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Showing posts from 2012
अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा देखो मैने कंधे चौडे कर लिये हैं मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं और ढलान पर एडियाँ जमाकर खडा होना मैने सीख लिया है घबराओ मत मै क्षितिज पर जा रहा हूँ सूरज ठीक जब पहाडी से लुढकने लगेगा मै कंधे अडा दूंगा देखना वह वहीं ठहरा होगा अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा मैने सुना है उसके रथ मे तुम हो तुम्हे मै उतार लाना चाहता हूं तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो तुम जो साहस की मुर्ति हो तुम जो धरती का सुख हो तुम जो कालातीत प्यार हो तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो तुम्हे मै उस रथ से उतार लाना चाहता हूं रथ के घोडे आग उगलते रहें अब पहिये टस से मस नही होंगे मैने अपने कंधे चौडे कर लिये है। कौन रोकेगा तुम्हें मैने धरती बडी कर ली है अन्न की सुनहरी बालियों से मै तुम्हे सजाऊँगा मैने सीना खोल लिया है प्यार के गीतो मे मै तुम्हे गाऊंगा मैने दृष्टि बडी कर ली है हर आखों मे तुम्हे सपनों सा फहराऊंगा सूरज जायेगा भी तो कहाँ उसे यहीं रहना होगा यहीं हमारी सांसों मे हमारी रगों मे हमारे संकल्पों मे हमारे रतजगो मे तुम उदास मत होओ अब मै किसी भी सूरज को नही डूबने दूंगा