाखाएं
2-3 फुट लंबी होती है जिसमें पत्ते चने के समान… …. ……. …. गोल लौकी :
गोल लौकी की बेल चलती हैं। गोल लौकी का फूल सफेद और पत्ते बड़े-बड़े होते
हैं। गोल लौकी की सब्जी भी बनाई जाती है। गोल लौकी हरे और पीले रंग की होती
है। गोल लौकी भारी… …. ……. …. गोल मिर्च : हल्की, तीक्ष्ण, गर्म, कड़वी,
दिल के लिए लाभकारी, रुचिकारक (इच्छा बढ़ाने वाला), वात, बलगम (कफ), मुंह की
बदबू को दूर करने वाला तथा आंखों की रोशनी को तेज करने वाला होता है।… ….
……. …. गोंद : पेड़ से निकलने वाले गाढ़े पदार्थ को गोंद कहते हैं। गोंद
वाले युवा पेड़ों पर अक्सर सर्दी के मौसम में छाल फटकर खुद ही बाहर आ जाती
है। इस छाल को सुबह सूरज उगने से पहले … …. ……. …. गोंद पटेर : गोंद के
पत्ते बहुत लम्बे-लम्बे तथा 4-5 फूट के लगभग ऊंचे होते है। गोंद के पत्ते
एक इंच-मोटे और चौड़े होते हैं कि ये बीच से चीरे जा सकते है। इसके ऊपर
बाजरे के समान एक बाल होती है। बाल के ऊपर एक पतली सी लकड़ी… …. ……. ….
गोरोचन : गोरोचन गाय का मस्तक (माथे) में होता है। गोरोचन का रंग पीला
होता है। यह बहुत ही उपयोगी वस्तु है। तांत्रिक लोग तंत्र में इसका अधिक
मात्रा में उपयोग करते हैं।… …. ……. …. गुड़ TRACLE : गुड़ से विभिन्न
प्रकार के पकवान बनते हैं। मेहनत करने के बाद गुड़ खाने से थकावट उतर जाती
है। परिश्रमी लोगों के लिए गुड़ खाना अधिक लाभकारी है। चूरमा में या लपसी के
साथ गुड़ खाने से गुड़ … …. ……. गुड़हल Malvaceae, Hibiscus rosa sinensis,
Shoe flower; China Rose : गुड़हल का पौधा बाग-बगीचों, घर के गमलों,
क्यारियों और मंदिर के बगीचों में फूलों की सुंदरता के कारण लगाया जाता है
गुड़हल का पौधा आमतौर पर 5 से 9 फुट उचां होता है, जो सदा हरा-भरा रहता है।
इसके पत्ते 3 सेमी लम्बे व 2 सेमी चौड़े, चिकने, चमकील… …. ……. …. गुडूची
सत्व : सत्व निष्कासन विधि द्वारा गुडूचि कांड से औषधि का निर्माण करना
चाहिए……. ……. …. गुग्गुल Bedeliyam : गुग्गुल का पेड़ 4 से 12 फुट ऊंचा
होता है। गुग्गुल की शाखाएं कांटेदार होती है। शाखाओं की टहनियों पर भूरे
रंग का पतला छिलका उतरता नजर आता है। गुग्गुल की छाल हरापन लिए हुए पीली,
चमकीली और परतदार होती है। गुग्गुल के पत्ते नीम के पत्ते के समान
छोटे-छोटे, चमकीले,… गुलदाउदा : गुलदाउदा सफेद और पीले रंग का होता है।
गुलदाउदा एक खुशबूदार पेड़ का फूल होता है जो लगभग 1 फुट ऊंचा होता है।
गुलदाउदा का फूल जमे हुए खून को पचाता है। अगर मेदों में… …. ……. …. गुलाब
का जीरा : गुलाब का जीरा भूरे रंग का होता है। गुलाब का जीरा गुलाब में
से निकलता है। गुलाब का जीरा मुंह से खून के आने को रोकता है। वह दस्त जो
किसी तरह बंद न होता हो को बन्द करता है। यह आमाशय और आंखो की
रोशनी…………….. गुलकन्द : गुलकन्द लाल रंग का होता है। गुलकन्द खाने में
मीठा और खट्टा होता है। गुलकन्द गुलाब के फल और शक्कर को मिलाकर बनाया जाता
है। यह सूर्य के ताप और चन्द्रमा की ठंडक से बनाया……………. गुलरोगन :
गुलरोगन लाल रंग का होता है। गुलरोगन तिल्ली के तेल और गुलाब के फुल को
मिलाकर बनाया जाता है। यह आमाशय को बलवान बनाता है। इसे सिर में लगाने से
दिमाग की गर्मी शांत,… …. ……. …. गुलनार : गुलनार के पेड़ में फल नही लगते
है। गुलनार रक्तरोधक (खून को साफ करने वाला) होता है और पाचनशक्ति (भोजन
पचाने कि क्रिया) को बढ़ाता है। 7 ग्राम की मात्रा में गुलनार का सेवन… ….
