Skip to main content
गुड़हल के फूल का
ऐसे करें उपयोग,
ये बीमारियां जड़
से साफ हो जाएंगी :

गुड़हल फूल न सिर्फ
देखने में खूबसूरत
होता है बल्कि इसमें
छिपा है सेहत का
खजाना।
भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति
आयुर्वेद के अनुसार
सफेद गुड़हल की
जड़ों को पीस कर
कई दवाएं बनाई
जाती हैं। मेक्सिको में गुड़हल
के सूखे फूलों को
उबालकर बनाया गया
पेय एगुआ डे
जमाईका अपने रंग
और तीखे स्वाद के लिये काफी लोकप्रिय
है।
आयुर्वेद में इस फूल
के कई प्रयोग बताएं
गए हैं आज हम भी
आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसे ही प्रयोग
जिन्हें आजमाकर आप
भी लाभ उठा
सकते हैं।

- गुड़हल का शर्बत
दिल और दिमाग
को शक्ति प्रदान
करता है तथा बुखार
व प्रदर में भी
लाभकारी होता है। यह शर्बत बनाने के
लिए गुड़हल के सौ
फूल लेकर कांच
के पात्र में डालकर
इसमें 20 नीबू का रस
डालें व ढक दें। रात भर बंद रखने
के बाद सुबह इसे
हाथ से मसलकर
कपड़े से इस रस
को छान लें।
इसमें 80 ग्राम मिश्री, 20 ग्राम गुले गाजबान
का अर्क, 20 ग्राम
अनार का रस,
20 ग्राम संतरे का
रस मिलाकर मंद
आंच पर पका लें। चाशनी शर्बत जैसी
हो जाए तो उतारकर
2 रत्ती कस्तूरी,
थोड़ा अम्बर, और
केसर व गुलाब का
अर्क मिलाएं शर्बत की तरह
चिकित्सकीय निर्देशन
में सेवन करें।

- मुंह के छाले में
गुड़हल के पत्ते चबाने
से लाभ होता है।

- मैथीदाना, गुड़हल
और बेर की पत्तियां
पीसकर पेस्ट बना लें।
इसे 15 मिनट तक
बालों में लगाएं।
इससे आपके बालों की जड़ें मजबूत होंगे
और स्वस्थ भी।

- केश काला करने के
लिए भृंगराज के पुष्प
व गुड़हल के पुष्प भेड़
के दूध में पीसकर
लोहे के पात्र में
भरना चाहिए। सात दिन बाद इसे
निकालकर भृंगराज
को पंचाग के रस में
मिलाकर गर्म कर रात
को बालों पर लगाकर
कपड़ा बांधना चाहिए। सुबह तक रखें और
फिर सिर धोएं बाल
काले हो जाते हैं।

- सतावरी के कंद
का पावडर बनाकर
आधा चम्मच दूध के
साथ नियमित लें,
इससे कैल्शियम
की कमी नहीं होगी।

- गुड़हल के लाल फूल
की 25 पत्तियां
नियमित खाएं।
ये डायबिटीज
का पक्का इलाज है।

- 100 ग्राम, सतावरी
पावडर- 100 ग्राम,
शंखपुष्पी पावडर- 100 ग्राम, ब्राह्मी
पावडर- 50 ग्राम
मिलाकर शहद या
दूध के साथ लेने से बच्चों की बुद्धि तीव्र
होती है।

