Skip to main content

भूत पीड़ा

भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जाती है। अगल-अलग स्वाभाव परिवर्तन अनुसार जाना जाता है कि व्यक्ति कौन से भूत से पीड़ित है।

भूत पीड़ा : यदि किसी व्यक्ति को भूत लग गया है तो वह पागल की तरह बात करने लगता है। मूढ़ होने पर भी वह किसी बुद्धिमान पुरुष जैसा व्यवहार भी करता है। गुस्सा आने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में सदा कंपन बना रहता है।

पिशाच पीड़ा : पिशाच प्रभावित व्यक्ति सदा खराब कर्म करना है जैसे नग्न हो जाना, नाली का पानी पीना, दूषित भोजन करना, कटु वचन कहना आदि। वह सदा गंदा रहता है और उसकी देह से बदबू आती है। वह एकांत चाहता है। इससे वह कमजोर होता जाता है।

प्रेत पीड़ा : प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चिल्लाता और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहना नहीं सुनता। वह हर समय बुरा बोलता रहता है। वह खाता-पीता नही हैं और जोर-जोर से श्वास लेता रहता है।

शाकिनी पीड़ा : शाकिनी से ज्यादातर महिलाएं ही पीड़ित रहती हैं। ऐसी महिला को पूरे बदन में दर्द बना रहता है और उसकी आंखों में भी दर्द रहता है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाती है। कांपते रहना, रोना और चिल्लाना उसकी आदत बन जाती है।

चुडैल पीड़ा : चुडैल भी ज्यादातर किसी माहिला को ही लगती है। ऐसी महिला यदि शाकाहारी भी है तो मांस खाने लग जाएगी। वह कम बोलती, लेकिन मुस्कुराती रहती है। ऐसी महिला कब क्या कर देगी कोई भरोसा नहीं।

यक्ष पीड़ा : यक्ष से पीड़ित व्यक्ति लाल रंग में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। वह ज्यादातर आंखों से इशारे कहता रहता है। इसकी आंखें तांबे जैसी और गोल दिखने लगती हैं।

ब्रह्मराक्षस पीड़ा : जब किसी व्यक्ति को ब्रह्मराक्षस लग जाता है तो ऐसा व्यक्ति बहुत ही शक्तिशाली बन जाता है। वह हमेशा खामोश रहकर अनुशासन में जीवन यापन करता है। इसे ही जिन्न कहते हैं। यह बहुत सारा खाना खाते हैं और घंटों तक एक जैसे ही अवस्था में बैठे या खड़े रहते हैं। जिन्न से ग्रस्त व्यक्ति का जीवन सामान्य होता है ये घर के किसी सदस्य को परेशान भी नहीं करते हैं बस अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं। जिन्नों को किसी के शरीर से निकालना अत्यंत ही कठीन होता है।

इस तरह से और भी कई तरह के भूत होते हैं जिनके अलग अलग लक्षण और लक्ष्य होते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

सहस्रार चक्र

साधना की उच्च स्थिति में ध्यान जब सहस्रार चक्र पर या शरीर के बाहर स्थित चक्रों में लगता है तो इस संसार (दृश्य) व शरीर के अत्यंत अभाव का अनुभव होता है |. यानी एक शून्य का सा अनुभव होता है. उस समय हम संसार को पूरी तरह भूल जाते हैं |(ठीक वैसे ही जैसे सोते समय भूल जाते हैं).| सामान्यतया इस अनुभव के बाद जब साधक का चित्त वापस नीचे लौटता है तो वह पुनः संसार को देखकर घबरा जाता है,| क्योंकि उसे यह ज्ञान नहीं होता कि उसने यह क्या देखा है? वास्तव में इसे आत्मबोध कहते हैं.| यह समाधि की ही प्रारम्भिक अवस्था है| अतः साधक घबराएं नहीं, बल्कि धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें.| यहाँ अभी द्वैत भाव शेष रहता है व साधक के मन में एक द्वंद्व पैदा होता है.| वह दो नावों में पैर रखने जैसी स्थिति में होता है,| इस संसार को पूरी तरह अभी छोड़ा नहीं और परमात्मा की प्राप्ति अभी हुई नहीं जो कि उसे अभीष्ट है. |इस स्थिति में आकर सांसारिक कार्य करने से उसे बहुत क्लेश होता है क्योंकि वह परवैराग्य को प्राप्त हो चुका होता है और भोग उसे रोग के सामान लगते हैं, |परन्तु समाधी का अभी पूर्ण अभ्यास नहीं है.| इसलिए साधक को चाहिए कि...