……. …. गुंदना पहाड़ी : गुंदना पहाड़ी हरे रंग की होती है। गुंदना पहाड़ी
लहसुन के समान एक सब्जी होती है। पहाड़ी गुंदना कफ (बलगम) को गलाकर शरीर से
बाहर निकाल देती है। यह पसीना लाता है। पहाड़ी गुंदना के सेवन से स्त्रियों
के… …. ……. …. ग्वारपाठा, घृतकुमारी : इसका पौधा अक्सर खेतों की बाड़ में,
नदी किनारे अपने आप ही उग जाता है। ग्वार पाठ के पौधे की ऊचाई 60 से 90
सेमी तक होती है। ग्वार पाठ के पत्तों की लम्बाई एक से डेढ़ फुट तथा चौड़ाई
एक से तीन इंच तक,… …. ……. …. गूलर KLASTER FIG KANTRI FIG, FAIKAS
GLOMERETA : गूलर का वृक्ष, 20 से 40 फुट ऊंचा होता है। गूलर का तना,
मोटा, लम्बा, तथा टेढ़ा होता है। गूलर की छाल लाल व मटमैली रंग की होते है।
गूलर के पत्ते 3 से 5 इंच लम्बे, डेढ़ से 3 इंच चौड़े, नुकीले, चिकने और
चमकीले होते हैं। गूलर के फूल गुप्त रुप से…. ……. …. गुलाब (ROSE),(ROSA
CENTIFOLIA) : गुलाब का पौधा ऊंचाई में 4-6 फुट का होता है। तने मे असमान
कांटे लगे होते है। गुलाब की पत्तियां 5 मिली हुई होती है। गुलाब का फल
अंडाकार होता है। गुलाब के पेड़ फुलवाड़ियों में लगाये जाते है। इसकी डालों
में कांटे लगे होते हैं, यह 2 तरह का……. …. गुंजा BEED TREE : गुंजा के
फूल सेम की तरह होते हैं। शिम्बी का आकार बहुत छोटा होता है, परन्तु
प्रत्येक में 4-5 गुंजा बीज निकलते हैं अर्थात सफेद में सफेद तथा रक्त में
लाल बीज निकलते हैं। अशुद्ध फल का सेवन करने से विसूचिका की भांति ही उल्टी
और दस्त……. …. ग्लिसरीन : मुंह के छालों में ग्लिसरीन लगाने से लाभ
मिलता है। जले हुए अंगों पर ग्लिसरीन लगाने से दर्द और जलन कम हो जाती है
थकावट होने पर पैरों में ग्लिसरीन की मालिश करने से ला
भ होता है। रुई की एक लम्बी सी बत्ती बनाकर ग्लिसरीन……. ….
by kmmishra
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आयुर्वेद भाग -2: :आयुर्वेदिक औषधियां : जडी-बूटियाँ
आयुर्वेदिक औषधियां – भाग: 1 आक : आक
का पौधा पूरे भारत में पाया जाता है। गर्मी के दिनों में यह पौधा हरा-भरा
रहता है परन्तु वर्षा ॠतु में सुखने लगता है। इसकी ऊंचाई 4 से 12 फुट होती
है । पत्ते 4 से 6……………. आडू : यह उप-अम्लीय (सब-,एसिड) और रसीला फल है,
जिसमें 80 प्रतिशत नमी होती है। यह लौह तत्त्व और पोटैशियम का एक अच्छा
स्रोत है।……………… आलू : आलू सब्जियों का राजा माना जाता है क्योकि दुनियां
भर में सब्जियों के रूप में जितना आलू का उपयोग होता है, उतना शायद ही
किसी दूसरी सब्जी का उपयोग होता होगा। आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन
‘बी’ तथा………………. आलूबुखारा : आलूबुखारे का पेड़ लगभग 10 हाथ ऊंचा होता है।
इसके फल को आलूबुखारा कहते हैं। यह पर्शिया, ग्रीस और अरब की ओर बहुत होता
है। हमारे देश में भी आलूबुखारा अब होने लगा है। आलूबुखारे का रंग ऊपर से
मुनक्का के………….. आम : आम के फल को शास्त्रों में अमृत फल माना गया है
इसे दो प्रकार से बोया (उगाया) जाता है पहला गुठली को बो कर उगाया जाता है
जिसे बीजू या देशी आम कहते है। दूसरा आम का पेड़ जो कलम द्वारा उगाया जाता
है। इसका पेड़ 30 से 120 फुट तक ऊचा होता है…………………… आमलकी रसायन : आमलकी
(बीज रहित फल) बारीक चूर्ण लेकर आमलकी रस में सूखने तक मर्दन करें। इस विधि
को 21 बार दोहरायें। मर्दन छाया में ही करें।………………….. आंबा हल्दी :
आंबा हल्दी के पेड़ भी हल्दी की तरह ही होते हैं। दोनों में अन्तर यह है कि
आंबा हल्दी के पत्ते लम्बे तथा नुकीले होते हैं। आंबा हल्दी की गांठ बड़ी और
भीतर से लाल होती है, किन्तु हल्दी की गांठ की छोटी और पीली होती है। आंबा
हल्दी में सिकुड़न तथा झुर्रियां नही होती है…………….. अफीम : अफीम पोस्त
के पोधे पोपी से प्राप्त की जाती है । अफीम के पौधे की ऊंचाई एक मीटर, तना
हरा, सरल और स्निग्ध (चिकना), पत्ते आयताकार, पुष्प सफेद, बैंगनी या
रक्तवर्ण, सुंदर कटोरीनुमा एंव चौथाई इंच व्यास वाले……………………. आँवला :
आंवले का पेड़ भारत के प्रायः सभी प्रांतों में पैदा होता है। तुलसी की तरह
आंवले का पेड़ धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्र माना जाता है। स्त्रियां इसकी
पूजा भी करती है। आंवले के पेड़ की ऊचाई लगभग 20 से 25 फुट तक होती
है।………………… अभ्रक : अभ्रक, कशैला, मधुर और शीतल है, आयुदाता धातुवर्द्बक
और त्रिदोष(वात, पित्त और कफ) नाशक है, फोड़ा, फुंसी प्रमेह और कोढ़ को नाश
करने वाला है, प्लीहा (तिल्ली), उदर रोग, ग्रन्थी और विष दोषों का मिटाने
