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Showing posts from February, 2015

चक्र

नाड़ी तंत्र एवं सात चक्र सूर्य व चद्र नाड़ी-  इच्छाओं की पूर्ति के लिए कोई  क्षमता अवश्य होनी चाहिए। इच्छा तृप्ति के लिए यह शक्ति शरीर के दायीं ओर पिंगला नाड़ी पर कार्यवृति धारण करती है। यह कार्य स्रोत शारीरिक तथा बौद्धिक गतिविधियों का स्रोत है। अपनी गतिविधि के उप-फल के रूप में यह मस्तिष्क के दायीं ओर अंह को विकसित करता है। बायें और दायें दोनों सूक्ष्म-मार्ग स्थूल रूप से मेरूरज्जू के बाहर नाड़ी-प्रणाली को व्यक्त करते है। सूर्य स्रोत में पुरूषत्व गुण जैसे विश्लेषण ,  स्पार्धा ,  सहनशीलता आदि निहित है। चन्द्र स्रोत में सोम्यता ,  प्रतिसम्वेदना ,  सहयोग तथा अतर्बोध आदि मादा गुण सम्मिलित है। मस्तिष्क के दो गोलार्ध विरोधी परन्तु सम्पूरक कार्य करते है। शरीर के दायें भाग पर नजर रखने वाले बायें गोलर्ध की विशेषता विचार करना ,  योजना बनाना तथा विश्लेषण करने जैसे रैखिक प्रक्रम है। शरीर के बायें भाग का ध्यान रखने वाला दायां गोलार्ध भावना ,  स्मृति और इच्छाऔं आदि में कार्यरत है। सात चक्र 1-  मूलाधार चक्र- रीढ़ की हड्ड़ी के निचले छोर ...

अपान मुद्रा

सम्पूर्ण शरीर में मुख्य रूप से प्राण वायु स्थित है। यहीं प्राण वायु शरीर के विभिन्न अवयवों एवं स्थानों पर भिन्न-भिन्न कार्य करती है। इस दृष्टि से उनका नाम पृथक-पृथक दिया गया है। जैसे- प्राण ,  अपान ,  समान ,  उदान और व्यान। यह वायु समुदाय पांच प्रमुख केन्द्रों में अलग-अलग कार्य करता है। प्राण स्थान मुख्य रूप से हृदय में आंनद केंद्र (अनाहत चक्र) में है। प्राण नाभि से लेकर कठं-पर्यन्त फैला हुआ है। प्राण का कार्य श्वास-प्रश्वास करना ,  खाया हुआ भोजन पकाना ,  भोजन के रस को अलग-अलग इकाइयों में विभक्त करना ,  भोजन से रस बनाना ,  रस से अन्य धातुओं का निर्माण करना है। अपान का स्थान स्वास्थय केन्द्र और शक्ति केन्द्र है ,  योग में जिन्हें स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधर चक्र कहा जाता है। अपान का कार्य मल ,  मूत्र ,  वीर्य ,  रज और गर्भ को बाहर निकालना है। सोना ,  बैठना ,  उठना ,  चलना आदि गतिमय स्थितियों में सहयोग करना है। जैसे अर्जन जीवन के लिए जरूरी है ,  वैसे ही विर्सजन भी जीवन के लिए अनिर्वाय है। शरीर में केवल...

घरेलु नुस्खे-स्वास्थ्य

परिक्षित घरेलु नुस्खे-स्वास्थ्य-सूत्र -2 चेतावनी : कृप्या दवाओं से इलाज रोगी की प्रकृति के अनुसार करें  |  उदाहरण के लिए उष्ण (गर्म ) अथवा पित्त प्रकृति के व्यक्ति लहसुन ,  कालीमिर्च ,  हल्दी आदि का प्रयोग सोच समझकर ही करें । इससे लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है ।                                                                      (from Rajiv Dixit media)        ब्रेन मलेरिया ,  टाइफाईड ,  चिकुनगुनिया ,  डेंगू ,  स्वाइन फ्लू ,  इन्सेफेलाइटिस ,  माता व अन्य प्रकार के बुखार का इलाज 1. 20  पत्ते तुलसी ,  नीम की गिलोई का सत्  5gm,  सोंठ (सुखी अदरक)  10gm, 10 छोटी पीपर के टुकड़े ,  सब आपके घर मे आसानी से उपलब्ध हो जाती है। सब एक जगह पर कूटने के बाद एक गिलास पानी में उबालकर काढ़ा बनाना है ठन्डा होने के ब...

अस्थमा

"अस्थमा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी"( Complete information about asthma) अस्थमा(दमा) से आप सब परिचित ही होंगे,आजकल बदलते वातावरणीय प्रदूषण, खान-पान में मिलावट व शुद्धता में कमी के चलते  अस्थमा जिसे आमभाषा में दमा भी कहते हैं, के मरीजों की संख्या में वृध्दि के मामले निरंतर प्रकाश में आ रहे हैं। जब किसी व्यक्ति की सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाता है तो उस व्यक्ति को सांस लेने मे परेशानी होने लगती है जिसके कारण उसे खांसी होने लगती है। इस स्थिति को दमा रोग कहते हैं।अस्थमा (Asthma) एक गंभीर बीमारी है, जो श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है। श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। अस्थमा होने पर इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन होता है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है और किसी भी बेचैन करनेवाली चीज के स्पर्श से यह तीखी प्रतिक्रिया करता है। जब नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं, तो उनमें संकुचन होता है और उस स्थिति में फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाती है। इससे खांसी, नाक बजना, छाती का कड़ा होना, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि ...