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Showing posts from September, 2014

मुद्रा

1. ज्ञान मुद्रा (चिन्मय मुद्रा) GYANA MUDRA ************************************* अंगूठे एवं तर्जनी अंगुली के स्पर्श से जो मुद्रा बनती है उसे ज्ञान मुद्रा कहते हैं | विधि : ——- 1. पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ | 2. अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रख लें तथा अंगूठे के पास वाली अंगुली (तर्जनी) के उपर के पोर को अंगूठे के ऊपर वाले पोर से स्पर्श कराएँ | 3. हाँथ की बाकि अंगुलिया सीधी व एक साथ मिलाकर रखें | सावधानियां : ————- • ज्ञान मुद्रा से सम्पूर्ण लाभ पाने के लिए साधक को चाहिए कि वह सादा प्राकृतिक भोजन करे | • मांस मछली, अंडा,शराब,धुम्रपान,तम्बाकू,चाय,काफ़ी कोल्ड ड्रिंक आदि का सेवन न करें | • उर्जा का अपव्यय जैसे- अनर्गल वार्तालाप,बात करते हुए या सामान्य स्थिति में भी अपने पैरों या अन्य अंगों को हिलाना, ईर्ष्या, अहंकार आदि उर्जा के अपव्यय का कारण होते हैं, इनसे बचें | मुद्रा करने का समय व अवधि : —————————— • प्रतिदिन प्रातः, दोपहर एवं सांयकाल इस मुद्रा को किया जा सकता है | • प्रतिदिन 48 मिनट या अपनी सुविधानुसार इससे अधिक समय तक ज्ञान मुद्रा को किया जा सकता है | यदि एक बार में 48...

मत्स्यासन :

------------- विधि : -------- इस आसन को करने के लिए सबसे पहले पद्मासन लगाकर बैठ जाएं। पद्मासन में बैठने के लिए नीचे बैठकर दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर बाईं जांघ पर रखें और बाएं पैर को घुटने से मोड़कर दाईं जांघ पर रखें। पद्मासन में बैठने के बाद हाथों के सहारे से धीरे-धीरे पीठ के बल लेट जाएं। इस क्रिया को करते समय दोनों घुटने जमीन को छूते रहें तथा रीढ़ की हड्डी सीधी रखें। अपने दोनों हाथों की हथेलियों से सिर व गर्दन ऊठाते हुए सिर के अगले हिस्से को जमीन (फर्श) पर स्थिर करें। इसके बाद अपने दोनों हाथों को नितम्बों के दोनों ओर जमीन पर रखें । सांस स्वाभाविक रूप से लें। अब अपने दोनों हाथों को फैलाकर जांघों पर रखें या पैर के अंगूठे को पकड़ लें। बाएं हाथ से दाएं पैर का अंगूठा व दाएं हाथ से बाएं पैर का अंगूठा पकड़ लें। इस अवस्था में दोनों कोहनियों को जमीन पर लगाकर रखें। इस स्थिति में 10 से 15 सैकेंड तक रहें और फिर धीरे-धीरे अभ्यास को बढ़ाते हुए 5 मिनट तक ले जाएं। यह आसन पूर्ण होने के बाद पहले अंगूठे को छोड़े फिर कमर को सीधा कर पद्मासन को खोलकर अपने दोनों पैरों को फैला लें और कुछ देर तक लेटे रहें। यह ...

निडर बनना है तो -मूलाधार चक्र को जागृत करें

निडर बनना है तो -मूलाधार चक्र को जागृत करें  ****************************** * योग के विभूतिपाद में अ‍ष्टसिद्धि के अलावा अन्य अनेक प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। सभी सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए चक्रों को जागृत करना चाहिए। मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में जो चक्र स्थित होते हैं उनकी संख्या कहीं छ: तो कहीं सात बताई गई है। समय-समय पर चक्रों वाले स्थान पर ध्यान दिया जाए तो मानसिक स्वा स्थ्य और सुदृढ़ता के साथ ही सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं तो जानते है मूलाधार चक्र को जाग्रत करने की विधि और इस चक्र से प्राप्त होती है कौन सी सिद्धि... मूलाधार चक्र : यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9 लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है। मंत्र : लं चक्र जगाने की विधि : ------------------------ मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए...