वाला है, पेट………………. अदरक : भोजन को स्वादिष्ठ व पाचन युक्क्त बनाने के
लिए अदरक का उपयोग आमतौर पर हर घर में किया जाता है। वैसे तो यह सभी
प्रदेशों में पैदा होती है,लेकिन अधिकाशं उत्पादन केरल राज्य में किया जाता
है। भूमि के अन्दर…………….. अडूसा (वासा) : सारे भारत में अडूसा के
झाड़ीदार पौधे आसानी से मिल जाते हैं । ये 4 से 8 फुट ऊंचे होते हैं । अडूसा
के पत्ते 3 से 8 इंच तक लंबे और डेढ़ से साढ़े तीन इंच चौड़े अमरुद के पत्तो
जैसे होते हैं । नोकदार, तेज गंधयुक्त,……………………….. अकरकरा (PELLITORY
ROOT) : अकरकरा अल्जीरिया में सबसे अधिक मात्रा में पैदा होता है। भारत
में कश्मीर, आसाम, आबू और बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में और गुजरात,
महाराष्ट्र आदि की उपजाऊ भूमि में कही-कही उगता है। वर्षा के शुरु में ही
इसका झाड़ीदार पौधा उगना प्रारंभ हो जाता है। अकरकरा का तना रोएंदार और
ग्रंथियुक्त होता है। अकरकरा की छाल कड़वी और……………… अगर : अगर का पेड़,
आसाम, मलाबार, चीन की सरहद के निकटवर्ती ‘नवका’ शहर के ‘चतिया’ टापू में,
बंगाल में दक्षिण की ओर के उष्णकटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले
के आसपास ‘जातिया’ पर्वत पर…………………. अगस्ता : अगस्ता का वृक्ष (पेड़) बड़ा
होता है। यह बगीचो और खनी हुई जगहो में उगता है। अगस्ता की दो जातियां
होती है। पहले का फूल सफेद होता है तथा दूसरे का लाल होता है। अगस्ता के
पत्ते इमली के पत्तो के समान होते हैं। अगस्त…………….. आकड़ा : आकड़ा का पौधा
4 से 5 फुट लम्बा होता है। यह जंगल में बहुत मिलता है। कैलोट्रोपिस
जाइगैण्टिया नाम से यह होम्योपैथी में काम में ली जाती है………… ऐन : ऐन के
वृक्ष(पेड़)बहुत बड़े होते हैं। ऐन के पेड़ की लकड़ी मजबूत होती है। इसकी लकड़ी
का प्रयोग एमारतो और नाव एत्यादि बनाने में यह काम आती है। ऐन के पत्ते
लम्बे होते हैं। ऐन के पेड़ की दो जातियां होती है- सफेद………………… अजमोद :
अजमोद के गुण अजवायन की तरह होता है। परन्तु अजमोद का दाना अजवायन के दाने
से बड़ा होता है। अजमोद भारत वर्ष में लगभग सभी जगह पाई जाती है लेकिन विशेष
कर बंगाल में, यह शीत ॠतु के आरंभ में बोई जाती है। यह हिमालय के उत्तरी
और पश्चिमी प्रदेशो…………… अजवाइन : अजवायन का पौधा आम तौर पर सारे
भारतवर्ष मे लगाया जाता है, लेकिन बंगला दक्षिणी प्रदेश और पंजाब में पैदा
होता है। अजवायन के पौधे दो-तीन फुट ऊंचे और पत्ते छोटे आकार में कुछ
कंटीले होते हैं। डलियों पर सफेद फुल गुच्छे के रुप में लगते है, जो पक कर
एवं सुख……….. अखरोट : अखरोट पतझड़ करने वाले बहुत सुन्दर और सुगन्धित पेड़
होते है, इसकी दो जातियाँ पाई जाती है। जंगली अखरोट 100 से 200 फीट तक
ऊँचे, अपने आप उगने वाले तथा फल का छिलका मोटा होता है। कृषिजन्य 40 से 90
फुट तक ऊँचा होता……………… एकवीर : एकवीर जंगलों में होता है। एकवीर के बड़े
दो पेड़ होते हैं इसमें बड़े-बड़े और मोटे-मोटे, अलग-अलग, 1-1 कांटे होते हैं,
पत्ती पाखर की पत्ती समान फल छोटे-छोटे और झुमखों में लगते हैं।………………
एलबा : एलबा गर्म प्रकृति का है, कफ वात् नाशक है, पेट साफ करने वाला है।
ज्वर मूर्छा (बुखार में बहोशी आना) और जलन को दूर करता है रुचि को उत्पन्न
करता है, नेत्रों की दृष्टि शक्ति (आंखों से रोशनी) को बढ़ाता है। बहुत
पुराने घावो पर भर लाती है, नेत्रों के बहुत रोगो में लाभकारी है, अगर
सिरका के साथ रसवत और अफीम भी हल करें……………… अलसी (Linseed, Linum
Usitatissimum) : अलसी की खेती मुख्यत, बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य
प्रदेश में होती है। अलसी का पौधा 2 से 4 फुट ऊंचा होता है। अलसी के पत्ते
रेखाकार एक से तीन इंच लंबे होते है। फूल मंजरियों में हल्के नीले रंग के
होते है। फल कलश के समान आकर के होते हैं, जिसमें सुबह 10 बीज……………… एरक :
  एरक और पटेर ये दोनों ही कषाय और मधुर रस युक्त शीतवीर्य,मूत्रल ,रोपक
और मूत्रकृच्छ और रक्त -पित्त नाशक है। इनमें से एक विशेषÂ शीतल है, वात
प्रकोपक.. …. ……. …. अंगूर शोफा : Â Â यह सांस और वातरोग, पेशाब को साफ
करने वाला, निद्राप्रद शांतिदायक, कनीनिक विस्तारक और खांसी तथा बुखार आदि
कोÂ नष्ट करता है। इसके जड़ और पत्तों को… ……. …. अंजनी Memecylon edule : Â
 अंजनी शीतल और संकोचक है। इसके पत्ते आंखों के दर्द में लाभकारी है। और
इसकी जड़ सूजाक और अधिक रक्तस्राव में लाभ पहुंचाती है।Â .. …. ……. ….
