आयुर्वेद के प्राचिन ग्रंथों में हजारों प्रकार के औषधियों का उल्लेख मिलता है परंतु उनमें से मात्र 64 प्रकार के औषधियों को ही दिव्यऔषधियों की श्रेणी में गिना गया है। अंकोल भी उन्हीं दिव्यौषधियों मे से एक है। जिसकी चमत्कारिक गुणों को देखते हुये इसे दिव्यऔषधि कहा गया है।
यह मूलतः भारतीय पौधा है, जो भारत के अनेक स्थानो पर बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। खासकर हिमालय, उŸार प्रदेश, मध्य प्रदेश, छŸाीसगढ़, बिहार, अवध, पश्चिम बंगाल, राजपूताना, बर्मा, गुजरात महाराष्ट्र, कोंकण, तथा पोरबन्दर आदि स्थानों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
अंकोल के अन्य नाम
स्थान भेद तथा भाषा भेद के कारण इसके कई अन्य नाम भी हैं। यथा-अकोट कोकल, विषघ्न, अकोसर, ढेरा, टेरा, अक्रोड, अकोली, ढालाकुश, अक्षोलुम, इत्यादि
परिचय
अकोल का वृक्ष विषेश कर दो प्रकार का होता है एक श्वेत तथा दुसरा काला श्वेत की अपेक्षा काले अंकोल को अति दुर्लभ एवं तीव्र प्रभावशाली माना गया है परंतु यह बहुत कम मात्रा मे ही यदा-कदा देखने को मिल जाता है।
अंकोल का वृक्ष 35-40 फीट तक उंचा तथा 2-3 फीट तक चैड़ा होता है। इसके तने का रंग सफेदी लिए हुए भुरा होता है। प्रारंभ में जहां पर नवीन पत्र शाखायें निकलती हैं वह कंटक उक्त होते हैं परंतु बाद में वही कांटे डालियों की शक्ल ले लेती हैं। इसके कच्चे फल हरे तथा पकने पर काले हो जाते हैं जो जामुन की तरह दिखई देती हैं।
इसके बीजों में एक विशेष प्रकार तेल होता है जिसे पाताल यंत्र विधि से निकाला जाता है। आयुर्वेद शास्त्रोें में इस तेल को अत्यधिक दुर्लभ, उत्तम, मुल्यवान तथा चमत्कारिक बताया गया है। कहा जाता है कि अंकोल का एक बूंद तेल मृत व्यति के मुंह मे डाल दिया जाए तो मृत व्यक्ति भी कुछ प्रहर के लिए जींदा हो जाता है।
अंकोल के आयुर्वेदिक प्रयोग
दस्त तथा कब्ज
इसके जड़ की छाल को छाया में सुखाकर चुर्णं बना कर 1-1 ग्राम चावल के धोवन के साथ सेवन करने से दस्त तथा कब्ज दुर हो जाता है।
जलोदर:- इसके जड़ के चुर्णं को 2-3 मासा जवाखार मिलाकर नित्य सेवन करने से जलोदर रोग में आराम मिलता है।
अस्थमा- अंकोल के जड़ को निम्बु के रस के साथ घिस कर आधा चम्मच सुबह शाम सेवन करने से अस्थमा रोग समाप्त हो जाता है।
गांठ या सुजन:- इसकी जड़ को घिसकर सुजन अथवा गांठों पर लगाने से सुजन मे आराम तथा गांठों से मुक्ति मिलती है।
विष निवारण:- कोई व्यक्ति चाहे कैसा भी जहर सेवन कर लिया हो यदि अंकोल की जड़ की छाल को पानी में पीसकर थोड़ी-थोड़ी देर में पिलाने से उल्टी तथा दस्त से सारा जहर निकल जाता है।
बुखार:- अंकोल के जड़ की छाल तथा सोंठ को पानी में पीसकर शरीर में लगाएं तथा अंकोल का चुर्ण 4-5 रत्ती की मात्रा में सुबह शाम सेवन करें। ऐसा करने से पसीना आकर तुरंत बुखार उतर जाता है।
चर्म विकार:- इसके 50 ग्राम पत्तों को 5 ग्राम काली मिर्च के साथ पीस कर सरसो तेल में पकाकर लगाने से सभी प्रकार के चर्म रोग नष्ट होते हैं।
प्रमेह:- अंकोल के पुष्पों को छाया में सुखाकर बराबर मात्रा में हल्दी तथा आंवला मिलाकर चुर्णं बना लें। आधा चम्मच चुर्णं शहद के साथ सेवन करने से प्रमह रोग दुर होता है।
कुष्ट रोग:- अंकोल के जड़ की छाल, जायफल, जावित्री, तथा लौंग सबको बराबर मात्रा में लेकर चुर्ण बना कर 3-4 मासा सेवन करें तो कुष्ट रोग में लाभ मिलता है।
यह मूलतः भारतीय पौधा है, जो भारत के अनेक स्थानो पर बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। खासकर हिमालय, उŸार प्रदेश, मध्य प्रदेश, छŸाीसगढ़, बिहार, अवध, पश्चिम बंगाल, राजपूताना, बर्मा, गुजरात महाराष्ट्र, कोंकण, तथा पोरबन्दर आदि स्थानों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