गूलर एक महाऔषधि

गूलर एक महाऔषधि  *************** धातुदुर्बलता: • 1 बताशे में 10 बूंद गूलर का दूध डालकर सुबह-शाम सेवन करने और 1 चम्मच की मात्रा में गूलर के फलों का चूर्ण रात में सोने से पहले लेने से धातु दुर्बलता दूर हो जाती है। इस प्रकार से इसका उपयोग करन े से शीघ्रपतन रोग भी ठीक हो जाता है। मर्दाना शक्तिवर्द्धक • 1 छुहारे की गुठली निकालकर उसमें गूलर के दूध की 25 बूंद भरकर सुबह रोजाना खाये इससे वीर्य में शुक्राणु बढ़ते हैं तथा संतानोत्पत्ति में शुक्राणुओं की कमी का दोष भी दूर हो जाता है। • 1 चम्मच गूलर के दूध में 2 बताशे को पीसकर मिला लें और रोजाना सुबह-शाम इसे खाकर उसके ऊपर से गर्म दूध पीएं इससे मर्दाना कमजोरी दूर होती है। • पका हुआ गूलर सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में इसी के बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर किसी बोतल में भर कर रख दें। इस चूर्ण में से 2 चम्मच की मात्रा गर्म दूध के साथ सेवन करने से मर्दाना शक्ति बढ़ जाती है। 2-2 घंटे के अन्तराल पर गूलर का दूध या गूलर का यह चूर्ण सेवन करने से दम्पत्ति वैवाहिक सुख को भोगते हुए स्वस्थ संतान को जन्म देते हैं। बाजीकारक (काम उत्तेजना): • 4 से 6...

सर दर्द से राहत के लिए

१. तेज़ पत्ती की काली चाय में निम्बू का रस निचोड़ कर पीने से सर दर्द में अत्यधिक लाभ होता है. २ .नारियल पानी में या चावल धुले पानी में सौंठ पावडर का लेप बनाकर उसे सर पर लेप करने भी सर दर्द में आराम पहुंचेगा. ३. सफ़ेद चन्दन पावडर को चावल धुले पानी में घिसकर उसका लेप लगाने से भी फायेदा होगा. ४. सफ़ेद सूती का कपडा पानी में भिगोकर माथे पर रखने से भी आराम मिलता है. ५. लहसुन पानी में पीसकर उसका लेप भी सर दर्द में आरामदायक होता है. ६. लाल तुलसी के पत्तों को कुचल कर उसका रस दिन में माथे पर २ , ३ बार लगाने से भी दर्द में राहत देगा. ७. चावल धुले पानी में जायेफल घिसकर उसका लेप लगाने से भी सर दर्द में आराम देगा. ८. हरा धनिया कुचलकर उसका लेप लगाने से भी बहुत आराम मिलेगा. ९ .सफ़ेद सूती कपडे को सिरके में भिगोकर माथे पर रखने से भी दर्द में राहत मिलेगी. बालों की रूसी दूर करने के लिए १. नारियल के तेल में निम्बू का रस पकाकर रोजाना सर की मालिश करें. २. पानी में भीगी मूंग को पीसकर नहाते समय शेम्पू की जगह प्रयोग करें. ३. मूंग पावडर में दही मिक्स करके सर पर एक घंटा लगाकर धो दें. ४ रीठा पानी में मसलकर उससे स...

शून्य मुद्रा :

शून्य मुद्रा : ------------- विधि : • मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखने से शून्य मुद्रा बनती हैं। मुद्रा करने का समय व अवधि : • शून्य मुद्रा क ो प्रतिदिन तीन बार प्रातः,दोपहर,सायं 15-15 मिनट के लिए करना चाहिए | एक बार में भी 45 मिनट तक कर सकते हैं | चिकित्सकीय लाभ : • शून्य मुद्रा के निरंतर अभ्यास से कान के रोग जैसे कान में दर्द, बहरापन, कान का बहना, कानों में अजीब-अजीब सी आवाजें आना आदि समाप्त हो जाते हैं। कान दर्द होने पर शून्य मुद्रा को मात्र 5 मिनट तक करने से दर्द में चमत्कारिक प्रभाव होता है। • शून्य मुद्रा गले के लगभग सभी रोगों में लाभकारी है | • यह मुद्रा थायराइड ग्रंथि के रोग दूर करती है। • शून्य मुद्रा शरीर के आलस्य को कम कर स्फूर्ति जगाती है। • इस मुद्रा को करने से मानसिक तनाव भी समाप्त हो जाता है | सावधानियां : • भोजन करने के तुरंत पहले या बाद में शून्य मुद्रा न करें | • किसी आसन में बैठकर एकाग्रचित्त होकर शून्य मुद्रा करने से अधिक लाभ होता है | आध्यात्मिक लाभ : • शून्य मुद्रा के ...

