कुंडलिनी जागरण मन्त्र प्रयोग भाग 5 ऊं गं गणेशाय नमः: ऊं ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः : कुण्डलिनी शक्ति मनुष्य शरीर स्थित कुंडलिनी शक्ति में जो चक्र स्थित होते हैं उनकी संख्या सात बताई गई है। यह जानकारी शास्त्रीय, प्रामाणिक एवं तथ्यात्मक है- (1) मूलाधार चक्र - गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। वहाँ वीरता और आनन्द भाव का निवास है । (2) स्वाधिष्ठान चक्र - इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुरियाँ हैं । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है । (3) मणिपूर चक्र - नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईष्र्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि कषाय-कल्मष मन में लड़ जमाये पड़े रहते हैं । (4) अनाहत चक्र - हृदय स्थानमें अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है । यह सोता रहे तो लिप्सा, कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा । जागरण होने पर यह सब दुर्गुण ...