aayurved full

आयुर्वेदिक औषधियां –   Courtesy Healthworld.com  आक :  आक का पौधा पूरे भारत में पाया जाता है। गर्मी के दिनों में यह पौधा हरा-भरा रहता है परन्तु वर्षा ॠतु में सुखने लगता है। इसकी ऊंचाई 4 से 12 फुट होती है । पत्ते 4 से 6…………….  आडू :  यह उप-अम्लीय (सब-,एसिड) और रसीला फल है, जिसमें 80 प्रतिशत नमी होती है। यह लौह तत्त्व और पोटैशियम का एक अच्छा स्रोत है।………………  आलू :  आलू सब्जियों का राजा माना जाता है क्योकि दुनियां भर में सब्जियों के रूप में जितना आलू का उपयोग होता है, उतना शायद ही किसी दूसरी सब्जी का उपयोग होता होगा। आलू में कैल्शियम, लोहा, विटामिन ‘बी’ तथा……………….  आलूबुखारा :  आलूबुखारे का पेड़ लगभग 10 हाथ ऊंचा होता है। इसके फल को आलूबुखारा कहते हैं। यह पर्शिया, ग्रीस और अरब की ओर बहुत होता है। हमारे देश में भी आलूबुखारा अब होने लगा है। आलूबुखारे का रंग ऊपर से मुनक्का के…………..  आम :  आम के फल को शास्त्रों में अमृत फल माना गया है इसे दो प्रकार से बोया (उगाया) जाता है पहला गुठली को बो कर उगाया जाता है जिसे बीजू या दे...

अंकोल एक दिव्य औषधी

आयुर्वेद के प्राचिन ग्रंथों में हजारों प्रकार के औषधियों का उल्लेख मिलता है परंतु उनमें से मात्र 64 प्रकार के औषधियों को ही दिव्यऔषधियों की श्रेणी में गिना गया है। अंकोल भी उन्हीं दिव्यौषधियों मे से एक है। जिसकी चमत्कारिक गुणों को देखते हुये इसे दिव्यऔषधि कहा गया है। यह मूलतः भारतीय पौधा है, जो भारत के अनेक स्थानो पर बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। खासकर हिमालय, उŸार प्रदेश, मध्य प्रदेश, छŸाीसगढ़, बिहार, अवध, पश्चिम बंगाल, राजपूताना, बर्मा, गुजरात महाराष्ट्र, कोंकण, तथा पोरबन्दर आदि स्थानों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। अंकोल के अन्य नाम स्थान भेद तथा भाषा भेद के कारण इसके कई अन्य नाम भी हैं। यथा-अकोट कोकल, विषघ्न, अकोसर, ढेरा, टेरा, अक्रोड, अकोली, ढालाकुश, अक्षोलुम, इत्यादि परिचय अकोल का वृक्ष विषेश कर दो प्रकार का होता है एक श्वेत तथा दुसरा काला श्वेत की अपेक्षा काले अंकोल को अति दुर्लभ एवं तीव्र प्रभावशाली माना गया है परंतु यह बहुत कम मात्रा मे ही यदा-कदा देखने को मिल जाता है। अंकोल का वृक्ष 35-40 फीट तक उंचा तथा 2-3 फीट तक चैड़ा होता है। इसके तने का रंग सफेदी लिए हुए भुरा...