आफसन्तीन : Â अफसन्तीन दस्तवर, वात और कफ के विकार, बुखार कीडो, और पेट के
दर्द को दूर करता है ।यह कड़ुवा,तीखा और पाचक होता है. …. ……. …. आरारोट : Â
 अरारोट सही पोषणकर्ता, शान्तिदायक, शीघ्र पचने वाला, स्नेहजनक, सौम्य,
विबन्ध(कब्ज) नाशक,दस्तावर है।पित्तजन्य रोग, आंखों के रोग, जलन, सिरदर्द,
खूनी. …. ……. …. आरिमेद : Â Â अरिमेद का रस कसैला और कडुवा, वीर्य में
उष्ण, ग्राही, भूत-वाधा निवारक, होता है। मुखरोग, दांत के रोग रक्तÂ विकार,
बस्तिरोग,अतिसार, विषम ज्वर(टायफाइड),…. ……. …. अजवायन किरमाणी : Â यह
कड़वी, प्रकृति में गर्म, पाचक, हल्की, अग्निदीपक, भूख बढ़ाने वाली और बच्चों
के पेट के कीड़े, अजीर्ण आम और पेट दर्द को नष्ट करने वाला होता है इसके
सभी गुणों… …. ……. …. अकलबेर : Â अकलबेर को उचित मात्रा में देने से विषम
ज्वर,कंठमाला और बेहोशी की स्थिति में लाभ होता है इसके प्रयोग से गले और
वायु प्रणालियों की श्लैष्मिक कलाओं के जलन में लाभ होता…. ……. …. अमरकन्द
: Â अमरकन्द मीठी, स्निग्ध , तीखा,उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला, अत्यन्त
पौष्टिक होता है। गले के क्षय रोग जनित ग्रन्थियां या गण्डमाला, गुल्म,
सूजन, पेट के कीड़े, वात, कफजन्यदोष… …. ……. …. अनन्त-मूल’कृष्णा सारिवा’ :
 यह वात पित्त, रक्तविकार, प्यास अरूचि, उल्टी बुखारनाशक और शीतल
वीर्यवर्द्धक, कफनाशक, शीतल, मधुर,धातुवर्द्धक, भारी स्निग्ध कड़वी,
सुगन्धित, स्तनों के दूध को शुद्ध…. ……. …. अनन्त-मूल श्वेत सारिवा : Â यह
शीतल, मधुर, धातुवर्द्धक, भारी, चिकनी, कड़वी, सुगन्धित, कान्तिवर्द्धक,
स्वर शोधक, स्तनों के रक्त को शुद्ध करने वाला, जलननाशक, बच्चों के रोग,
सूजन,और त्रिदोषशामक…. ……. …. आसन(विजयसार) : Â यह रसायन गरम, तीखी ,सारक,
त्वचा और बालों के लिए लाभकारी है इससे वातपीडा,गले का
रोग,रक्तमण्डल,सफेद,विष,सफेद दाग,प्रमेह,कफ विकार,रक्तविकार… …. ……. ….
आसन(असन) : Â यह औषधि कसैला ,मूत्रसंग्राहक, कफ,पित्त,रक्तविकार तथा सफेद
दाग को नाशक है।विद्धान के अनुसार इसमें चूना जैसे पदार्थ की अधिकता होती
है। और इससे एक प्रकारÂ … …. ……. …. आशफल : Â यह अग्निवर्द्धक,पौष्टिक और
पेट के कीड़ो को नष्ट करने वाला होता है। इसमें सेपालिन नामक तत्व पाया जाता
है।… …. ……. …. अगिया(अगिन) : Â यह कड़वी ,तेज ,तीखी ,गर्म प्रकृति की
,हल्की ,दस्तवार,अग्निदीपक,रूखी,आंखों के लिए हानिकारक
,मुखशोधक,वातसन्तापनाशक,भूतग्रह आवेश निवारक ,विषनाशक… …. ……. …. जंगली
अजवायन : Â Â यह उत्तेजक, दर्द और अफारा ,पेट के गोल कीड़ों को नष्ट करने
वाला और आंतों को मजबूत बनाता है। यह अग्निवर्द्धक भी है। इसे 3 ग्राम की
मात्रा से अधिक सेवनÂ … …. ……. …. अजगंधा : Â अजगंधा सुगन्धित द्रव्य
आंत्र की श्लेषकला का उत्तेजक,उत्तेजक ,दर्द नाशक, पसीनावर्द्धक,पाचन शक्ति
को सही रखने वाला और खांसी को रोकने वाला होता है। औषधि के… …. ……. …. आल
: Â आल के पत्तो का क्वाथ(काढ़ा) पिलाने से बुखार और कमजोरी मे लाभ होता
है। इसके पत्तो का फांट बनाकर पीने और पत्तों का काढ़ा बनाकर त्वचा पर लेप
करने से… …. ……. …. अमलतास (Pudding Pipe Tree, Cassia Fistula) : अमलतास
का पेड़ काफी बड़ा होता है, जिसकी उंचाई 25-30 फुट तक होती है। पेड़ की छाल
मटमैली और कुछ लालिमा लिए होती है। अमलतास का पेड़ आमतौर पर सभी जगह पाया
जाता है। बाग-बगीचों, घरों में इसे चौकिया तौर पर सजावट के लिए भी लगाया
जाता है।……………… अमर बेल : अमर बेल एक पराश्रयी (दूसरों पर निरर्भर) लता
है, जो प्रकृति का चमत्कार ही कहा जा सकता है। बिना जड़ की यह बेल जिस वृक्ष
पर फैलती है, अपना आहार उस से रस चूसने वाले सूत्र के माध्यम से प्राप्त
कर लेती है।……………… अमड़ा : पित्त की बीमारियों पैत्तिक अतिसारों और पित्त
प्रकृति वाले मनुष्यों को लाभकारी है अमड़ा के पेड़ की हरी छाल बकरी के दूध
के साथ घोंटकर पीने से नाक की बीमारियों को हितकर है इसके गुठली की गीरी
मासिक श्राव को बन्द करती है।……………… अमरुद : अमरुद का पेड़ आमतौर पर भारत
के सभी राज्यों में उगाया जाता है। उत्तर प्रदेश का इलाहाबादी अमरुद विश्व
विख्यात है। यह विशेष रुप से स्वादिष्ठ होता है। इसके पेड़ की उंचाई 10 से
20 फीट होती है। टहनियां पतली-……………… अम्लवेत : अम्लवेत का पेड़ फल के लिए
बागों में लगाये जाते है। अम्लवेत के फल को बंगाल में थंकल कहते है। पेड़
बड़े, पत्तियां बड़ी, चौड़ी व कर्कश होती है।……………… अनन्नास : भारत में
