Skip to main content

Posts

Showing posts from August, 2014

मंत्र बदलते हैं जिन्दगी

गणपतये नम: मंत्र बदलते हैं जिन्दगी विश्व पटल पर भारत कला साहित्य व संस्कृति के साथ साथ आघ्यात्मिक दृष्टिकोण से व विशेष रूप से यंत्र मंत्र तंत्र के क्षेत्र में अघिक समृद्धिशाली है। यंत्र मंत्र तंत्र की पराविद्या द्वारा ईश दर्शन, परकाया प्रवेश, वशीकरण, उच्चाटन, युद्व विजय आदि की प्राप्ति में भारत की यह विद्या सर्वश्रेष्ठ है। इसी पराविद्या में से एक है मंत्र विद्या। जिसकी शक्ति अवर्णनीय है। मननात् त्रायते इति मंत्र:। मननत्राणघर्माणों मंत्रा:। अर्थात् मन को एकाग्र करके जप के द्वारा समस्त प्रकार के विषयों का नाश करके रक्षा करने वाले शब्दों को मंत्र कहा जाता है। इसमें मन और त्र ये दो शब्द हैं। ‘‘मन’ शब्द से मन को एकाग्र करना तथा ‘त्र’ शब्द से त्राण अर्थात रक्षा करना जिनका घर्म है और जप से जो अभिष्ट फल प्रदान करे वे मंत्र कहे जाते है। चन्द्रमा की सोलह कलाओं की तरह मंत्र साधना भी सोेेेेेलह अंगों से परिपूर्ण है। मंत्र साघना के सोलह मुख्य अंग है:-भक्ति, शुद्वि, आसन,पंचागसेवन, आचार ,घारणा,दिव्यदेश, प्राण क्रिया, मुद्रा ,तर्पण ,हवन,बलि,योग, जप,ध्यान ,समाघि। मंत्र क्या है इसकी विभिन्न मनिषियों,...

1. मूलाधार चक्र :

1. मूलाधार चक्र :  यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9%  लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है। मंत्र : लं चक्र जगाने की विधि : मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए  भोग, निद्रा और सं भोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्‍यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना। प्रभाव : इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है। 2. स्वाधिष्ठान चक्र- यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी छ: पंखुरियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते ...

कार्य क्षमता बढ़ाने व कोलॅस्ट्रोल घटाने का अचूक आयुर्वेदिक नुस्खा------

कार्य क्षमता बढ़ाने व कोलॅस्ट्रोल घटाने का अचूक आयुर्वेदिक नुस्खा------ अपनी कार्य क्षमता बढ़ा कर सफल होने, स्फूर्तिवान होने व चर्बी घटा कर तन्दरूस्त होने का यह आजमाया हुआ नुस्खा है। अनेक लोगों ने इसका प्रयोग कर सफलता पाई है। नुस्खा निम्न प्रकार है: मिश्रण: 50 ग्राम मेथी, 20 ग्राम अजवाइन,10 ग्राम काली जीरी बनाने की विधिः---- मेथी, अजवाइन तथा काली जीरी को इस मात्रा में खरीद कर साफ कर लें। प्रत्येक  वस्तु को धीमी आंच में तवे के उपर हल्का सेकें। सेकने के बाद प्रत्येक को मिक्सर-ग्राइंडर में पीसकर पावडर बनालें। तीनों के पावडर को मिला कर कांच की शीशी में रख ले .आपकी अमूल्य दवाई तैयार है। दवाई लेने की विधिः------ तैयार दवाई को रात्रि को खाना खाने के बाद सोते समय 1 चम्मच गर्म पानी के साथ लेवें। याद रखें इसे गर्म पानी के साथ ही लेना है। इस दवाई को रोज लेने से शरीर के किसी भी कोने में अनावश्यक चर्बी/ गंदा मैल मल मुत्र के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है, तथा शरीर सुन्दर स्वरूपमान बन जाता है। मरीज को दवाई 30 दिन से 90 दिन तक लेनी होगी। लाभः- इस दवाई को लेने से न केवल शरीर में अनावश्यक चर्बी दूर...