अश्विनी मुद्रा ( ASHWANI MUDRA)

अश्विनी मुद्रा ( ASHWANI MUDRA) ----------------------------------------- जिस प्रकार से अश्व (घोडा) अपने गुदाद्वार को बार-बार सिकोड़ता एवं ढीला करने की क्रिया करता है उसी प्रकार से अपने गुदाद्वार से यह क्रिया करने से अश्वनी मुद्रा बनती ह ै | इस मुद्रा का नाम भी इसी आधार पर पड़ा है | घोड़े में बल एवं फुर्ती का रहस्य यही मुद्रा है, इस क्रिया के करने के फलस्वरूप घोड़े में इतनी शक्ति आ जाती है कि आज के मशीनी युग में भी इंजन आदि की शक्ति अश्वशक्ति (HORSE POWER) से ही मापी जाती है | विधि : ------- 1. कगासन (जैसे शौच के समय टॉयलेट में बैठते हैं) में बैठ जाएँ | 2. अपने गुदाद्वार को जैसे मूलबन्ध के समय या मल-मूत्र के वेग को रोकते समय अंदर खींचते हैं,उसी तरह से खींचकर रखें | 3. कुछ देर इसी स्थिति में रहें फिर गुदा को ढीला छोड़ दें | 4. इस प्रक्रिया को बार-बार यथासंभव दोहराएँ | सावधानियां : ------------- • अश्वनी मुद्रा करते समय यदि मल-मूत्र का वेग हो तो इस वेग को रोकना नही चाहिए बल्कि इससे निवृत्त हो लेना चाहिए | मुद्रा करने का समय व अवधि : -------------------------------- • सामान्य स्थिति में यह क...

सूर्य मुद्रा (SURYA MUDRA)

सूर्य मुद्रा (SURYA MUDRA) : ----------------------------------- विधि : -------- • सिद्धासन,पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ | • दोनों हाँथ घुटनों पर रख लें हथेलियाँ उपर की तरफ रहें | • अनामिका अंगुली (रिंग फिंगर) को मोडकर अंगूठे की जड़ में लगा लें एवं उपर से अंगूठे से दबा लें | • बाकि की तीनों अंगुली सीधी रखें | सावधानियां : --------------- • अधिक कमजोरी की अवस्था में सूर्य मुद्रा नही करनी चाहिए | • सूर्य मुद्रा करने से शरीर में गर्मी बढ़ती है अतः गर्मियों में मुद्रा करने से पहले एक गिलास पानी पी लेना चाहिए | मुद्रा करने का समय व अवधि : ----------------------------------- • प्रातः सूर्योदय के समय स्नान आदि से निवृत्त होकर इस मुद्रा को करना अधिक लाभदायक होता है | सांयकाल सूर्यास्त से पूर्व कर सकते हैं | • सूर्य मुद्रा को प्रारंभ में 8 मिनट से प्रारंभ करके 24 मिनट तक किया जा सकता है | चिकित्सकीय लाभ : ---------------------- • सूर्य मुद्रा को दिन में दो बार 16-16 मिनट करने से कोलेस्ट्राल घटता है | • अनामिका अंगुली पृथ्वी एवं अंगूठा अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है , इन तत्वों के मिलन से श...

वरुण मुद्रा

वरुण मुद्रा (VARUN MUDRA) --------------------------------------- विधि :  -------- • पदमासन या सुखासन में बैठ जाएँ | रीढ़ की हड्डी सीधी रहे एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें | • सबसे छोटी अँगुली (कनिष्ठा)के उपर वाले पोर को अँगूठे के उपरी पोर से  स्पर्श करते हुए हल्का सा दबाएँ। बाकी की तीनों अँगुलियों को सीधा करके रखें। सावधानियां : ---------------- • जिन व्यक्तियों की कफ प्रवृत्ति है एवं हमेशा सर्दी,जुकाम बना रहता हो उन्हें वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नहीं करना चाहिए। • सामान्य व्यक्तियों को भी सर्दी के मौसम में वरुण मुद्रा का अभ्यास अधिक समय तक नही करना चाहिए | गर्मी व अन्य मौसम में इस मुद्रा को प्रातः – सायं 24-24 मिनट तक किया जा सकता है। मुद्रा करने का समय व अवधि : ----------------------------------- • वरुण मुद्रा का अभ्यास प्रातः-सायं अधिकतम 24-24 मिनट तक करना उत्तम है, वैसे इस मुद्रा को किसी भी समय किया जा सकता हैं। चिकित्सकीय लाभ : ----------------------- • वरुण मुद्रा शरीर के जल तत्व सन्तुलित कर जल की कमी से होने वाले समस्त रोगों को नष्ट करती है। • वरुण मुद्रा स्नायुओं...