जुलाई से नंबर के मध्य अनन्नास काफी मात्रा में मिलता है। अनन्नसा मुलतः
ब्राजील का फल है, जो प्रसिद्ध नाविक कोलम्बस अपने साथ यूरोप से लेकर आया
था। भारत में इस फल को पुर्तगाली लोग लेकर आयें थे।……………… अनन्त : अनन्त
का पेड़ बहुत ऊँचा बढ़ता है। अनन्त पेड़ अधिकतर कोंकण प्रान्त में पाये जाते
है। अनन्त के पत्ते लम्बे और कुछ मोटे होते है। अनन्त का पेड़ अत्यन्त
सुन्दर दिखाई पड़ता है। अनन्त के पेड़ में अगस्त के……………… अनन्तमूल
(Hemidesmus, Indian sarsaparilla) : अनन्तमूल समुद्र के किनारे वाले
प्रदेशो से लेकर भारत के सभी पहाड़ी पदेशों में बेल (लता) के रूप में
प्रचुरता से मिलती है। यह सफेद और काली, दो प्रकार की होती है, जो गौरीसर
और कालीसर के नाम से आमतौर पर जानी……………… . अनार (Pomegranate, Punica
Granatum) : भारत देश में अनार का पेड़ सभी जगह पर पाया जाता है। कन्धार,
काबुल और भारत के उत्तरी भाग में पैदा होने वाले अनार बहुत रसीले और अच्छी
किस्म के होते है। अनार के पेड़ कई शाखाओं से युक्त लगभग 20 फुट ऊचा………………
अन्धाहुली (HOLESTEMA HEED) : अर्कपुष्पी जीवनी भेद ही है । अर्कपुष्पी की
बेल नागरबल की तरह और पत्ते गिलोय की तरह छोटे होते हैं, फूल सूर्यमुखी की
तरह गोल होता है, इसमें से दूध निकलता है।……………… अंगूर (Graps,
Grapesvine, Raisins) : अंगूर एक आयु बढ़ाने वाला प्रसिद्ध फल है। फलों में
यह सर्वोत्तम एवं निर्दोष फल है, क्योंकि यह सभी प्रकार की प्रकार की
प्रकृति के मनुष्य के लिए अनुकूल है। निरोग के लिए यह उत्त्म पौष्टिक खाद्य
है तो रोगी के लिए……………… अंजीर (FIG) : काबुल में अंजीर की अधिक पैदावार
होती हैं। हमारे देश में बंगलौर, सूरत, कश्मीर, उत्तर-प्रदेश, नासिक,
मैसूर क्षेत्रों में यह ज्यादा पैदा होता है। अंजीर पेड़ 14 से 18 फुट ऊंचा
होता है। पत्ते और शाखाओं पर रोंए होते है। फूल न……………… अंकोल (Tlebid Alu
Retis) : अंकोल के छोटे तथा बड़े दोनों प्रकार के वृक्ष पाये जाते है। जो
आमतौर पर जंगलों में शुष्क एंव उच्च भूमि में उत्पन्न होते है। यह हिमायलय
की तराई, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, राजस्थान, दक्षिण भारत एवं बर्मा में
पाया जाता है।……………… ओंगा : खुजली और जलन्धर को हितकर होती है। इसकी
दातून मुख को शुद्ध करती है दांतो को मजबूंत करती है अगर इसके पत्तों का रस
मीठे में मिलाकर……………… अपराजिता MEGRIN, (CLITOREA TERNATEA) :
अपराजिता, विष्णुकांता गोकर्णी आदि नामों से जानी-जाने वाली सफेद या नीले
रंग के फूलों वाली कोमल पेड़ है। इस पर विशेषकर……………… अपामार्ग (Prickly
Chalf flower) : आपामार्ग का पौधा भारत के समस्त शुष्क स्थानों पर उत्पन्न
होता है। यह गांवो में अधिक मिलता है। खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पर
पाया जाता है। अपामार्ग ऊंचाई आमतौर पर दो से चार फुट होती है। लाल और
सफेद दो प्रकार के अपामार्ग आमतौर पर देखने……………… एरण्ड (CASTOR PLANT,
RICINUS COMMUNITS) : एरण्ड का पौधा प्रायः सारे भारत में पाया जाता है।
इसकी खेती भी की जाती है और इसे खेतों के किनारे-किनारे लगाया जाता है।
ऊंचाई में यह 10 से 15 फुट होता है। इसका तना हरा और स्निग्ध तथा छोटी-छोटी
शाखाओं……………… अरबी (GREATLEAVED CALEDIUM) : अरबी अत्यन्त प्रसिद्ध और
सभी की परिचित वनस्पति है। अरबी प्रकृति ठण्डी और तर होती है। अरबी के
पत्तों से पत्तखेलिया नामक बानगी बनती है। अरबी कन्द (फल) कोमल पत्तों और
पत्तों की तरकारी बनती है। अरबी गर्मी……………… अरहर (PIGEON PEA) : अरहर दो
प्रकार की होती है पहली लाल और दूसरी सफेद। वासद अरहर की दाल बहुत मशहूर
है। सुस्ती अरहर की दाल व कनपुरिया दाल एवं देशी दाल भी उत्तम मानी जाती
है। दाल के रुप में उपयोग में लिए जाने वाले……………… अरीठा : अरीठे के
वृक्ष भारतवर्ष में अधिकतर सभी जगह होते है। यह वृक्ष बहुत बड़े होते है,
इसके पत्ते गूलर से भी बड़े होते है। अरीठे के वृक्ष को साधारण समझना केवल
भ्रम……………… अर्जुन (Arjuna, Tarminalia Arjuna) : अर्जुन का पेड़ आमतौर पर
सभी जगह पाया जाता है। परंतु अधिकांशतः यह मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब,
उत्तर प्रदेश और बिहार में मिलता है। अकसर नालों के किनारे लगने वाला
अर्जुन का पेड़ 60 से 80 फुट ऊंचा होता है। इस पेड़ की छाल बाहर से सफेद,
अंदर से चिकनी, मोटी……………… अरलू : अग्निदीपक (भूख को बढ़ाने वाला), कषैला,