कुण्डलिनी शक्ति शीघ्रातिशीघ्र जाग्रत होती है

श्वास सामान्य चलना और गुदा द्वार को बार-बार संकुचित करके बंद करना व फिर छोड़ देना. या श्वास भीतर भरकर रोक लेना और गुदा द्वार को बंद कर लेना, जितनी देर सांस भीतर रुक सके रोकना और उतनी देर तक गुदा द्वार बंद रखना और फिर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए गुदा द्वार खोल देना इसे अश्विनी मुद्रा कहते हैं.| कई साधक इसे अनजाने में करते रहते हैं और इसको करने से उन्हें दिव्य शक्ति या आनंद का अनुभव भी होता है, परन्तु वे ये नहीं जानते कि वे एक यौगिक क्रिया कर रहे हैं.| अश्विनी मुद्रा का अर्थ है "अश्व यानि घोड़े की तरह करना". घोडा अपने गुदा द्वार को खोलता बंद करता रहता है और इसी से अपने भीतर अन्य सभी प्राणियों से अधिक शक्ति उत्पन्न करता है.| इस अश्विनी मुद्रा को करने से कुण्डलिनी शक्ति शीघ्रातिशीघ्र जाग्रत होती है और ऊपर की और उठकर उच्च केन्द्रों को जाग्रत करती है.| यह मुद्रा समस्त रोगों का नाश करती हैं.| विशेष रूप से शरीर के निचले हिस्सों के सब रोग शांत हो जाते हैं. |स्त्रियों को प्रसव पीड़ा का भी अनुभव नहीं होता. |प्रत्येक नए साधक को या जिनकी साधना रुक गई है उनको यह अश्विनी मुद्रा अवश्य...

मुझे तपस्वी वेश की लाज रखनी थी

एक बहुरूपिया राजा भोज के दरबार में पहुंचा और उसने पांच मुद्राओं की दक्षिणा मांगी। भोज ने कहा, 'कलाकार को कला के प्रदर्शन पर पुरस्कार दिया जा सकता है लेकिन दक्षिणा (दान) नहीं।' बहुरूपिया स्वांग दिखाने के लिए तीन दिन का समय मांग चला गया। अगले दिन राजधानी के बाहर एक पहाड़ी पर एक जटाधारी तपस्वी को समाधि रूप में देख चरवाहों का समूह इकट्ठा हो गया। किसी ने पूछा, 'महाराज, इस भूमि को पवित्र करने आप कहां से पधारे?' लेकिन तपस्वी ने न तो आंखें खोली और न अपने शरीर को रंचमात्र हिलाया। चरवाहों से उस तपस्वी का वर्णन सुन लोगों का जमघट उस पहाड़ी पर लग गया। दूसरे दिन भोज के प्रधानमंत्री दर्शनार्थ पहुंचे और तपस्वी के चरणों में रत्नों की थैली रख आशीर्वाद देने की प्रार्थना की, मगर बाबा पर कोई असर नहीं पड़ा। तीसरे दिन राजा भोज खुद तपस्वी के पास जा पहुंचे। उनके चरणों में अशर्फियां, फल-फूलों के साथ चढ़ाकर आशीर्वाद मांगते रह गए, लेकिन तपस्वी के मौन के समक्ष उन्हें भी निराश होकर वापस लौटना पड़ा। चौथे दिन बहुरूपिये ने दरबार में उपस्थित होकर बताया कि तपस्वी का स्वांग उसी ने किया था। अब उसे पुरस्कार के ...

