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Showing posts from December, 2014

छठी इंद्री

छठी इंद्री को अंग्रेजी में सिक्स्थ सेंस कहते हैं। सिक्स्थ सेंस को जाग्रत करने के लिए योग में अनेक उपाय बताए गए हैं। इसे परामनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है। असल में यह संवेदी बोध का मामला है। गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है। मेस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म जैसी अनेक विद्याएँ इस छठी इंद्री के जाग्रत होने का ही कमाल होता है। क्या है छठी इंद्री : मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है। सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्रकार से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ अर्थात इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है। सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है। इड़ा, पिंगला और सुषुन्मा के अलावा पूरे शरीर में हजारों नाड़ियाँ होती हैं। उक्त सभी नाड़ियों का शुद्धि और सशक्तिकरण सिर्फ प्राणायाम और आसनों से ही होता है। शुद्धि और सशक्त...

प्राणायाम

योग के आठ अंगों में से चौथा अंग है प्राणायाम। प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। अंतर रोकने को आंतरिक कुम्भक और बाहर रोकने को बाह्म कुम्भक कहते हैं। (1) पूरक:- अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब भीतर खिंचते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है। (2) कुम्भक:- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं। श्वास को अंदर रोकने की क्रिया को आंतरिक कुंभक और श्वास को बाहर छोड़कर पुन: नहीं लेकर कुछ देर रुकने की क्रिया को बाहरी कुंभक कहते हैं। इसमें भी लय और अनुपात का होना आवश्यक है। (3) रेचक:- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे या तेजी से दोनों ही तरीके से जब छोड़ते हैं तो उसमें लय और अनुपात का होना आवश्यक है। प्राणायाम के प्रमुख प्रकार ( kind of pranayama) ...

परकाया प्रवेश क्या सत्य है

पुनर्जन्म की तरह परकाया प्रवेश क्या सत्य है अर्थात् एक भौतिक शरीर से दूसरे भौतिक शरीर में प्रवेश करना भी पूर्णतया सत्य है। एक बार वेदांत के महाज्ञाता आद्य शंकराचार्य का एक विदूषी महिला भारती से शास्त्रार्थ हुआ। धर्म दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान अन्य विषयों में तो जीत गए परन्तु एक विषय में शास्त्रार्थ उनको बीच में ही रोकना पड़ा। महिला ने कामशास्त्र विषय छेड़कर परिस्थिति ही बिल्कुल विपरीत कर दी थी। विषयक चर्चा के लिए शंकराचार्य जी बिल्कुल ही अबोध और अन्जान थे। व्यवहार में आए बिना इस विषय पर चर्चा करना भी उनके लिए असम्भव था। उन्होंने ज्ञान प्राप्त करने के लिए समय मांगा। इस समयावधि में उन्होंने अपने सूक्ष्म शरीर को एक राजा के शरीर प्रवेश करवाया। दो शरीरों के मिलन का अनुभव अर्जित किया और तदनुसार भारती से चर्चा करके उसको शास्त्रार्थ में पराजित किया। परकाया प्रवेश का यह एक बहुत बड़ा उदाहरण है। हमारे दो शरीर हैं। एक स्थूल जो दृष्ट है और दूसरा सूक्ष्म शरीर जो सर्व साधारण को दृष्ट नहीं है। इसके रूप-स्वरूप की अलग-अलग तरीकों से परिकल्पनाएं की गयी हैं। परन्तु शास्त्र सम्मत सूक्ष्म शरीर क...