ठण्डी, वात कफ, पित्त तथा खांसी नाशक है। अरलू का कच्चा फल, मन को अच्छा
लगने वाला, वात तथा कफ नाशक है। पका फल गुल्म (वायु का गोला), बवासीर,
कीड़ों को नष्ट……………… अरनी : अरनी की दो जातियां होती है। छोटी और बड़ी।
बड़ी अरनी के पत्ते नोकदार और छोटी अरनी के पत्तों से छोटे होते है। छोटी
अरनी के पत्तों में सुगंध आती है। लोग इसकी चटनी और शाक भी बनाते है।
सांसरोग वाले को……………… अशोक (ASHOK TREE) : ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़
के नीचे बैठने से शोक नही होता, उसे अशोक कहते है, अर्थात जो स्त्रियों के
सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है। अशोक का पेड़ आम के
पेड़ की तरह सदा हरा-भरा रहता……………… अस्वकर्णिक (SALTREE) : अस्वकर्णी
(शाखू) का स्वाद खाने में कषैला होता हैं। घाव, पसीना, कफ, कीड़े को नष्ट
करने वाला, बीमारीयों (विद्रधि), बहिरापन, योनि रोग तथा कान के रोग
नष्ट……………… अश्वागंधा Winter Cherry : सम्पूर्ण भारतवर्ष में विशेषतः
शुष्क प्रदेशों में असगंध के स्वयंजात वन्यज या कृशिजन्य पौधे 5,500 फुट
ऊंचाई तक पाये जाते है। वन्यज पादपों की अपेक्षा कृशिजन्य पौधे गुणवत्ता की
दृष्टि से उत्तम होते है, परन्तु तैलादि के……………… अतिबला (खरैटी)
(HORNDEAMEAVED SIDA) : चारों प्रकार की वला-शीतल,मधुर, बल तथा कांतिकर,
चिकनी, भारी (ग्राही), खून की खराबी तथा टी0 बी0 के रोगों में सहायक होता
है।……………… अतीस (ACONITUM HETEROPHYLLUM) : भारत में हिमालय प्रदेश के
पश्चिमोत्तर भाग में 15 हजार फुट की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसके पेड़ो की
जड़ अथवा कन्द को खोदकर निकाल लिया जाता है, उसी को अतीस कहते है। कन्द का
रंग भूरा और स्वाद कुछ……………… आयापान (AYAPAN) : आयापन वास्तव में अमेरिका
का आदिवासी पौधा है, परन्तु अब सम्पूर्ण भारतवर्ष के बगीचों में अन्दर
उगाया जाता है। बंगाल में विशेषतः यह रोपा हुआ और जंगली………………
Courtesy Healthworld.com
जडी-बूटियाँ
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औषधीय फसलों के उत्पादन में इंदौर
जिले का नाम तेजी से आगे आ रहा है। यहाँ पैदा होने वाली अश्वगंधा, शतावर,
कालमेघ और सफेद मूसली विदेशों तक जा रही है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्घति का
चलन बढ़ने के कारण इन पौधों का उपयोग बड़े पैमाने पर विदेशों में दवाइयाँ
बनाने में हो रहा है। केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट के तहत यहाँ कृषि
महाविद्यालय में भी औषधीय पौधों की नई किस्मों पर शोध चल रहा है।
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घरेलू नुस्खों में इस्तेमाल होने
वाली जड़ी-बूटियाँ अब बीते दिनों की बात होती जा रही हैं। ये जड़ी-बूटियाँ अब
विलुप्त होने की कगार पर है। 'हंसराज', 'कामराज', 'हरजोड़', 'वच', 'आंबा
हल्दी', 'चित्रक' और 'कलिहारी' सरीखी औषधीय गुणों वाले तमाम पौधे गायब हो
चुके हैं।
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पवाड़ को पवाँर, जकवड़ आदि नामों से
पुकारा जाता है। वर्षा ऋतु की पहली फुहार पड़ते ही इसके पौधे खुद उग आते हैं
और गर्मी के दिनों में जो-जो जगह सूखकर खाली हो जाती है, वह घास और पवाड़
के पौधे से भरकर हरी-भरी हो जाती है। इसके पत्ते अठन्नी के आकार के और तीन
जोड़े वाले होते हैं।
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हरसिंगार जिसे पारिजात भी कहते हैं,
एक सुन्दर वृक्ष होता है, जिस पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके
फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। यह सारे भारत
में पैदा होता है। परिचय : यह 10 से 15 फीट ऊँचा और कहीं 25-30 फीट ऊँचा एक
वृक्ष होता है और देशभर में खास तौर पर बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है।
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त्वचा रोगों में भी मुलहठी लाभकारी
है। मुलहठी का लेप बनाकर इस्तेमाल किया जाता है। इससे त्वचा का रंग निखर
आता है। त्वचा की जलन और सूजन दूर होती है। यौवन को बनाए रखने के लिए इसका
भीतरी एवं बाहरी प्रयोग काफी लाभदायक होता है।
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एक समय भगवान दक्ष प्रजापति से
दोनों अश्विनी कुमारों ने पूछा- 'हे भगवान, हरीतकी (हरड़) किस प्रकार
उत्पन्न हुई और हरीतकी की कितनी जातियाँ हैं तथा उसके कौन-कौन से रस, उप रस
हैं ....