अंकोल के अन्य नाम
स्थान भेद तथा भाषा भेद के कारण इसके कई अन्य नाम भी हैं। यथा-अकोट कोकल, विषघ्न, अकोसर, ढेरा, टेरा, अक्रोड, अकोली, ढालाकुश, अक्षोलुम, इत्यादि
परिचय
अकोल का वृक्ष विषेश कर दो प्रकार का होता है एक श्वेत तथा दुसरा काला श्वेत की अपेक्षा काले अंकोल को अति दुर्लभ एवं तीव्र प्रभावशाली माना गया है परंतु यह बहुत कम मात्रा मे ही यदा-कदा देखने को मिल जाता है।
अंकोल का वृक्ष 35-40 फीट तक उंचा तथा 2-3 फीट तक चैड़ा होता है। इसके तने का रंग सफेदी लिए हुए भुरा होता है। प्रारंभ में जहां पर नवीन पत्र शाखायें निकलती हैं वह कंटक उक्त होते हैं परंतु बाद में वही कांटे डालियों की शक्ल ले लेती हैं। इसके कच्चे फल हरे तथा पकने पर काले हो जाते हैं जो जामुन की तरह दिखई देती हैं।
इसके बीजों में एक विशेष प्रकार तेल होता है जिसे पाताल यंत्र विधि से निकाला जाता है। आयुर्वेद शास्त्रोें में इस तेल को अत्यधिक दुर्लभ, उत्तम, मुल्यवान तथा चमत्कारिक बताया गया है। कहा जाता है कि अंकोल का एक बूंद तेल मृत व्यति के मुंह मे डाल दिया जाए तो मृत व्यक्ति भी कुछ प्रहर के लिए जींदा हो जाता है।
अंकोल के आयुर्वेदिक प्रयोग
दस्त तथा कब्ज
इसके जड़ की छाल को छाया में सुखाकर चुर्णं बना कर 1-1 ग्राम चावल के धोवन के साथ सेवन करने से दस्त तथा कब्ज दुर हो जाता है।
जलोदर:- इसके जड़ के चुर्णं को 2-3 मासा जवाखार मिलाकर नित्य सेवन करने से जलोदर रोग में आराम मिलता है।
अस्थमा- अंकोल के जड़ को निम्बु के रस के साथ घिस कर आधा चम्मच सुबह शाम सेवन करने से अस्थमा रोग समाप्त हो जाता है।
गांठ या सुजन:- इसकी जड़ को घिसकर सुजन अथवा गांठों पर लगाने से सुजन मे आराम तथा गांठों से मुक्ति मिलती है।
विष निवारण:- कोई व्यक्ति चाहे कैसा भी जहर सेवन कर लिया हो यदि अंकोल की जड़ की छाल को पानी में पीसकर थोड़ी-थोड़ी देर में पिलाने से उल्टी तथा दस्त से सारा जहर निकल जाता है।
बुखार:- अंकोल के जड़ की छाल तथा सोंठ को पानी में पीसकर शरीर में लगाएं तथा अंकोल का चुर्ण 4-5 रत्ती की मात्रा में सुबह शाम सेवन करें। ऐसा करने से पसीना आकर तुरंत बुखार उतर जाता है।
चर्म विकार:- इसके 50 ग्राम पत्तों को 5 ग्राम काली मिर्च के साथ पीस कर सरसो तेल में पकाकर लगाने से सभी प्रकार के चर्म रोग नष्ट होते हैं।
प्रमेह:- अंकोल के पुष्पों को छाया में सुखाकर बराबर मात्रा में हल्दी तथा आंवला मिलाकर चुर्णं बना लें। आधा चम्मच चुर्णं शहद के साथ सेवन करने से प्रमह रोग दुर होता है।
कुष्ट रोग:- अंकोल के जड़ की छाल, जायफल, जावित्री, तथा लौंग सबको बराबर मात्रा में लेकर चुर्ण बना कर 3-4 मासा सेवन करें तो कुष्ट रोग में लाभ मिलता है।
Mujay Ankola ka ORG. Tel cahta hu
ReplyDeleteMai apko de sakta hu kitana chahiye or kya karna chahte hai, oil thoda kimti hai. Or agar aap ke samne tel nikalna hai to vo bhi ho jayega. Mera no:6376501783 lalit ,jaipur
DeleteMai apko de sakta hu kitana chahiye or kya karna chahte hai, oil thoda kimti hai. Or agar aap ke samne tel nikalna hai to vo bhi ho jayega. Mera no:6376501783 lalit ,jaipur
DeleteKya price he
DeleteMere pass oil he.ph 9247132654
ReplyDeleteसिद्ध और शुद्ध प्राचीन पातालयंत्र से निर्माण किया हुवा तेल मिलेगा।
ReplyDeleteसंपर्क- धन्वंतरी आयुर्वेद 7517969096
सिद्ध और शुद्ध प्राचीन पातालयंत्र से निर्मित अंकोल तेल मिलेगा।
ReplyDeleteबगैर कोई मिलावट ।
संपर्क--धन्वंतरी आयुर्वेद 7517969096