शुभ रात्री

Comments

Popular posts from this blog

सहस्रार चक्र

साधना की उच्च स्थिति में ध्यान जब सहस्रार चक्र पर या शरीर के बाहर स्थित चक्रों में लगता है तो इस संसार (दृश्य) व शरीर के अत्यंत अभाव का अनुभव होता है |. यानी एक शून्य का सा अनुभव होता है. उस समय हम संसार को पूरी तरह भूल जाते हैं |(ठीक वैसे ही जैसे सोते समय भूल जाते हैं).| सामान्यतया इस अनुभव के बाद जब साधक का चित्त वापस नीचे लौटता है तो वह पुनः संसार को देखकर घबरा जाता है,| क्योंकि उसे यह ज्ञान नहीं होता कि उसने यह क्या देखा है? वास्तव में इसे आत्मबोध कहते हैं.| यह समाधि की ही प्रारम्भिक अवस्था है| अतः साधक घबराएं नहीं, बल्कि धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें.| यहाँ अभी द्वैत भाव शेष रहता है व साधक के मन में एक द्वंद्व पैदा होता है.| वह दो नावों में पैर रखने जैसी स्थिति में होता है,| इस संसार को पूरी तरह अभी छोड़ा नहीं और परमात्मा की प्राप्ति अभी हुई नहीं जो कि उसे अभीष्ट है. |इस स्थिति में आकर सांसारिक कार्य करने से उसे बहुत क्लेश होता है क्योंकि वह परवैराग्य को प्राप्त हो चुका होता है और भोग उसे रोग के सामान लगते हैं, |परन्तु समाधी का अभी पूर्ण अभ्यास नहीं है.| इसलिए साधक को चाहिए कि...

aayurved full

आयुर्वेदिक औषधियां –   Courtesy Healthworld.com  आक :  आक का पौधा पूरे भारत में पाया जाता है। गर्मी के दिनों में यह पौधा हरा-भरा रहता है परन्तु वर्षा ॠतु में सुखने लगता है। इसकी ऊंचाई 4 से 12 फुट होती है । पत्ते 4 से 6…………….  आडू :  यह उप-अम्लीय (सब-,एसिड) और रसीला फल है, जिसमें 80 प्रतिशत नमी होती है। यह लौह तत्त्व और पोटैशियम का एक अच्छा स्रोत है।………………  आलू :  आलू सब्जियों का राजा माना जाता है क्योकि दुनियां भर में सब्जियों के रूप में जितना आलू का उपयोग होता है, उतना शायद ही किसी दूसरी सब्जी का उपयोग होता होगा। आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन ‘बी’ तथा……………….  आलूबुखारा :  आलूबुखारे का पेड़ लगभग 10 हाथ ऊंचा होता है। इसके फल को आलूबुखारा कहते हैं। यह पर्शिया, ग्रीस और अरब की ओर बहुत होता है। हमारे देश में भी आलूबुखारा अब होने लगा है। आलूबुखारे का रंग ऊपर से मुनक्का के…………..  आम :  आम के फल को शास्त्रों में अमृत फल माना गया है इसे दो प्रकार से बोया (उगाया) जाता है पहला गुठली को बो कर उगाया जाता है जिसे बीजू या दे...

अंकोल एक दिव्य औषधी

आयुर्वेद के प्राचिन ग्रंथों में हजारों प्रकार के औषधियों का उल्लेख मिलता है परंतु उनमें से मात्र 64 प्रकार के औषधियों को ही दिव्यऔषधियों की श्रेणी में गिना गया है। अंकोल भी उन्हीं दिव्यौषधियों मे से एक है। जिसकी चमत्कारिक गुणों को देखते हुये इसे दिव्यऔषधि कहा गया है। यह मूलतः भारतीय पौधा है, जो भारत के अनेक स्थानो पर बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। खासकर हिमालय, उŸार प्रदेश, मध्य प्रदेश, छŸाीसगढ़, बिहार, अवध, पश्चिम बंगाल, राजपूताना, बर्मा, गुजरात महाराष्ट्र, कोंकण, तथा पोरबन्दर आदि स्थानों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। अंकोल के अन्य नाम स्थान भेद तथा भाषा भेद के कारण इसके कई अन्य नाम भी हैं। यथा-अकोट कोकल, विषघ्न, अकोसर, ढेरा, टेरा, अक्रोड, अकोली, ढालाकुश, अक्षोलुम, इत्यादि परिचय अकोल का वृक्ष विषेश कर दो प्रकार का होता है एक श्वेत तथा दुसरा काला श्वेत की अपेक्षा काले अंकोल को अति दुर्लभ एवं तीव्र प्रभावशाली माना गया है परंतु यह बहुत कम मात्रा मे ही यदा-कदा देखने को मिल जाता है। अंकोल का वृक्ष 35-40 फीट तक उंचा तथा 2-3 फीट तक चैड़ा होता है। इसके तने का रंग सफेदी लिए हुए भुरा...