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सालमपंजा' एक बहुत ही गुणकारी,
बलवीर्यवर्द्धक, पौष्टिक और यौन शक्ति को बढ़ाकर नपुंसकता नष्ट करने वाली
वनौषधि है। यह बल बढ़ाने वाला, शीतवीर्य, भारी, स्निग्ध, तृप्तिदायक और मांस
की वृद्धि करने वाला ....
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यह भारी, रुखा, शीत, अम्ल रस
प्रधान, लवण रस छोड़कर शेष पाँचों रस वाला, विपाक में मधुर, रक्तपित्त व
प्रमेह को हरने वाला, अत्यधिक धातुवर्द्धक और रसायन है। यह 'विटामिन सी' का
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बैद्यनाथ केसरी कल्प का प्रमुख घटक
द्रव्य है 'आमलकी' अर्थात आँवला। प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में आमलकी के
गुणधर्मों को विस्तार से बताया गया है। साथ ही आधुनिक विज्ञान के परीक्षणों
से भी पाया गया है कि आमलकी
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मधुमेह रोग को नियन्त्रित करने वाली
परीक्षित और प्रभावकारी घरेलू चिकित्सा में सेवन किए जाने योग्य
आयुर्वेदिक योग 'मधुमेह दमन चूर्ण' का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है
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शीतकाल शरीर के लिए बहुत ही अनुकूल
और हितकारी होता है, पाचन शक्ति बहुत प्रबल रहती है। पौष्टिक आहार और
बलपुष्टिदायक वाजीकारक नुस्खे का सेवन इसी ऋतु में किया जा सकता है।
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एरण्ड, जिसे अरण्ड, अरण्डी, अण्डी
आदि और बोलचाल की भाषा में अण्डउआ भी कहते हैं, यह के बाहर आमतौर पर पाया
जाता है। इसके पत्ते पाँच चौड़ी फाँक वाले होते हैं
जडी-बूटियाँ
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धातु रोग, धातुक्षय, दुर्बलता,
अन्य मूत्र विकार, प्रमेह, स्वप्नदोष तथा अनेक रोग नाशक। धातु पौष्टिक एवं
शक्तिवर्द्धक है। मात्रा 2 से 3 रत्ती सुबह-शाम दूध से
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वात रक्त और खून की खराबी के
कारण शरीर में फोड़ा, फुंसी या चकत्ता होना, कुष्ठ, व्रण आदि व्याधियों में
लाभकारी। मात्रा 1 से 2 गोली सुबह-शाम गर्म जल से
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मृगनाभ्यादि वटी रक्तवाहिनी और
वातवाहिनी दोनों नाड़ियों पर प्रभाव कर लाभ पहुँचाती है। इस वटी में
शीतवीर्य द्रव्यों की प्रधानता होने से उष्ण प्रकृति के स्त्री-पुरुष
ग्रीष्म ऋतु में भी इस योग का सेवन
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गलत आहार-विहार के कारण कुपित
हुआ पित्त अपनी बढ़ी हुई उष्णता से शुक्र को पतला तथा उष्ण कर देता है। इससे
शीघ्रपतन और बार-बार पेशाब आने की शिकायत पैदा हो जाती है
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ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में दाद,
खाज-खुजली, एक्जीमा (सूखा या गीला), त्वचा में जलन के साथ खुजली होना,
चकत्ते होना, काले धब्बे आदि चर्म रोग हो जाते हैं, इनमें 'पंचनिम्बादि
वटी' लाभप्रद होती है
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शरीर में कहीं शोथ हो, गांठ हो
या लसिका ग्रंथि में कोई विकृति हो तो इसे दूर करने में जिस जड़ी-बूटी का
नाम सर्वोपरि है वह है कचनार। इसके अद्भुत गुणों के कारण संस्कृत भाषा में
इसे गुणवाचक नामों से सम्बोधित किया गया है
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शहरों के बाग-बगीचों के बाहर
और खुली जगह में पैदा होने वाले पौधों में एक पौधा होता है अपामार्ग का,
जिसे बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा भी कहते हैं
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बनफ्शा सर्दी-खाँसी और कफ
प्रकोप को दूर करने वाली जड़ी-बूटी है, जो आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा
पद्धति में एक समान रूप से उपयोग में ली जाती है
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अजमोदा, अजवायन से मिलता-जुलता
होता है, लेकिन इसका पौधा अजवायन के पौधे से थोड़ा बड़ा होता है और इसके
दाने भी अजवायन से बड़े आकार के होते हैं
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संस्कृत- पुनर्नवा। हिन्दी-
सफेद पुनर्नवा, विषखपरा, गदपूरना। मराठी- घेंटूली। गुजराती- साटोडी।
बंगला-श्वेत पुनर्नवा, गदापुण्या। तेलुगू- गाल्जेरू। कन्नड़-मुच्चुकोनि।
तमिल- मुकरत्तेकिरे, शरून्नै
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लोध्र को लोध भी कहते हैं। यह
एक मध्यम ऊँचाई का वृक्ष होता है, जिसकी छाल लोध्र के नाम से बाजार में
मिलती है और छाल ही उपयोग में ली जाती है