वायु मुद्रा : (VAYU MUDRA)

वायु मुद्रा : (VAYU MUDRA) ------------------------------- विधि :  ------- • वज्रासन या सुखासन में बैठ जाएँ,रीढ़ की हड्डी सीधी एवं दोनों हाथ घुटनों पर रखें | हथेलियाँ उपर की ओर रखें | • अंगूठे के बगल वाली (तर्जनी) अंगुली को हथेली की तरफ मोडक र अंगूठे की जड़ में लगा दें | सावधानियां : -------------- • वायु मुद्रा करने से शरीर का दर्द तुरंत बंद हो जाता है,अतः इसे अधिक लाभ की लालसा में अनावश्यक रूप से अधिक समय तक नही करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है | • वायु मुद्रा करने के बाद कुछ देर तक अनुलोम-विलोम व दूसरे प्राणायाम करने से अधिक लाभ होता है | • इस मुद्रा को यथासंभव वज्रासन में बैठकर करें, वज्रासन में न बैठ पाने की स्थिति में अन्य आसन या कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं | मुद्रा करने का समय व अवधि : -------------------------------- • वायु मुद्रा का अभ्यास प्रातः,दोपहर एवं सायंकाल 8-8 मिनट के लिए किया जा सकता है | चिकित्सकीय लाभ : ---------------------- • अपच व गैस होने पर भोजन के तुरंत वाद वज्रासन में बैठकर 5 मिनट तक वायु मुद्रा करने से यह रोग नष्ट हो जाता है | •...

चना के गुण

चना के गुण : ----------------- चने अंकुरित करने की विधि :  सर्वप्रथम चने को साफ करके प्रातःकाल इतने पानी में भिगोएं जितना पानी चना सोख ले। एवं रात में साफ, मोटे, गीले कपडे़ या उसकी थैली में बांधकर लटका दें। गर्मी में 12 घंटे और सर्दी के मौसम में 18 से 24 घंटों के बाद भिगोकर गीले कपड़ों में बांधने से दूसरे, तीसरे दिन उसमें अंकुर निकल आते हैं। गर्मी में थैली में आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहना चाहिए। इस प्रकार चने अंकुरित हो जाएंगे। अंकुरित चनों का नाश्ता एक उत्तम टॉनिक है। अंकुरित चनों में कुछ व्यक्ति स्वाद के लिए कालीमिर्च, सेंधानमक, अदरक एवं नींबू का रस भी मिलाते हैं परन्तु यदि अंकुरित चने को बिना किसी मिलावट के साथ खाएं तो अधिक लाभकारी है। रोगों में चने के कुछ प्रयोग : --------------------------------- कब्ज: • 1 या 2 मुट्ठी चनों को धोकर रात को भिगो दें। सुबह जीरा और सोंठ को पीसकर चनों पर डालकर खाएं। घंटे भर बाद चने भिगोये हुए पानी को भी पीने से कब्ज दूर होती है। धातु पुष्टि: • 1 मुट्ठी सेंके हुए चने या भीगे हुए चने और 5 बादाम खाकर दूध पीने से वीर्य का पतलापन दूर होकर वीर्य गाढ़ा हो...

फटी एड़ियों का घरेलू उपचार

फटी एड़ियों का घरेलू उपचार : ******************** पैरों का गर्म स्नान करें : ----------------------------- • गुनगुने पानी में दो चम्मच नमक डालकर उस पानी में 10-15 मिनट दोनों पैरों को डालकर बैठें तत्पश्चात तलवों को किसी तौलिए से रगड़कर पोंछ ल ेना चाहिए। ऐसा करने से तलुवों का मैल निकल जायेगा। इसके बाद एड़ियों और तलवों पर सरसों का तेल मलकर सूती जुराबें पहन लेनी चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से फटी हुई एड़ियां कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती हैं। एडियों की साफ-सफाई का ध्यान रखें : ---------------------------------------- • स्नान करते समय एड़ियों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए और इसके बाद एड़ियों पर सरसों का तेल लगाना चाहिए। नाभि में सरसों का तेल लगायें : -------------------------------- • स्नान करने के बाद या फिर सोते समय नाभि में सरसों का तेल लगना चाहिए। इसके बाद 20-25 बार नाभि को मलना चाहिए। गुलाब जल व ग्लिसरीन भी है लाभकारी : ------------------------------------------- • रात्रि सोने से पहले ग्लिसरीन, गुलाबजल और जैतून के तेल को समभाग एकसाथ मिला लें। फिर इस तेल से तलुवों तथा एड़ियों की मालिश करें...