शरीर को स्वस्थ रखने और शक्ति बढ़ने के लिए

       स्वास्थ्य -              बुढ़ापे को दूर रखने, स्वस्थ रहने, दिमागी ताकत, माइग्रेन को ठीक करने और शरीर को शक्ति देने वाला एक अचूक, सुरक्षित और अनूठा आयुर्वेदिक उपाय  अश्वगंधा चूर्ण और मुलहठी चूर्ण (इन के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए मेरे नोट्स पढ़ें) सामान मात्र में मिलाएं. सुबह - शाम १/२ चम्मच से शुरू करके इसे १-१ चम्मच तक रोज सादे, गुनगुने पानी, या ढूढ़ से लें. अगर पानी से ले रहे हों तो खाने के १ घंटे बाद लेना सर्वोत्तम है. दूध के साथ ले रहे हों तो खाली पेट भी ले सकते हैं. अच्छा यही है की जब आप पानी के साथ लें तो पेट एकदम भरा हुआ भी न हो और एकदम खाली भी न हो. यह एकदम निरापद है और बच्चे से लेकर वृद्ध को दिया जा सकता है. यह मिश्रण हल्का गरम होता है. जिनको इससे असुविधा हो गर्मी में मात्र घटा सकते है. बच्चों को आयु अनुसार मात्र काम कर दें. शरीर को स्वस्थ रखने और शक्ति बढ़ने के लिए यह बहुत ही प्रभावी और आजमाया हुआ नुस्का है

सहस्रार चक्र

साधना की उच्च स्थिति में ध्यान जब सहस्रार चक्र पर या शरीर के बाहर स्थित चक्रों में लगता है तो इस संसार (दृश्य) व शरीर के अत्यंत अभाव का अनुभव होता है |. यानी एक शून्य का सा अनुभव होता है. उस समय हम संसार को पूरी तरह भूल जाते हैं |(ठीक वैसे ही जैसे सोते समय भूल जाते हैं).| सामान्यतया इस अनुभव के बाद जब साधक का चित्त वापस नीचे लौटता है तो वह पुनः संसार को देखकर घबरा जाता है,| क्योंकि उसे यह ज्ञान नहीं होता कि उसने यह क्या देखा है? वास्तव में इसे आत्मबोध कहते हैं.| यह समाधि की ही प्रारम्भिक अवस्था है| अतः साधक घबराएं नहीं, बल्कि धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें.| यहाँ अभी द्वैत भाव शेष रहता है व साधक के मन में एक द्वंद्व पैदा होता है.| वह दो नावों में पैर रखने जैसी स्थिति में होता है,| इस संसार को पूरी तरह अभी छोड़ा नहीं और परमात्मा की प्राप्ति अभी हुई नहीं जो कि उसे अभीष्ट है. |इस स्थिति में आकर सांसारिक कार्य करने से उसे बहुत क्लेश होता है क्योंकि वह परवैराग्य को प्राप्त हो चुका होता है और भोग उसे रोग के सामान लगते हैं, |परन्तु समाधी का अभी पूर्ण अभ्यास नहीं है.| इसलिए साधक को चाहिए कि...

अंकोल एक दिव्य औषधी

आयुर्वेद के प्राचिन ग्रंथों में हजारों प्रकार के औषधियों का उल्लेख मिलता है परंतु उनमें से मात्र 64 प्रकार के औषधियों को ही दिव्यऔषधियों की श्रेणी में गिना गया है। अंकोल भी उन्हीं दिव्यौषधियों मे से एक है। जिसकी चमत्कारिक गुणों को देखते हुये इसे दिव्यऔषधि कहा गया है। यह मूलतः भारतीय पौधा है, जो भारत के अनेक स्थानो पर बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। खासकर हिमालय, उŸार प्रदेश, मध्य प्रदेश, छŸाीसगढ़, बिहार, अवध, पश्चिम बंगाल, राजपूताना, बर्मा, गुजरात महाराष्ट्र, कोंकण, तथा पोरबन्दर आदि स्थानों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। अंकोल के अन्य नाम स्थान भेद तथा भाषा भेद के कारण इसके कई अन्य नाम भी हैं। यथा-अकोट कोकल, विषघ्न, अकोसर, ढेरा, टेरा, अक्रोड, अकोली, ढालाकुश, अक्षोलुम, इत्यादि परिचय अकोल का वृक्ष विषेश कर दो प्रकार का होता है एक श्वेत तथा दुसरा काला श्वेत की अपेक्षा काले अंकोल को अति दुर्लभ एवं तीव्र प्रभावशाली माना गया है परंतु यह बहुत कम मात्रा मे ही यदा-कदा देखने को मिल जाता है। अंकोल का वृक्ष 35-40 फीट तक उंचा तथा 2-3 फीट तक चैड़ा होता है। इसके तने का रंग सफेदी लिए हुए भुरा...