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'सर्पान गन्धयति अर्दयति इति'
के अनुसार यह सर्पों को दूर भगाती है। यह वनौषधि सर्प विष, मन की अशान्ति,
मानसिक विकृति और उच्च रक्तचाप को दूर करने में सफल सिद्ध हुई है
जडी-बूटियाँ
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बला जिसे खिरैटी भी कहते
हैं, यह जड़ी-बूटी वाजीकारक एवं पौष्टिक गुण के साथ ही अन्य गुण एवं प्रभाव
भी रखती है अतः यौन दौर्बल्य, धातु क्षीणता, नपुंसकता तथा शारीरिक दुर्बलता
दूर करने के अलावा अन्य व्याधियों
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अश्मरी (पथरी) का भेदन कर
मूत्र मार्ग से निकाल देने के लिए यह प्रसिद्ध महौषधि है। इसका प्रयोग
उचित मात्रा में और युक्तिपूर्वक करना चाहिए, क्योंकि अधिक मात्रा में सेवन
करने पर अम्लपित्त की स्थिति उत्पन्न हो जाती है
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शतावरी वैसे तो
स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही उपयोगी व लाभप्रद गुणों से युक्त जड़ी है, फिर
भी यह स्त्रियों के लिए विशेष रूप से गुणकारी एवं उपयोगी है
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यह बल बढ़ाने वाला,
शीतवीर्य, भारी, स्निग्ध, तृप्तिदायक और मांस की वृद्धि करने वाला होता है।
यह वात-पित्त का शमन करने वाला, रस में मधुर होता है
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हमारे देश में नाना प्रकार की जड़ी-बूटियां और वनस्पतियाँ उपलब्ध हैं और प्रत्येक जड़ी-बूटी किसी न किसी हेतु के लिए उपयोगी होती है।
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यह काली मिर्ची जैसी होती
है। इसे कच्ची अवस्था में तोड़कर सुखा लेते हैं। इसे मुंह में रखने पर जीभ
पर ठंडक मालूम होती है, इसीलिए इसे शीतलचीनी भी कहते हैं
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आयुर्वेद ने तो सदियों
पहले इसे हृदय रोग की महान औषधि घोषित कर दिया था। आयुर्वेद के प्राचीन
विद्वानों में वाग्भट, चक्रदत्त और भावमिश्र ने इसे हृदय रोग की महौषधि
स्वीकार किया है
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आयुर्वेद ने शिलाजीत की
बहुत प्रशंसा की है और इसकी गुणवत्ता को प्रतिष्ठित किया है। आयुर्वेद के
बलपुष्टिकारक, ओजवर्द्धक, दौर्बल्यनाशक एवं धातु पौष्टिक अधिकांश नुस्खों
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पता नहीं इसको सत्यानाशी
क्यों कहा जाता है, जबकि आयुर्वेदिक ग्रंथ 'भावप्रकाश निघण्टु' में इस
वनस्पति को स्वर्णक्षीरी या कटुपर्णी जैसे सुंदर नामों से सम्बोधित किया
गया है।
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पीपल (पिप्पली)
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जैसे हरड़-बहेड़ा-आंवला को
त्रिफला कहा जाता है, वैसे ही सोंठ-पीपल-काली मिर्च को 'त्रिकटु' कहा जाता
है। इस त्रिकटु के एक द्रव्य 'पीपल' की जानकारी इस प्रकार है।
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अड़ूसा एक अमृत समान औषधि है, इसका उपयोग विभिन्न रोगों को दूर करने में किया जाता है।
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देसी जड़ी-बूटियों में
शंखपुष्पी एक अत्यंत गुणकारी तथा विशेष रूप से मस्तिष्क और स्नायविक
संस्थान को बल देने वाली वनस्पति है। इसके फूल शंख की आकृति के होते हैं,
इसलिए इसे शंखपुष्पी कहते हैं
जडी-बूटियाँ
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अशोक का वृक्ष आम के
पेड़ के बराबर होता है। यह दो प्रकार का होता है, एक तो असली अशोक वृक्ष और
दूसरा उससे मिलता-जुलता नकली अशोक वृक्ष।
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शीतकाल में सेवन
करने योग्य पौष्टिक, बलवीर्यवर्द्धक तथा स्नायविक संस्थान को बल देने के
लिए सर्वाधिक उपयोगी एवं लाभप्रद सिद्ध होने वाली जड़ी-बूटियों में से एक
जड़ी है अश्वगन्धा।
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मुलहठी, जिसे मुलेठी
भी कहते हैं, एक बहुत ही उपयोगी एवं सुपरिचित जड़ी है। यह दो वर्ष तक खराब
नहीं होती और विभिन्न नुस्खों में औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है।
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जायफल : उपयोगी जड़ी-बूटी
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जायफल के नाम से
अधिकांश लोग परिचित हैं, लेकिन इसका उपयोग औषधि के रूप में सिर्फ रोगियों
द्वारा ही किया जाता है। इसका वृक्ष ज्यादातर जावा, सुमात्रा, मलेशिया आदि
द्वीपों में और न्यून मात्रा में दक्षिण भारत व श्रीलंका में पैदा होता है
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