नाड़ी तंत्र एवं सात चक्र सूर्य व चद्र नाड़ी- इच्छाओं की पूर्ति के लिए कोई क्षमता अवश्य होनी चाहिए। इच्छा तृप्ति के लिए यह शक्ति शरीर के दायीं ओर पिंगला नाड़ी पर कार्यवृति धारण करती है। यह कार्य स्रोत शारीरिक तथा बौद्धिक गतिविधियों का स्रोत है। अपनी गतिविधि के उप-फल के रूप में यह मस्तिष्क के दायीं ओर अंह को विकसित करता है। बायें और दायें दोनों सूक्ष्म-मार्ग स्थूल रूप से मेरूरज्जू के बाहर नाड़ी-प्रणाली को व्यक्त करते है। सूर्य स्रोत में पुरूषत्व गुण जैसे विश्लेषण , स्पार्धा , सहनशीलता आदि निहित है। चन्द्र स्रोत में सोम्यता , प्रतिसम्वेदना , सहयोग तथा अतर्बोध आदि मादा गुण सम्मिलित है। मस्तिष्क के दो गोलार्ध विरोधी परन्तु सम्पूरक कार्य करते है। शरीर के दायें भाग पर नजर रखने वाले बायें गोलर्ध की विशेषता विचार करना , योजना बनाना तथा विश्लेषण करने जैसे रैखिक प्रक्रम है। शरीर के बायें भाग का ध्यान रखने वाला दायां गोलार्ध भावना , स्मृति और इच्छाऔं आदि में कार्यरत है। सात चक्र 1- मूलाधार चक्र- रीढ़ की हड्ड़ी के निचले छोर ...