मनुष्य के अन्दर छुपी है अलौकिक शक्तियां

वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह प्रमाणित हो चुका है कि मनुष्य का शरीर जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी तथा आकाश इन पांच तत्वों से निर्मित होता है। और इसमे कोई संदेह नही कि जो चीज जिस तत्व से बनी हो उसमे उस तत्व के सारे गुण समाहित होते हैं। इस लिए पंचतत्वों से निर्मित मनुष्यों के शरीर में जल की शीतलता, वायु का तीब्र वेग, अग्नि का तेज, पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण, ओर आकाश की विशालता समाहित होता है। इस तरह मनुष्य अनंत शक्तियों का स्वामी है तथा इस स्थुल शरीर के अंदर अलौकिक शक्तियाँ छुपी हुई है। परंतु हमारे अज्ञानता के कारण हमारे अंदर की शक्तियाँ सुप्तावस्था में पड़ी हुई है। जिसे कोई भी व्यक्ति कुछ प्रयासों के द्वारा अपने अन्दर सोई हुई शक्तियों को जगाकर अनंत शक्तियों का स्वामी बन सकता है। मनुष्य के अन्दर की सोई हुई इसी शक्ति को ही कुण्डलिनी कहा गया है। कुण्डलिनी मनुष्य के शरीर की अलौकिक संरचना है, जिसके अंदर ब्रह्मंड की समस्त शक्तियाँ समाहित है। अगर सही शब्दों मे कहा जाय तो मनुष्य के अंदर ही सारा ब्रह्मंड समाया हुआ है। आज से हजारों साल पहले गुरू शिष्य परंपरा के अनुसार गुरू अपने शिष्यों की कुण्डलिनी शक्...

आत्माओं से संर्पक और अलौकिक सिध्दयां

ब्रम्हांड में लाखों आत्माओं का अस्तित्व विद्यमान है। जो वायुमंडल में स्वतंत्र रूप सें विचरण करते हैं। जिनमंे कई प्रकार के आत्माएं होती है। जैसे राजा, महाराजा, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ, विद्वान, चोर, डाकू, बदमाश, सामान्य मनुष्य तथा उच्चकोटि के मनुष्य आदि, जिनमें मुख्यतः दो प्रकार की आत्माएं होती है। – दिव्यात्मा तथा दुष्टात्मा। दिव्य आत्मा – ये आत्माएं कभी-कभी किसी मनुष्य की जिंदगी से प्रभावित हो जाते है और उसको सहयोग भी करते है। खासकर उस व्यक्ति के जिंदगी से प्रभावित होते हैं, जिनकी जिंदगी उसी आत्मा के जिंदगी से मिलती-जुलती है, जैसे उस आत्मा ने अपनी पूर्व जिंदगी में बहुत कष्ट झेले हों और दुःखों का सामना किया हो तो वह आत्मा किसी व्यक्ति के जिंदगी के कष्टों एवं दुःखों को देख नहीं सकता, क्योंकि वह अपने जिंदगी में दुख, कष्ट, कठिनाईयों और परेशानियों से भली-भांति परिचित रहा है। अतः वह किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता अवश्य करता है, जो इस प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त रहता है। ऐसी आत्मा जिनकी जिंदगी से प्रभावित हो जाते हैं, उनकी जिंदगी खुशियों से भर जाती है और जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता। पग...